________________
[किरण १०-११
जयपुरमें एक महीना
३७३
इसी स्थान पर हुमा । पं. जयचंदजी बावका और पता नहीं चला।
दासुखदासजी मादि विद्वानों ने भी इसे अपने निवास यह भोयरा गर्मीके दिनों में ही खुल सकता है, वर्षा से अलंकृत किया है। जैनियोंका इस स्टेटसे निकट सम्पर्क ऋतुमें उसमें अत्यधिक सील और ठंडके दिनों में अत्यन्त रहा है और अब भी कितने ही जैन उक्त राज्यके कार्योंको सर्दीकी संभावना है, ऐसा वृद्धजनोंसे सुनने में पाया है। अपनी योग्यताके साथ सम्पन्च कर रहे हैं। यहां फल्टण भाशा है महावीर तीर्थक्षेत्र कमेटी के मंत्री, कमेटीके मेन्यनिवासी बाबा दुखीचन्दजीका शानभंडार और उसकी रान् और पं.चैनसुखदासजी इसे खुलवा कर देखेंगे कि उस व्यवस्था दर्शनीय है। बाबाचीने अपने सारे जीवनमें इसका। में क्या क्या चीज है। प्राचीन मूर्तियोंके सिवाय क्या कुछ संग्रह किया।
प्राचीन ग्रंथ भी हैं। और वे वहां किस हालतमें है? ___जयपुरसे - मील की दूरी पर भामेर नगर बसा हुमा
इस मन्दिरके जिस कमरे में ग्रंथोंके गट्ठप रखे हुए थे है जो जयपुरकी प्राचीन राजधानी था। यह नगर पहाडोंके
वह एक छोटी सी कोठडी है। उसके किवाद अन्दरसे त्रिकोणमें नीचे बसा है। मामेरकी बस्ती भबबहुत कुछ
दीमकने खालिये हैं परन्तु वे बाहरसे अपना कार्य बराबर खंडहरों में परिणत हो गई है-बी बी इमारतें धरा
कर रहे थे। अब नये किवादोंकी जोदी लगानेकी व्यवस्था शायी पड़ी है-खंडहर नगरकी प्राचीनताके संयोतक तथा
हो गई है। फर्शसे चार पांच फुटकी ऊँचाई पर दीवाबसे उत्थान और पतनके स्पष्ट प्रतीक हैं। यहांका किला कलाकी
लगी हुई पत्थरकी पट्टियों पर गढब रक्खे हुए थे और दृष्टिसे बड़े महत्वका है। नगरके चारों ओर ऊपर नीचे
कुछ गढगैके बंधे हुये प्रन्थ । सफेद टीनके सन्चूकॉमें ग? देखनेसे यह सहज ही मालूम हो जाता है कि प्राचीन समय
खोल कर रख दिये गए थे। ग्रंथ टाटके एक गोलके में दूसरोंके भाक्रमबसे शहर एवं राज्यकी रक्षाके लिये
अन्दर पसे हुए थे और उसके ऊपर करा तथा हक कोठे कितना सच्द प्रयत्न किया जाता था। यहाँ का अन मादर छोटे रखकर सनकी पतली डोरियोग कसे हुए थे। और एक नशियाजी है। उन सबमें प्राचीन मंदिर नेमिनाथ सिस
फिर इसके ऊपर एक एक लम्बी चीनी चादर लिपटी हो स्वामीका जो 'सांवला जीके मंदिरके नामसे प्रसिद्ध है।
थी और फिर उसे सूतकी मोटी रस्सियोंसे कसा हुमा था । इस मंदिरकी भीतरी शिखरका माग और एक वेदी परका
इस तरह सील भादिकी हिफाजतसे उन्हें सुरक्षित रखा सोनेका कार्य दोनों ही दर्शनीय है। यहाँ जैनियोंका केवल
गया था। शीतलप्रसादजीने जो सूची बनाई थी उसके एक घर ही अवशिष्ट रहा है, बाकी सब जयपुर या अन्य
अनुसार गहनोंकी संख्या १३ होना चाहिये थी परन्तु देशोंमें चले गए हैं। इसी मंदिरमें भट्टारक महेन्द्रकीर्तिका
नं.की गठबीका कोई पता नहीं चला, और न उनकी वह प्राचीन शानभंडार है जिसके अवलोकनकी उत्कट
सूबीके अनुसार वे ग्रंथ ही पाए गए जो उस गठडी में थे। इच्छाको लेकर मैं वहाँ गया था। यह मंदिर मकानकी एक
संभव है ये अन्य कहीं चले गए या किसीको दिये गए मंजिल जितनी ऊँचाई पर बना है। कहा जाता है कि इसके
जिससे पुन: वापिस नहीं मंगाप, कुछ भी हुवा हो। ये नीचे एक विशाल भोयरा (तहखाना) जो बहुत भर्सेसे
सभी प्रम: तीन बारमें भामेरसे जयपुर लाए गये और पेठ बंद पड़ा है। उसके द्वार पर कुछ ऊँचाई पर तीन लंबे
वधीचंदजीके मकानमें रक्खे गए, जहाँ अतिशय तीर्थक्षेत्र पत्थर लगे हुए है, जिससे सहसा उसके नीचे भोयरेका महावीर कमेटीका दफ्तर है। इस भंडारकी मुकम्मल सूची परिज्ञान नहीं हो पाता। कहा जाता है कि इसमें प्राचीन भी अब तरचार हो गई है, जिसमें वे सब खाने रक्खे गए मूर्तियां और शाम रक्खे हुए हैं। पं. जवाहरलालजी जो वीरसेवामंदिरकी ग्रन्थ-सूची में नियत है। शाखीसे यह मालूम करके बना पाचर्य हुभा कि इसमें तीन इस भंडारमें उतने महत्वके प्राचीन ग्रंथ तो देखने जीर्ण वेष्टनोंमें स्वामी समन्तभद्रका प्रसिद्ध महाभाष्य भी नहीं पाये, जिनकी पाशा की जाती थी। हो, प्रन्योंकी मौजूद है, जिसका एक बहीकी लिष्टमें उत्स है। परन्तु प्रतियों अच्छी संख्या हैं । इसके सिवाय अपभ्रश और मुमे भंडारके तमाम ग्रंथ देखने पर भी उस बहीका कोई संस्कृत भाषाका पुराण साहित्य यहां काफी । भण्डारके