Book Title: Anekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 380
________________ किरण १०-११] क्या नियुक्तिकार भद्रबाहु और स्वामी समन्तभद्र एक हैं। ३३७ इन उपमोंका बहुत भयानक चित्र खींचा गया है क्या पाश्र्वनायकं तपःकम (पर्या) को निरुपसर्ग ही बतलाया तियंग क्या मनुष्य और क्या देवदानव सबने उनपर है। यदि नियुक्तिकार भद्रबाहु और स्वामी समन्तभद्र एक महान् उपसर्ग किये। बारह वर्ष ६ महीने और १५ दिन होते तो ऐमा विस्त कथन उनकी बेखनीसे कदापि तक इन उपसोंको महते रहे, फिर उन्हें केवलज्ञान हुमा। प्रसूत न होता। इनमविलकथनोंकी मौजूदगी में यह भगवान् महावीर उपमोंका इतना बीभत्स्य वर्णन करते बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि समन्तभद्र और भद्रबाहु एक हुए भी भगवान् पार्श्वनायके उपसगोंका सूत्रोंमें या नहीं है, दो व्यक्ति है और वे क्रमशः दिगम्बर और रखे. नियुक्ति में कोई उबलेख तक नहीं है। जबकि समन्तभद्र ताम्बर दो भित्र परम्पराओंमें हुये हैं। इम्से विरुद्ध ही वर्णन करते हैं। वे स्वयंभस्तोत्रमें पाव. मैं समझता हूं नियुक्तिकार भद्रबाहु और स्वामी नायके उन भयंकर उपयोंका तो स्पष्ट और विस्तृत विवे. समन्तभद्रको पृथक् पृथक व्यक्ति सिद्ध करनेके लिये पर्युक पन करते हैं जो दिगम्बर परंपरा साहित्यम बहुलतया थोडेसे प्रमाण पर्याप्त है। जरूरत होने पर और भी प्रस्तुत उपसम्म यहाँनक कि भ. पारवनायकी फणाविशिष्ट किये जा सकेंगे। प्रतिमा भी उमीका प्रतीक है, किन्तु भगवान महावीरके समन्तभद्र और भद्रबाहको पृथक सिद्ध करने के बाद स्तवनमै उन उपयोंका जिनका श्वे. मागमसत्रों में अब मैं इनके भिसमय वर्तिस्वके सम्बन्धमे मीका विस्तृत वर्णन है और नियुक्तिमें जिनका सुस्पष्ट विधान देना चाहता है। एवं समर्थन भी, कोई उम्ख तक नहीं करते है। समन्तभद, दिगनाग (३.१-४२५ A.D.) और स्वयंभस्तोत्रके उन श्लोकोंको नीचे प्रकट किया जाता है पूज्यपाद (५५०-A D.)क पूर्ववर्ती हैं। बह निर्विवाद जिनमें भ. पारवनायके भयानक उपसगोंका स्पष्ट चित्रण है। बौद्धतार्किक नागार्जुन (101 A DR) के साहित्यके किया गया है और इस लिये समन्तभदने टनके ही तपः साथ समन्तभद्रके साहित्यका अन्त:पील करने पर यह कर्मको सोमर्ग बतागहै, वर्द्धमानके नहीं:-- मालूम होता है कि ममतभद्रपर नागार्जुनकातामा प्रभाव तमालनोले: धनम्नदिदगगो: पीभीमाशांमवायष्टिभिः। इस लिये वे नागार्जुनके समकालीन यापही समबनातके बलाहकै विशैरुपता महामना यो न चचाल योगन: ॥ विद्वान् हैं अतः समन्तभद्रके ममयकी उत्सरावधि तो इत्फणामण्डलमण्डपेन यं स्फुरनडिपिङ्गरुचोपगिणाम दिग्नागका समय है और पूर्वावधि नागार्जुनका समय है। जुग्रह नागा धरणो धगधरं विरागसम्ध्यातडिदम्बुदो यथा ।। अर्थात समन्तभद्रका समय दूसरी तीसरी शताब्दी जैसा स्वयोगनिविंशनिशानधारया निशात्य यो दुर्जयमोइविद्विषम् । क जनसमाजको भाम मान्यता है और प्रोफेसास अवापदाइस्यमचिन्त्यमद्भुतं त्रिलोक पूजातिशयास्पदं पदम् ॥ इसे स्वीकार करते हैं। अतः समन्तभद समय-सम्बन्धमें -स्वयंम० १३१ मे १३३ तक। इस समय और अधिक विचारकी जरूरत नहीं है। पाठक देखिये.ममतमदने भ.पाश्र्वनायके उपर अपने अब नियुक्तिकार भदबाहुके समय-संबंधों पूर्वभवके वैरी कमठके जीवके द्वारा किये गये उपयोंका विचार कर लेना चाहिये स्व.श्वेताम्बर मुनि विद्वान् कितने भयानक रूपमें बर्थन किया है. जिनका कि भद्रबाहु श्री चनुरविजयजीने 'श्री भदवाह स्वामा' शीर्षक अपने ने अपनी नियुक्तिमें नामोग्लेस तक भी नहीं किया, प्रत्युत 3 १ देखो, 'ममन्तभद्र और दिग्नागमें पूर्ववर्ती कौन ? . प्रसिद्ध धवलाटीकाकार वारसनाचार्य भी म. पार्श्वनाथका शीर्षक लेग्व 'अनेक तिवर्ष ५ किग्गा १२ मंगला भिवादन सकलापसविजयारूपसे करते है: २ देवो, नत्वमंग्रहकी भूमिका LXVIII, वादम्याय में सकलावसम्मणिवहा संवरणे व जस्म फिट्टति । २५. A D. दिया है। कामस्म तस्स मिडं फार्माणयंअं परूवेमो॥ ३ अप्रकाशित 'नागार्जुन और ममतन्द्र' शीर्षक मेग लेख। --धवला, फासाशियोगहार. ४ देखो, स्वामी समभद्र

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