________________
३१६
अनेकान्त
कई बार देखा कि उनके भ्रुकुटिभंगको लम्बाई एक वाक्य जितनी है। तेजीके साथ सैण्टेंस आरम्भ करते हैं और यह कि सैस्टैंस समाप्त होता है, तो तेजी भी समाप्त होजाती है । सभासंचालनके कोशलमें मैं उनकी तुलना पं० जवाहरलाल नेहरूके साथ आसानी से कर सकता हूँ। पं जवाहलाल नेहरू, एक नम्बरके दृष्टा और एक नम्बरके घाघ, जिन्हें जीता नहीं जासकता और बहकाया भी नहीं जा सकता । साहू शान्तिप्रसाद, एक नम्बरके दृष्टा और एक नम्बर के घाघ, जिन्हें जिता नहीं जासकता, पर बहकाया जा सकता है। क्या मूर्ख बनाकर ? उहूँ ! उनके अत्यन्त सम्वेदनशील और सरल हृदय को छूकर ! दोनों काले बादल; खूब बरसने वाले, पर पहला है वैज्ञानिक, जो अपने ही मनकी मौजमें बरसता है और दूसरा भावुक कविका-सा मन लिये, जो दूसरोंके सुखदुख को अपने में लेकर भी बरस पड़ता है !
परिषदके अणु २ पर आज साहू शान्तिप्रसाद का व्यक्तित्व छाया हुआ है । कुछने कहा यह अभिशाप है संस्थाके जीवनका । मैंने एक पत्रकार की आंख से देखा - यह बरदान है संस्थाके जीवनका । इस वरदान में एक अभिशाप है यह भी मैंने देखा यह अभिशाप है दूसरोंकी निश्चिन्तता का बिल्कुल वैसा कि कांग्रेसी मिनिष्टियों के समय बाहरके कांग्रेसी मिनिष्टरों की ओर देखते रहे और वह वरदान अभिशाप में बदल गया ! यहाँ इस परिणामसे सावधान रहना है और यह काम श्री राजेन्द्रकुमार जी और बाबू रतनलाल
[ वर्ष ६
जीका है। मुझे प्रसन्नता है कि इन दोनों महारथियोंने इस अधिवेशनमें यह जिम्मेदारी देखी है, पहचानी है और सिरपर ली है। यही इस अधिवेशनकी सफलता है ।
BAHADUR SINGH SINGHI
ZAMINDAR & BANKER
एक
श्री परमेष्ठीदास जी और श्री कामताप्रसाद जी के सभापतित्वमें जैन साहित्य परिषद और प्रेसकाम सके आयोजनको मैं मानता हूँ कि ये श्रेष्ट स्मारम्भ थे । साहित्यपरिषदको तो मेरी राय में, परिषदका वैसा ही विभाग बना देना चाहिये, जैसा चरखासंघ काग्रेस में। जैन साहित्यकी उपेक्षा कर जैन समाज के किसी सुधारकी कल्पना करना उपहासारग्द ही होगा भाई परमेष्टिदास जी और कामताप्रसाद जी यदि साहित्यपरिषद को स्थायी करनेके लिये एक योजना बनाने में थोड़ा समय लगामकें तो बड़ा उपयोगी कार्य हो ।
श्रीमती रमारानीजी के सभापतित्व में महिला परिषद हुई । समाजसुधार आन्दोलन का भविष्य बहुत कुछ स्त्रियों पर निर्भर करता है, इस दृष्टि महिला परिषद का काम केवल १ दिन के उत्सव तक सीमित रहना बहुत हानिकर है। इसे परिषद का एक स्थायी स्वतन्त्र विभाग होना चाहिये और उसके द्वारा पूरे वर्षभर काम होना चाहिये । श्रीमती रमारानीजीमें उत्साह है, योग्यता है, साधन है । यदि वे थोड़ा अधिक ध्यान देसकें तो यह संस्था संगठित होजाये और समाजके लिये बहुत उपयोगी काम करे । परिषद की सभानेत्री के रूपमें उन्होंने जो भाषण दिया, वह सुन्दर, संक्षिप्त और महत्वपूर्ण था ।
सिंघीजीके पत्रका ऊपरी भाग
बा० बहादुरसिंहजी सिंघीका जो पत्र इसी किरबमें पू० ३२२ पर अविकल रूपसे छपा है उसमें पवेका अंग्रेजीमें छपा हुआ ऊपरी भाग, तारीख सहित, कम्पोजसे छूटकर छपनेसे रहगया है, जिसका हमें खेद है। अतः पाठक उसे निम्न प्रकारसे बनायें अथवा पढ़ने की कृपा करें । —मैनेजर श्रीवास्तव प्रेस
Tele. Address "DALBAHADUR" Telephone NO. PARK Se
48, Gariabat Road, P. O. Ballygunge,
CALCUTTA, २६-१-४३