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किरण १०-११]
तृष्णा
अपनी हृदयवाटिकासे श्रद्धाके समन उस महान् भात्मा
चीर-बाने से बनको सजा दें! -'वीर' के चरणों में कृतज्ञता-भाव प्रकट करनेके
गान-वीरोंका सबको सुना दें। लिए भर्पण किए और उन्हें संसारक कल्याणकर्ता- नाम जिन्दोंमें अबवो लिखायें। गुरुके रूपमें देखा । अपने गौरवका अनुभव किया
अपनी शक्तीसे जगको हिलायें। आपकी शक्तिन विश्वासका सहारा लिया। अतएव बहनों! अब उठो। स्वाभिमान तथा
भाग दुनियामें ऐसी लगा दें। स्वावलंबनका पाठ पढ़ो। विलासिता-रूपी विषका
जल उठे पापकी सब मुग दें। परित्याग करके, वारता-रसका पान करो। पुरुषोंक
अपनी शक्कीको हमने पहचाना । पापके प्रति जमे हुए भयोग्य तथा अबलापनके भावों
छोड़ें, दुनियाका अपमान सहना ।। को कुचल दो। देशमें क्रान्तिका विगुल बजा कर,
कहने सुननेको करके दिखा दें! अपनी शक्तिका परिचय संसारको दीजिए । 'अबला'
अपनी शक्तीका दर्शन करा दें !! के नामको शब्दकोषसे निकालकर 'सबलावीरा- सब उसे पहन केसरिया बाना। झना' को स्थान दीजिए। आइए, फिर निर्भय होकर
फिर न कमजोर हमको बताना । गाइए------ सगर्व !
सारी दुनियाको मरना सिखा दें! कौन, हमको है 'अबला' बताता?
नाम 'अबला'को सबला' बता दें!! __ भूल कर, सिंहको स्यार कहता !! बहिनों ! इसे गानेके पश्चात्, लोगोंको देखनेको अपनी हुंकारसे जग कँपा दें!
मिलेगा-आपकी वीरताके साक्षात दर्शन ! समयके भूमि आकाशको भी मिला दें !!
सुनहरे परिवर्तनकी भलक !! भारतीयत्ताका यथार्थ ऐसे जीवनसे मरना भला है।
स्वरूप और मिलेगा-भारतमाताको बन्दे मातरम्का जिसमें अपमानका विष मिला है। सक्रिय रूप !!!
भन्न
विभाकिया जात इन बार
LADAALASAHENNED
एक हाथ में सुलभ सुराही एक हाथ में है प्याला, पी-पीकर मदहोश बने नर पाशा तृष्णाकी हाला! धधक उठी मनके बनमें जब नवाशाओंकी ज्वाला; भूल गये मानव सुख-साधन लगा शान्तिपर भी ताला। कितनकर विचार निशि-वासरहा! सपनोंके संसार बनाये, कितना पतन किया तन-मनका क्षणिक भावनापरहरषाये। चीती निश जब हुआ प्रात इन सपनोंका कुछ भेद न जाना, रहा हाथमें केवल मेरे बार बार मिर धुन पछताना। छोड़ भाग्य पुरुषार्थ अरे मैंने सपनोंकी राह निकारी, पाशा ही आशाने मुझको हाय बनाया एक भिखारी। खोकर सारे मानवपनको तीव्र लालसामें ललचाया , सोच रहा हूँ तृष्ण ! तुमने कितना मुझको पतित बनाया, तेरे गहन जालमें पड़कर मैंने अपनेको भरमाया ।
(पीसीराम जैन 'चन्द्र)