Book Title: Anekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 407
________________ ३६४ अनेकान्त [वर्ष ६ नतीन मूर्तियों के ऊपर तमें विभिख रंगोंकी सहा- ममी भी अच्छी हालतमें है। यह चित्रकक्षा दीवानापर यतासे एक वरीका चित्रण किया गया है। इस वरीमें कई पहिले चनेका एक मोटा लेप कर उसके ऊपर की गई है। चोकोर व गोजखाने हैं। चोकोर खानों कमबकी तरके इमी रहकी चित्रकला प्रजन्न बासीकोनके प्राचीन फूल बनाए गये हैं। गोक्ष खानों में क्रास बने हुये हैं जिनके मन्दिरों में मिलती। अतएव यह गुफा मी अजन्ताके सिरे गोषx )। अपरकी तरफ कासके एक समकालीन है- निर्विवाद सिद्ध है। चित्रशमें काला, हरा, भागमें एकबीका चित्रण है, तथा नीचेके दोनों भागोंमें नीला, पीला, नारंगी तथा श्वेत रंगोंका उपयोग किया दो शेर बने हुये हैं। बतके बीचोंबीच एक महत्त्र , गया। भगवान पार्थनाथकी मूर्तिक उपर बतपर गोल खान में काट कर बनाया गया। दीवाहोपर कोई चित्रकारी नहीं पत्र सहित खिले हुए पुष्प (कमल) बनाए गये हैं।सामने मालूम होतीहै। अर्धमण्डपसे गर्भगृहमें प्रवेश करनेके । प्राचार्यकी मुर्तिके जर कमल कलिकामोंकी रचना है। सिसोदिया तथा एक दरवाजा । दरवाजा ॥ फुट ऊँचा तया २0 फुट चौबा है। अर्धमण्डपके मध्यमें बतपर एक तालाबकाश्य बनाया गया है। इसमें मछली, मकर, भेसा. हायी, कुछ चकोरकी. अर्धमण्डप २२॥ फुट लम्बा, ७ फुट चौबा तथा तरहके पसी, कमल व लिबीके पुष्प प्राकृतिक सुन्दरतामें 50 फुट ऊँचा है। अर्थमण्डपके सामनेकी तरफ दो वृहत् स्तंभ तथा दोनों सिरोपर दो अर्धस्तंभ है। अर्धमशवपकी बनाए गये हैं। कमलकी कांटेदार नाव बलिली चिकने मुखायम दंठल भाप स्पष्ट देख सकते है। पतका गभग । फुट वा भाग स्तंभोंके बाहिर निकला तालाबके एक तक दो पुरुष दिखबाप गये हैं। इनमें हुमा है। स्तंभोंका मध्य भाग अठकोण तथा नीचे से एक दाहिने हायसे कम तोब रहा है तथा बाएं हाथमें उपरका भाग चौकोनहै। अर्धस्तंभोंकी रचना भी एक फूल रखनेकी टोकरी बकाए हुए है। यह लाल रंग ऐसी ही। स्तंभोंके बीच महराओंकी रचना पहाव से बनाया गया है। इसका साथी नारंगी रंगका है। यह कालीन निर्माणमाका प्रदर्शन करती है। इनके पाचमें एक हाथमें कमल लिये हुए है तथा इसका दूसरा हाथ एक चौबा चिकना माग है तथा दोनों तरफ भाग लहर 'मृगीमुद्रा में है। एक और पुरुष, नारंगी रंग, भवाग बार- गर्भगृहके द्वारके दोनों तरफ दो दो दिखाया गया है। इसकी प्राकृति अत्यंत सुंबर हैसके सुंदर अर्धस्तम्भ है। . बाएँ कन्धेपर कमलोंका एक गुच्चा तथा दाहिने कंधे पर अर्थमवरपके उत्तरी तथा दक्षिणी दीवाजमें एक एक एक लिखी पुष्प है। वृहत भाखा बना हुभा है। बनमें दक्षियोमालेमें लगभग , दोनों स्तंभोके ऊपरी, सामनेकी तरकले (पबिमी). फुट ऊँची, पशासन भगवान पारवनायकी मूर्ति है। सिर चौकोर भागों में दो नर्तकियोंक-चित्र है। दाहिने स्तंभ पर पर पत्रके स्थानमें ५ सिर वाले सर्पका फन है। इसीके चित्रित नर्तकीका वामहस्त वास्ता:या सीख हस्ता मुद्रा सामने उत्तरी दीवास भालेमें भी एक मूर्ति है। यह भी. में तथा दक्षिण हस्त 'अभयमुना' में है। इसके कामों में लगभग उसी प्राकार-प्रकारकीहै। सिर पर एकछत्र है। पत्र कपडल तथा हार्यो में, को, चणादि भाभूपय. शायद यह भी किसी प्राचार्य वा चक्रवर्तीकी मूर्ति हो। किसी उसरी स्तंभकी.नर्सकीकी प्राकृति अधिक सुंदर है। इसका भीमूर्तिके नीचे कोई भीचिन्ह नहीं है। सभी मूर्तियां पूर्ण, वामहस्त गजहस्ता मुद्रामें तथा दधिवास्त अभयमुकामें सुन्दर तथा सौम्य है। उनसे शांति निकल रही है-ऐसा है। इसके शिरोभूषव पटाखों -उपर पुष्प मालूम होता है। गूथे हुए है। दोनों प्राकृतिमा, स्थूल नितंब, पतली अर्धमण्डपकी दीवारें, बल, स्वंम, महराब मादि कमर तथा वखाभूपों मादिसे अप्सराओंकी बात होती सभी स्थान चित्रकला युक्त है। स्तंभों तथा दीवारोंकी हैं। इनका कमरसे उपरकारीरका भाग बस-रहित है। कारीगरी बगभग नष्ट हो चुकी किंतुषकी.. कादीगरी दाहिने स्वंभके उपरी उचरी चौकोर भागमें एक पुरुष

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