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अनेकान्त
[वर्ष ६
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जिन ग्रंथों परसे प्रशस्तियोंका नोट किया गया। उनके नाम पाठकोंकी जानकारी के लिये नीचे नीचे दिये जाते हैं, पनपुराण (कवि स्वयंभु और त्रिभुवन स्वयंभु) २ पारर्वपुराण (कवि पनकीर्ति) रच० वि० सं० ११ ३ जंबूस्वामिचरित्र ( कवि देवदत्तसुत कविवीर)
रच. वि० सं० १०७६ " सुलोचनाचरित्र (गणिदेवरून) १ प्रद्युम्नचरित्र (कवि सिद्ध या सिंह) ६ जिनदत्तचरित्र (पं० लाखू) रच. वि. सं. १२७५ .. पाशवपुराण (भ० यशः कीर्ति) रच. वि.सं. १४१७ - हरिवंशपुराण (भ० यश:कीर्ति) रच० वि० सं० ११०.
बाहुपक्षिचरित्र (कवि धनपाल) रच० वि०सं० १४५४ १. पचपुराण (कवि रह)
"धन्नकुमारचरित्र, १२ श्रीपालचरित्र ,
५ हरिवंशपुराण (कवि श्रुतकीर्ति) रच० वि०सं० १५५२ १५ परमेष्ठीप्रकाशसार (कवि श्रुकीर्ति),, , ११५३ १५ मशिनाथ काव्य (जय मित्रहल) + १६ श्रीपालचरित्र (4. नरयसेन) + १७ मदनपराजय (कवि हरदेव) + १८ हरिषेण चरित्र +
"नागकुमार चरित्र (माणिक्यराज) रच०वि०सं० १५७४ २. मृगांकलेखाचरित्र(पं.भगवतीदास)रच.वि सं० १७०० २. भविष्यवत्तकथा (कविश्रीधर) २२ भास्मसंबोधकाव्य २५ बारस अणुवेक्खा (कवि जल्हिग) २४ बारसमणुवेक्खा (कवि ईसर) २५ बारस अणुवेक्खा (कवि सचमीचन्द) २६ जोगीचर्या २० सप्ततत्वगीत २८ मुक्तावजिरासा (म. जीबंधर)
" अवध-अनुप्रेक्षा (कवि अवधु) २. चाराधनासार ज्ञानपिंकी पाचवीx ३. सुदर्शनचरित्र (नयनंदि) र. वि. सं. ".. ३३ रनकरराड (पंडित श्रीचंद) रच. वि.सं. ११२३ २१ षट्कर्मोपदेश (भ.अमरकीति)रच. वि.सं. १२.
इनके अतिरिक्त जयपुरके पाटोदी चादि शाखभंडारोंसे अपभ्रंश भाषाके मेमिनायचरित्र (कवि सचमण) और चंदप्रभचरित्र (म. यश:कीर्ति)के ग्रंथों सिवाय भ. सकलकीर्तिक मादि पुराणादि "ग्रंथ, सुभीमचक्रवर्ति चरित्र (भ. रतनचन्द्र रच० वि० सं० १६८३), प्र. नेमिदत्तके भाराधनाकथाकोषको घोष कर श्रीपासचरित्र भादि चार ग्रंथ, भ. शुभचंद्रके चंदनाचरित्रादि तीन ग्रंथ । पंच. नमस्कार मंत्र (भ. सिंहनन्दी, रच० वि० सं० १६६७), होली रेणुका चरित्र (40जिनदास,रच.वि.सं.१९०८), श्वेताम्बरपराजय (पं. जगमाघर च. वि.सं. १७०३), जयकुमारपुराया (. कामराज रच. वि.सं. १५००), मुनिसुबह पुराण ( कृष्णदास रच. वि. सं. १६८१), पवार्थदीपिका (कलशा टीका) भ. देवेन्द्रकीर्ति रच०वि० सं. १७८८, श्रावकाचार पचनन्दि । यशोधरचरित्र भ.) श्रुतसागर, सपणासार गद्य (माधवचन्द विद्यदेव) सिद्धांतसार (पं. नरेन्द्रसेन), भूपाल चतुर्विशतिकाटीका यशोधरचरित्र (पनाम कायस्थ, तथा पं. वासवसेन), नेमिनाथ रासा (पdि रूपचन्द), ओपनक्रिया (कवि महागुलाल), मनरहा (ब. दीपचन्द), प्रधुम्नप्रबंध (भ. देवेन्द्रकीर्ति), समकितरास, यशोधरास, श्रेणिकरास और हरिवंश पुराण (.जिनवासके चार ग्रंथ) और जंबूस्वामि चरित्र (पांडे जिनदास); इन सब अपश, संस्कृत, गुजराती और हिंदी भाषाके ग्रंथोंकी प्रशस्तियां भी नोट की गई है।
पाठकों को यह जानकर प्रसन्नता होगी कि इन सब प्रन्य प्रशस्तियों और इनके अतिरिक्तवीरसेवामन्दिरमें प्रशस्तियों का जो बचा संग्रह है उस सबको मिला कर एक विशाल प्रशस्तिसंग्रह ऐतिहासिक हिन्दी परिचयादिके साथ, बीरसेवामंदिरसे वीरशासन-जयंतीके बाद प्रेसमें दिया जानेको है। इस संग्रहकी एक विशेषता यह भी होगी कि जो प्रशस्तियां अन्यत्र प्रकाशित हुई और अधूरी अथवा त्रुटिपूर्ण हैं उन्हें यहाँ उन त्रुटियोंको यथाशक्ति दूर करते हुए दिया जायगा। उदाहरण के तौर पर कारंजा भंडारमें स्थित पत्रकीर्तिके पाचपुराणको ही सेलीजिये । इस ग्रंथकी
जो प्रशस्ति सी० पी० एण्ड बरारके फैटेखोगमें प्रकाशित हथी उसमें प्रशस्तिके अंतमें पाई जाने वाली चार गाथाएँ नहीं हैं जिनमें उसका रचनाकाल तक दिया हुमा है, किन्तु भामेरभंगारकी सं० १३की लिखित प्रतिमें
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