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REGISTERED NO. A-731.
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'अनेकान्त' जनसमाजके गौरवको वस्तु है ! दशलक्षण पर्वमें 'अनेकान्त का प्रचार करना और सहायता भिजवाना प्रत्येक बन्धुका कर्तव्य है !
विद्या-दानका अपूर्व अवसर
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जैनसमाजमें यह आवश्यकता बहुत दिनोंसे महसूस की जारही थी कि समाजमें एक ऐसा पत्र अवश्य होना चाहिये जो आपमी तूतू मैं-मैं, वादविवाद और सम्प्रदायवादसे दूर रहकर साहित्य और इतिहासकी सेवा करता हुश्रा वीर प्रभुके सन्देशका प्रचार व प्रसार करे तथा जातिमें त्याग, सेवा, धर्मसाधन और लोकहितकी भावना उत्पन्न करे । साथ ही जिसे बेधड़क किमी भी अजैन बन्धुके हाथों में देकर हम गर्व महसूस कर सकें, जिससे उस अजैन वन्धु पर भी अच्छा प्रभाव पड़े और जैनधर्मके विषय में फैली हुई गलत धारणाएँ दूर होसकें, तथा गैटअप आदिकी भी दृष्टिसे उम पत्रका स्टैंडर्ड काफी ऊँचा रहे।
हर्पका विषय है कि 'अनेकान्त' जैसे उच्चकोटिके पत्रके संचालक मंडलने अब समाजकी इस कमी को पूरा करने के लिये 'अनेकान्त' को ऐसा पत्र बनानेका निश्चय कर लिया है जिस पर समाज गर्व कर सके।
पर केवल संचालक मंडलके निश्चय कर लेनेसे ही यह महत्वपूर्ण कार्य पूरा नहीं होसकता है जब तक कि समाजके प्रत्येक व्यक्तिका सहयोग हमें प्राप्त न हो जाये। वह इस प्रकार होसकता है कि
विद्वान् लोग सरल साहित्यका निर्माण करें। प्रत्येक जैन बन्धु, संस्था, मन्दिर और स्थानक पत्रका ग्राहक बने । दानी महानुभाव उसे आर्थिक सहयोग प्रदान करें तथा
अपनी पोरसे दो-दो चार-चार अजैन संस्थाओं और विद्वानोंको मुफ्त भिजवायें। मायादसमाज सेवाकास महत्वपूर्ण कार्य में हमें समाजका पूर्ण सहयोग पास होगा।
कौशलप्रमाद जैन भानरेरी व्यवस्थापक कोर्ट गेड, सहारनपुर
RRIRAMA
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मुद्रक, प्रकाशक पं. परमानन्दशास्त्री बीरपेवामंदिर, सरमाबाके लिये श्यामसुन्दरलाल श्रीवास्तव द्वारा श्रीवास्तव प्रेस सहारनपुरमें मुद्रित