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Registered No. A-731.
दो धर्मात्माओंका वियोग
श्री १०८ आचार्य शान्तिसागर छापीका गत ता०१७ मईको सागवाड़ामें ५५ वर्षकी अवस्था में समाधिमरण-पूर्वक स्वर्गवास हो गया है। आपके इस वियोगसे समस्त जैन समाजको बड़ा ही दुख हुमा है। आप बहुत शान्त-स्वभावी और चारित्रवान् थे। ज्ञान प्रचारकी दृष्टिसे आपने कई प्रन्थमालायें
और शिक्षा-शालायें खुलवाई हैं। आपका प्रयत्न अनवरत विद्या-प्रचार, साहित्यप्रचार और धर्मप्रचारमें ही होता था। सामाजिक विवादस्थ विषयोंसे आप अलग रहते थे। आपकी चर्या और चारित्रका लोगों पर । अच्छा प्रभाव पड़ता था।
दूसरा शोक जनक वियोग गत १४ मईको 'ज्ञानचन्द्रिका' भूरी बाईजी इन्दौरका ६७ वर्षकी अवस्थामें हो गया। आप बाल्यावस्थामें ही विधवा हो गई थीं । तबसे आपने जैनशास्त्रोंका खूब अभ्यास किया। शास्त्राभ्याससे आपकी इननी सूक्ष्मबुद्धि होगई थी कि आप सूक्ष्म चर्चा करने में बड़ा आनन्द मानती थीं। श्रोताओं पर आपकी ज्ञानचर्चा और प्रवचनका अच्छा और आकर्षक असर होता था। शास्त्रस्वाध्याय' करना और कराना ही समूचे जीवनका एकमात्र व्यसन था। 'गोम्मटसार' 'धवला' आदि आगम ग्रंथोंकी अच्छी जानकारी थी। वास्तव में आप सच्ची ज्ञानचन्द्रिका थीं। आपको कैंसरकी बीमारी हो गई और अन्तमें वही आठ माह तक तीव्र वेदना देकर उनकी घातक हुई !!
हम इन दोनों धर्मप्राण स्वर्गीय आत्माओं के लिये शान्तिकी कामना करते हैं।
वीर-शासनाङ्क-विषयक जरूरी सूचना
a> 'वीरशासनाङ्क' नामसे अनेकान्तका जो विशेषाङ्क निकलने वाला है उसके लिये अधिकांश विद्वानोंने बहुत देरसे लेख-लिखना प्रारंभ किया है, इसीसे अब तक उतने लेखोंका संग्रह नहीं हो सका है जितनेकी खास जरूरत है। कितने ही विद्वानों के पत्र आरहे हैं कि उन्होंने अब लिखना शुरू किया है। कितने ही लेख भी ऐसे हैं जो बहुत समय-साध्य हैं। ऐसी स्थितिमें यह विशेषांक श्रावण कृष्णा प्रतिपदाको प्रकाशित न होकर अब दीपावलीके करीब होनेवाले वीरशासनके 'सार्द्धद्वयसहस्राब्दि-महोत्सव' पर ही प्रकट होगा । अतः जिन विद्वानोंने अभी तक लेख भेजने की कृपा नहीं की उन्हें श्रावणके अन्त तक भेज देना चाहिये, जिससे छपाईका कार्य सुविधानुमार हो सके। अब तक कोई ५० विद्वानोंके लेख भा चुके हैं, जिनके लिये हम लेखक महोदयों के आभारी हैं।
व्यवस्थापक 'अनेकान्त' ।
If not delivered please return to:VEER SEWA MANDIR,
SARSAWA. (SAHARANPUR)
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मुद्रक,प्रकाशक पं.परमानन्दशासी वीरसेवामन्दिर सरसावाके लिये श्यामसुन्दरखाल श्रीवास्तव द्वारा श्रीवास्तवप्रेस सहारनपुरमें मुद्रित ।