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एक परीक्षण 1
"स्वाधीनताको दिव्य ज्योति !"
(ले०-एस०सी०वीरन)
जैनी साहित्यिकोंमें श्री भगवत' जीका स्थान ऊँचा है खण्डकाव्यमें एक ही भावना विशेषतर प्रतीत होनी इसमें शक नहीं। कलाकार, कवि, और नाटककार, ये तीनों चाहिये। इस काध्यके नामसे ही उस काग्यमें स्वाधीनता भी वे हैं। जैनीकथाओंको मधुर-सरस-सरल भाषाका वन की लहरें हदयपर हिलोरती रहनी चाहिये। किन्तु कवि पहनाकर नवीनतम रूपसे समाजके सामने रखने वाले स्वयं स्वाधीनताके प्राणप्यारे बाहुबलीजीको भी विचारे' अनन्यतम कलाकार वे हैं।
बना देता है!"वे अपने अपने राज्य में संतुष्ट विचारे!" किन्त काब्यकी रटिसे वे उतने सफल नहीं हुए। इस वाक्यसेमकी संतुष्टता अयोग्य थी। ये विचारी थे। सितंबरके अनेकान्तकी किरणमें 'स्वाधीनताकी दिव्यज्योति' इसके अलावा खंडकाव्यको बताते समय जिस प्रकार प्रकाशित देख मनको हर्ष हुमा । 'मराठी' साहित्यिकोने प्राचार्य ग्रंथ करते समय मंगलाचरण करते हैं, उसी प्रकार अपनी नई पुरानी वीर-रस-प्रधान कथाओंको जिसरूपसे कविने भ. महावीरजीको नमन किया है। किन्तु उस सामने रखा है या हिंदी कवियोंने भी चारुरूपसे समाजके भक्तिके रसमें वे भ. महावीरको भवतार मान बैठे हैं। सामने रखा है उतने चारुरूपसे जैनी हिन्दी या मराठी यद्यपि कवि नहीं चाहता है कि वह अवतार बन जाय। साहित्यिकोंने नहीं रखा है। इतना होते हुए भी श्रीभगवत "जिस वीरके अवतारने पाखण्ड नशाया ।' उसी प्रकार जीका स्थान कुछ कम नहीं।
चरणों में सिर झुकाते झुकाते कान्यके आनंदमें उन्होंने कदमों तो भी खंडकाव्य यह काव्योमका अति उत्कृष्ट विभाग में ही सर झुका लिया। है,सभी भाषाओं में खंडकाम्यकी रचना हुई है। किन्तु खंड- इसी प्रकार इस खण्डकाव्यकी भाषाकुछ अरुचिकर है। काव्यका साहिस्थिक तंत्र अभी तक तयार नहीं हुआ है। क्योंकि वह संस्कृत-निष्ट नहीं है। इतनी सरल कथा पढ़ने तो भी संसारके जो भी अनोखे 'खण्ड-काव्य' हैं, उनके के लिए एक हिंदी छात्रको 'हिंदुस्तानी कोष'की आवश्यकता बराबरीके खंडकाव्य जैनी हिन्दी साहित्यमें उपलब्ध नहीं प्रतीत होती है। उपयोजित उर्दू शब्द भी इतमे योग्य है। कोईसी भी कथा भागका निरूपण, यह खंड-काव्य नहीं नहीं मालूम होते हैं। माना जाता है। कहता हूँ कहानी मैं सुनंदाके नंदकी" यह खण्डकाव्य लिखनेको बैठा हुमा खेखक यत्र तत्र अपने कवि-पाणी इस बातकी सूचक है, मामो कोई कथा कह रहे लेखनको कमजोर बताता है। उससे भी काम्पका सौंदर्य न है,न कि खंडकाव्य!
बढ़ते हुए हीन ही प्रतीत होता है। मयूर-सिंहासनाधिष्टित इस खंडकाव्यको रचनामें अनेक दीप पाये जाते हैं। सरस्वती देवीको चढ़ाने यदि कवि यह खण्ड-काव्य-पुष्प ले कहानी लिखने में जिस प्रकार व्यक्तिदर्शन भी किया जाता आ रहा हो तो वह बड़ा ही भाग्यवान है। फूज नहीं फूल है उसी प्रकार वातावरण (Atmosphere) की जरूरत की पत्ती ले जाने वाला मेंडक श्रेणिक-जितना ही श्रेष्ठ था। रहती है। किन्तु उसकी शुरुमात इस ढंगकी नहीं होती। कवि कहता है-'महीं लेखनीमें बल', कवियोंका इस मापने देखा है कि रास्तेपरके दवाई बेचनेवाले तालियां प्रकार अपना बयान कायों में करना ठीक नहीं जंचता। बजानेको कहते हैं उसी प्रकार कवि भी "जय बोलियेगा इसी प्रकार इस खण्ड काव्य में शब्दोंके उपयोग ठीक एक बार प्रेमसे प्रियवर" कहकर अपनी कहानीको बताना तरहसे नहीं हुए है। 'दम-भरके लिए सबको मुसीबत-सी शुरू करता है।
दिखाई' इसमें 'दम-भरके लिए' यह शब्द प्रयोग अनुपयुक