Book Title: Mahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Author(s): Chandraprabh
Publisher: Jain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व 'पौषध-विधि-स्तवन' से विदित होता है कि कविवर वि० सं० १६६७ में सिन्ध प्रदेश में गए थे और उन्होंने मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष दशमी को मरोट नगर में उपर्युक्त रचना निर्मित की। मरोट से वे उच्च नगर आए और वहाँ' श्रावकाराधना'२ नामक कृति का प्रणयन किया। इस प्रान्त के विविध अंचलों में घूमते हुए वे वि० सं० १६६७ में मुलतान पहुँचे। इसी नगर में रचित 'सती मृगावती-चरित्र चौपाई३ कृति साहित्य-संसार को प्राप्त हुई। चैत्र कृष्ण दशमी को यहीं पर लिखित 'निरियावली सूत्र' की पाण्डुलिपि यति चुन्नीलाल के संग्रहालय में विद्यमान है। इसी स्थल पर लिखित एक और काव्य-रचना उपलब्ध हुई है 'कर्मछत्तीसी'। इसमें उल्लिखित समय के आधार पर यह स्पष्ट हो जाता है कि कवि ने माघ शुक्ला षष्ठी तक मुलतान में ही वास किया।
वि० सं० १६६९ में कवि सिद्धपुर (सीतपुर) गये। वहाँ होने वाली भयंकर हिंसा को उन्होंने रोकने का अथक प्रयास किया। जैनधर्म प्रारम्भ से ही अहिंसा का प्रबल प्रसारक रहा है। जैन आचार्य और मुनिगण हिंसा को समाप्त करने के लिए सदैव प्रयत्नशील रहे हैं। अनेक जैनाचार्यों ने राजाओं को प्रभावित कर अमारि-घोषणा करवाई और इस प्रकार प्राणियों को अभयदान दिया। कवि समयसुन्दर के दादागुरु आचार्य जिनचन्द्रसूरि ने भी अकबर जैसे मुस्लिम सम्राट को भी अहिंसा के लिए प्रेरित किया और जीव-वध संबंधी अनेक सनदें प्राप्त की तथा अमारि-घोषणाएँ करवाईं। विवेच्य कवि भी इसी परिवेश में रहे थे और उनके मन में भी अहिंसा की उत्कट भावना थी। यही कारण है कि हमारे विवेच्य कवि ने भी हिंसा का प्रबल विरोध किया और मखनूम मुहम्मह शेख काजी को उपदेश देकर सिन्ध प्रान्त में गो-जाति की रक्षा करवाई तथा पंचनदी के जलचर जीवों की हिंसा बन्द कराई। अन्य जीवों के लिए भी इन्होंने अमारि-पटह बजवाकर विमल कीर्ति प्राप्त की। यह पुष्ट प्रमाण उत्तरवर्ती कवियों के उल्लेखों से ज्ञात होता है। सिद्धपुर में ही कवि ने अपनी 'पुण्यछत्तीसी५ नामक कृति लिखी थी।
सिन्ध प्रान्त में ही घटित कवि के जीवन की एक घटना जैन समाज में बहुत प्रसिद्ध है। सिन्ध प्रदेश में विचरण करते समय एक बार वे श्रावक-संघ सहित 'उच्चनगर'
१. वही, पृष्ठ ५९४-६०० २. द्रष्टव्य - श्रावकाराधना, प्रशस्ति (अप्रकाशित) ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ५२६-५३३ ४. (क) नलदवदंती-रास, परिशिष्ट ई; कवि राजसोम कृत समयसुन्दर गीतम् पृष्ठ १३२
(ख) वही, कवि देवीदास कृत समयसुन्दर गीतम्, पृष्ठ १३५ । (ग) वही, वादीहर्षनन्दनकृत् समयसुन्दरगीतम्, पृष्ठ १३८
(घ) हर्षनन्दन कृत् ऋषिमण्डल-टीका, प्रशस्ति (११) ५. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ५३३-५४०
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