Book Title: Anekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 333
________________ वीरशासन-जयन्ती अर्थात् श्रावण-कृष्ण प्रतिपदाको पुण्य-तिथी यह तिथि-इतिहासमें अपना खाम महत्व रखती है और एक से 'सर्वोदय' तीर्थकी जन्मतिथि है, जिसका लाय 'मर्वप्राथहित'।। इस दिन--अहिंसाके अवतार श्री सन्मति वर्द्धमान महावीर प्रादि नामोंसे नामाकिंत वीर भगवानकातीर्थ प्रवर्तित हुमा, उनका शासन शुरू हुश्रा, उनकी दिव्यध्वनि वाणी पहलेपहल खिरी, जिसके द्वारा सब जीवोंको उनके हिसका वह सन्देश सुनाया गया जिसने उन्हें दुःखोंमे छूटनेका मार्ग बताया, दुःखकी कारणीभूत भृल सुमाई, वहमोंको दूर किया, यह स्पष्ट करके बतलाया कि सच्चा सुख अहिंसा और अनेकान्तरष्टिको अपनाने में है; ममताको अपने जीवनका अकबनाने में है. अथवा बन्धनसे--परतन्त्रतासे--विभावपरिणतिय टने में है. साथ ही.ब श्रमाचीको समान बतलाते हुए, प्रारमविकासका सीधा तथा सरल उपाय सुझाया और यह स्पष्ट घोषित किया कि अपना उत्थान और पतन अपने हाथमें हैं, उसके लिये नितान्त दूसरों पर श्राधार रखना, सर्वथा परावलम्बी होना अथवा नुसगेको दोष देना भारी भूल है। हमी दिन--पीडित, पतित और मार्गच्युत जनताको यह प्रश्वासन मिला कि उसका उद्धार हो सकता है। यह पुण्य-दिवस--उन कर बलिदानोंके मातिशय रोकका दिया है जिनके द्वारा जीवित प्राणी निर्दयतापूर्वक के घाट उतारे जाते थे अथवा होमके बहाने जलती हुई भागमें फेंक दिये जाते थे । इसी दिन---लोगोंको उनके अत्याचारोंकी यथार्थ परिमाया ममझाई गई और हिमा-श्राहिमा तथा धर्म अधर्मका तख पूर्णरूपसे बतलाया गया। इसी दिनसे--स्त्रीजाति तथा शृद्रोंपर होनेवाले तत्कालीन श्रन्याचारों में भारी रुकावट पैदा हुई और ने सभी जन यथेष्ट रूपसे विद्या पढ़ने तथा धर्मसाधन करने श्रादिके अधिकारी ठहराये गये। इसी तिथिसे--भारतवर्ष में पहले वर्षका प्रारम्भ हुआ करता था. जिम्मका पना हाल में उपलधदुए कुछ अतिप्राचीन ग्रंथलेखों से--'तिलोयपण्णत्ती' तथा 'धवल' आदि सिद्धानमग्रंथों परसे--चला है। सावनी-भाषाहीके विभागरूप फसली साल भी उसी प्राचीन प्रथाका सूचक जान पड़ता है जिसकी संख्या आजकल ग़लत प्रचलित हो रही है। इस तरह यह तिशि--जिस दिन वीरशासनकी जयन्ती (ध्वजा) लोकशिखर पर फहराई, संसारके हित तथा सर्वसाधारणके जत्थान और कल्याणके माथ अपना मीधा एवं ग्वाम सम्बंध रखती है और इसलिये मभीके द्वारा उस्मयके साथ मनाये जानेके योग्य है। इसीलिये इसकी यादगारमें कई वर्षसे वीरसेवामन्दिर सरसावामें 'वीरशाम नजयन्ती' के मनानेका प्रायोजन किया जाता है। अन्य स्थानों पर भी किया जारहा । इस वर्ष--यह पावन तिथि . जुलाई सन् १६५४ को शुक्रवार के दिन अवतरित हुई है। अबकी बार वीरसेवामन्दिरने उसी राजगिर (राजग्रह) स्थानपर वीरशासनजयन्ती मनानेका आयोजन किया है जहाँ श्रीशासकी सर्वोदय तीर्थ-धारा प्रथम प्रवाहित दुई थी। उत्सवकी तारीख ७, ८, ९, जुलाई है। अत: सब स्थानोंके भाईयोंको इस सर्वातिशायी पावन पर्वको मनानेके खिये अभीसे सावधान होजाना चाहिये और राजग्रह पहुंच कर उत्सव में भाग लेना चाहिये जो भाई वहां न पधारमके उन्हें अपने २ स्थानोंपर उसे मनानेका पूर्ण आयोजन करके कम्पका पालन करना चाहिये। निवेदक-- जुगलकिशोर मुख्तार

Loading...

Page Navigation
1 ... 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436