Book Title: Anekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 412
________________ किरण १०-११] केवलीशानकी विषम-मर्यादा ३६५ शक्ति फेल की जा सकती है। जैमी महेश्वरको इच्छा रोय सैंकड़ों वर्ष प्रथम ही महान दार्शनिक नकार उमास्वामी बैसा कार्य तत्काल हो जावेगा। कोई रोकने वाला नहीं है। महायजने "सर्वद्वन्यपर्यायधु केबलस्य" सूत्र कहकर सर्व किन्तु जेनोंके यहाँ यह बात नहीं है वे अपने भगवान् शब्दका अन्वय द्रव्य और पर्यायों के साथ जोड़ दिया है। में अनन्तशक्ति तो मानते हैं वैष्णवों या खुदावादियोंकी ज्ञानावरयाका क्षय यहा ज्ञानका अर्थ सर्वव्यपर्यायज्ञान सी सर्वशक्त महीं स्वीकार करते हैं जिससे कि अभव्यको है। जगत्में वस्तुभून ठोस शेय तो-द्रव्य और पर्याय दी है। भी मोक्षमें पहुंचा देते या सौ वर्षकी उम्र वालेको भगवान नकली मालको असली में क्यो मिलाते हो! चाहें तो ५०० वर्ष जीवित रख देते । "को सक्कर चाल- . सर्वसहा..सर्वधरीया. सर्वसासार्च, सर्वरस, मर्वतोमुख, यिदुईदो बा ग्रह शिथिवी वा" | विचारशील भ्राताओ- सर्वगन, सर्वभुक्, सर्वार्थमिद्धि, विश्वकेतु, विश्वम्भरा, सिद्धान्त यह है कि ऐसी गगद्ववपूर्ण सर्वशक्तियों या सर्व विरसद यहां सर्व शब्द या विश्वके अभीक्ष्ण बहुभाग, सुखोंसे तो जेनोंके श्राकुलता रहित वीतराग भगवान्की अनंत अल्प, अनेक, बाहुल्य, ये अर्थ है भशेष, अखिल संपूर्ण सुख अनन्त शक्तियाँ ही चोखी है। केवली महाराजके युक्ति,. नहों जैसे भषा, बसन, दास, दासी, सवारी,बी, बर्थ, श्रागम, अनुभवोंसे, इस परिमित अनन्त चतुष्टयकी व्यवस्था राम Tarataजादोष या प्रतिमा । प्रतिष्ठित हो रही... प्रत्युत गुण नत् संकल्पविकल्पमा ज्ञान नहीं सम्भव प्रसंभव सभी कार्योकी सर्वशक्तियाँ तथा लौकिक उपजावना.सापेक्षिक प्रतिभास नहीं होना. तायें, ध्यान, अलौकिक सभी सुख भरहन्तके नहीं है। कोई कवि भले अनजायें. स अनुप्रेक्षायें, स्मृतिसमन्वाहार, नहीं होना विशवज्ञानके ही भगवानको प्रभु यानी सर्वशक्तिमान् या सर्वसुखी, लिख लये महत्वाचायक भतशानियोंकि भारापित विषयों के देवे "निरंकुशाः कवयः" । यहाँ यदि कोई विद्वान् यो को पीछे वे क्यों पड़े कि-"शो शेये कथमश: स्यावमति प्रतिवन्धने" आनना दिगम्बस्वका मूळ. चोरी, हिसा, व्यसनों, परिच्छदोंसे स्वभावको पारने वाला जीव प्रतिवन्धकोंकेट जाने पर रहितपना बड़ा भारी पोषक गुण। पुनः पुनः कहना पुनः शेय विषयों में प्रश कैसे रह सकता है? बतायो। व्यर्थ । विचारात्मक कोई भी ज्ञान हो वह भुनशान ही इसका उत्तर इतना ही पर्याप्त है कि कर्तुमकर्तुमन्य- समझो जायेगा केवलशान तो अतीव स्वच्छतीनो कालों याकर्तु कयमशक्यः स्यादसति प्रतिबन्धने।" के पदार्थोका युमपत् प्रत्यक्ष कर रहा है। स्वामी की देदेमा वीर्यान्तरायका सर्वथा क्षय होजानेपर अनन्तवीर्यशाली तो नौकर घर जा सकेगा इत्यादि विचार तो अपूर्णकानों में भगवान असंमत्र कार्यको क्यों नहीं कर डालते हैं। कहिये पाये जाते है। तब तो सूर्याषेमान मी नीचे उतर पायेंगे। अभव्य भी मोक्ष आज शुक्रवार है ३० दिसम्बर सन् १९४३० पूम चले जायेंगे । "सौख्यकारणमामग्री.सिौ कथमसुखी मवेद- सुदी चौथ विक्रम सम्बत् दो हजार के मुसलमानी महीना सति प्रतिवन्धने।" मुहर्रमकी तारीख है। जापान, अफीका प्रादि देशोंकी समवसरनामें लौकिक सुखोकी सामग्री मिलनेर भी फलानी फलानी मिती है इत्यादि भंझटोको भगवान् कुछ अनन्त सुखद्वारा इन्द्रिय सुख क्यों नहीं ले पाते हैं ? तुम्ही नहीं जानते हैं। ये सब तुम्हारी गदन्य है। वे तो निश्य. बताओ। यदि शब्दोंको पकड़ोगे तब तो मतिज्ञानाबरण, कालको अनन्तपर्यायाकाम जानते हैं। और द्रव्य परिवर्तनअनशानावरा, भोगान्नराय. कमाका क्षय होनासे मिद्ध रूप व्यवहार कालको अथवा मात्र राशियोंपर सूर्य-संक्रमण परमेडीमें मतिज्ञान, भुतहान, भोग, उपभोग होते यनेका का अनिर्वचनीय देख रहे हैं। इससे अधिक पुरूलाओंको प्रसङ्ग भाजावेगा। .. नहीं। यो कल्पित विचारात्मक अनेक निकम्मी फोकट बातें : विजन-कहीं "सर्वशोनादिमध्यान्त:" " मना- शान नहीं झलकती है। गोवत्सको गैया मैन्याका गपेशिना" "सर्वशाय नमो नित्यं निरापरणचचुषे" ऐमा धारोष्ण शुद्ध निलेप दुग्ध ही अच्छा लगता है। दूधपर . जिस दिया परमो काना है कि प्राचार्योके झगडे लादकर बना दिये गये रबड़ी, पेड़ा. बडी तक, चाट, ..

Loading...

Page Navigation
1 ... 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436