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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
जिनजी की रसोई ( ५३ पद्य) में भोजन के नाना व्यंजनों का वर्णन है । इसमें षट्स का अच्छा वर्णन किया गया है, यथा
छिमक चणा किया अति भला, हलद मिरच दे घृत में तला । मेसी रोटी अधिक वणाई, आरोगो त्रिभुवन पति राई । "
विनती और पदों में दैन्यभाव की भक्ति से सराबोर पद्य सरस तथा गेय है । इन्होंने कई पूजाएँ लिखी हैं जैसे वसंतपूजा, वंदना, विनती आदि । चारमित्रों की कथा सं० १७२१ ज्येष्ठ सुदी १३ को लिखी गई । इनके अलावा आदिनाथ पूजा, चतुर्विंशति तीर्थकर पूजा, नंदीश्वर पूजा, पंचमेरु पूजा, सिद्ध स्तुति, चौबीस तीर्थंकर स्तुति, बीस तीर्थंकरों की जयमाल, पार्श्वनाथ सालेह आदि नाना स्तुति पूजापरक रचनायें प्राप्त हैं । नेमिनाथ चरित इनकी महत्वपूर्ण प्रबन्धात्मक रचना है । यह २६४ पद्यों में आबद्ध है । इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है
संवत सतरा सै त्रेणवं, मास असाढ़ चौपाइ वर्णयो । तिथि तेरस अंधेरी पाख, शुक्रवार शुभ उत्तिम पाख ।
इस खण्डकाव्य की प्रेरणा कवि को आमेर के जैन मंदिर में प्रतिष्ठित नेमिनाथ की मूर्ति से मिली। इसमें नेमिनाथ के चरित्र के साथ राजुल के उदात्त शील का भी सुंदर निरूपण है । रूपचित्रण एवं विविध वस्तुओं का वर्णन रमणीय है । कृति के बीच बारहमासा के रूप में प्रकृति के उद्दीपन विभाव का अच्छा प्रयोग किया गया है । दोहे चौपाइयों में लिखा गया यह खण्डप्रबन्ध संगीतात्मक ढालों के प्रयोग से पर्याप्त गेय हो गया है । उस समय आमेर पर राजा जयसिंह सवाई का शासन था । इसका प्रारंभ -
१. डा० प्रेमसागर जैन -- हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि – पृ० ३६० और कस्तूरचंद कासलीवाल और अनूपचंद - राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की ग्रन्थ सूची भाग ३, पृ० ९
२ . वही
३. वही ४. वही
भाग ४, पृ० ५५
भाग ३, पृ० २९८
पृ०
० ३६३ और डा० प्रेमसागर जैन -- हिन्दी जैन भक्ति काव्य
और कवि पृ० ३६३
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