Book Title: Anekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 393
________________ ३५० अनेकान्त [वर्ष ६ - - आप रोग-प्रस्त होकर बीमार पड़ जायेंगी-अपने दायित्व भी तो आपके ही सिर पर है। अमूल्य स्वास्थ्यको खो बैठेंगी। क्यों कि आपकी तो दुनियाकी बहुत सी जिम्मेदारियाँ आपके ही यह व्यायाम है। विदेशी स्त्रियोंकी भांति, लज्जाका ऊपर हैं । परन्तु फिर भी आप उन्हें न सममें, और परित्याग कर अपने गृह-कायको छोड़ कर, बाहर इसलिये दुनिया आपकी कृतज्ञताको स्वीकार न करेमैदानों में जाकर व्यायामकी आड़ लेकर, टैनिस, आपको अयोग्य तथा अबला समझकर घृणाकी दृष्टिसे फुटबाल और हाकी आदि खेल खेलना, हमारी भार- देखे, तो हे न यह आपकी घोनिद्राका कटु परिणाम !! तीय सभ्यताके विरुद्ध है। हाँ, आपको खुली हवाका और लगातार अपमान सहन करनेसे अपनेपनका सेवन अवश्य नित्य नियमसे करना चाहिए। बाहर भा विस्मरा !!! कुँए इत्यादिसे पानी भर कर लाना आदि इस विषय बहनों! अब निद्राको छोड़िये अपनेको पहचानिए ! में बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकता है। अपने गौरवकी झलक जग दुनियाको दिखाइए !! अमीर घरोंकी बहनें विशेषकर रोगिन तथा कम- क्रान्तिकी आग लगाकर संसारको बताइए कि हममें जोर मिलती हैं। इसका कारण यही है कि वे गृह- स्वाभिमान है, वीरता है, धीरता है, बल है, साहस कायोंको स्वयं न करके नौकरोंसे कराती हैं। आप है और है संसारको हिला देनेकी शक्ति! हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहने में ही अमीरी समझती आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले भी, है। परिणाम यह होता है कि व्यायामके अभाव में जब कि भगवान महावीरन, भारतमाताकी पवित्र शरीरमें तनिक भी हलन-चलनका कष्ट न उठानेसे वे गोदमें जन्म लेकर, उसका मस्तक संसारमें ऊंचा बीमार तथा रोगिन बन जाती हैं। हजारों रुपया, किया, आप अपनेपनको खो चुकी थीं। अपने गौरव वैद्य डाक्टरोंकी भेंट करने पर भी स्वास्थ्य रूपी महान् को भूल चुकी थीं। अपमानक प्रति मस्तक झुकाए, सुखसे वश्चित रहती हैं। ऐसी अमीरीसे वह गरीबी मौन धारणका ही अभ्यास आपको पड़ चुका था। हजार दर्जे श्रेष्ठ है, जहाँ कठोर परिश्रम द्वारा कमाई पतिदेव कहलाने वाला-पुरुष आपको अर्धाङ्गनी हुई दो रोटियाँ, स्वस्थ, हृष्ट-पुष्ट शरीरको सन्तोषस तथा धर्मपत्नी न समझ कर प्रायः पैरोंकी जूती ही समखानेको मिल जायें । सादा भोजन, नियत समय पर झता था-अयोग्य तथा अबला जानकर आपके सब मिलता रहे !! अमीर घरानेका मूल्यवान स्वादिष्ट कहा अधिकार छीन लिए गये थे । स्वतंत्ररूपसे आपको कोई जाने जाला-मिर्च मसालेदार चटपटा भोजन, स्वा- धार्मिक क्रिया करने तथा उसमें सम्मिलित होनेका स्थ्यके लिए अत्यन्त हानिकारक होता है। जीवनके अधिकार न था। आत्म-कल्याण करने वाले धार्मिक तत्व ब्रह्मचर्यका नाशक सर्व रागोंका घर होता है। एक ग्रन्थोंको भी आप न पढ़ सकती थी रातदिन आपको विद्वान् अंग्रेजके शब्दों में देखिए-Simplest and झिड़कना तथा अपमानित करना ही पुरुष अपना cheapest food, is the best food अर्थात् कर्तव्य एवं धर्म समझता था। उन्ही दिनों, संसार सबसे सादा कम मूल्य वाला भोजन ही सबसे अच्छा के महान क्रान्तिकारक भगवान महावीरने जन्म भोजन होता है। अमीरी कहे जाने वाले भोजनमें लेकर अपनी 'वीर' वाणीसे, आपको घोर निद्रासे स्वास्थ्य और धन दोनोंका सत्यानाश है। अधिक जाग्रत किया। वीर की दिव्य वाणीने आपके हृदय में मूल्यवान-अप्राकृतिक, गरिष्ठ भोजन स्वास्थ्यके अपनेपनका प्रकाश किया । अनुदार-हृदय, पुरुषको लिए अत्यन्त हानिकर होता है। आपकी शक्तिका परिचय कराया। पुरुषने उदारताको अतएव बहनों ! आपको भोजन-शासका भी पूर्ण अपनाकर भापकी शक्तिका स्वागत किया--आपकी ज्ञान होना चाहिए-उसके आवश्यकीय प्रयोगके प्रति महान् शक्तिका अनुभव किया--उसे स्वीकार किया। पूर्ण ध्यान रहना चाहिए । देशके स्वास्थ्यका उत्तर- आपने भी नतमस्त होकर, भक्तिसे ओत-प्रोत

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