Book Title: Anekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 385
________________ ३४२ अनेकान्त [वर्ष ६ वसु हाथ जोड़ कर बोला-"श्राज्ञा दीजिये मां! मैं पता न था कि पर्दे के पीछे क्या हो चुका है। और पर्वन ! हर श्रावश्यकता पूरी करूंगा ! मैं वचनबद्ध हूँ।" उमकी भी सुन लीजिये । कुम्हलाये हुए पुष्पकी भाँनि उदास मांकी पांखों में आंसू आगये बोली-बेटा बसु ! तुम है उसका चेहरा । सदा उत्तेजित रहनेवाला पर्वत श्राज राजा हो! गजमुकुट तुम्हारे मस्तक पर शोभित है!न्याय गंभीर बना हुश्रा है, यह लोगों के पाश्चर्यका कारण बन तुम्हारे हाथमें है! होगी किन्तु..........."माँ इसके आगे गया । यद्यपि मांने उसे सब समझा दिया था। ढाढस कुछ न कह सकी। उनका गला भर श्राया। बंधाया था किन्तु वह काँप रहा था। उसे विश्वास ही न "कहो कहो मां मैं सब कुछ करूंगा। तुम्हारी प्राशाका होता था कि वसु जैसा न्यायी राजा श्राज असत्यका समर्थन पालन मैं प्राणान्त तक करूंगा" वसु उत्तेजित हो उठा। करेगा। "तो सुनो बेटा" माँ कहने लगी । नारद और पर्वत वादी और प्रतिवादीपने पक्षका समर्थन कर चुके । आज राजसभाम शास्त्रार्थ के लिये श्रावेंगे। तुम्हें पर्वनकी मंत्रीने निवेदन किया-"वादी प्रतिवादी महाराजका मानरक्षा करना होगी"माँने प्राज्ञा देते हुए कहा। निर्णय चाहते हैं।" वसु चौंक उठा जैसे किमीने अकस्मात् "सो कैसे माँ ? वसुने प्रश्न किया । गाढ़निद्रासे उसे जगा दिया हो। "निर्णय" उसने पृछा । माँ बोली-"अजैर्यष्टव्यम्" के अर्थपर दोनों में विवाद "हाँ महाराज ! निर्णय" मन्त्रीने निवेदन किया । होगया है। मैं जानती हूँ पर्वतका पक्ष ठीक नहीं है फिर भी "निर्णय ! हाँ ! पर्वतका पक्ष ठीक है ! "महाराज" बेटा ! वह मेरा पुत्र है। उसकी पराजय मेरी और तुम्हारे नारदने अापत्ति की। हाँ श्राचार्यने ऐसा ही कहा था ! गुरुकी प्रतिष्ठामें बाधक होगी। इसलिये मेरे लिये और मेरे पर्वतका पक्ष ठीक है । मैं निर्णय देता हूं।" वसु गरज उठा । पति लिये तुम्हें मेरे पुत्रकी रक्षा करनी होगी। उसकी जय मानके माश और विकट गर्जन मनाटीमिसे घोषित करना होगा । समके यमुमाने जोर दिया। लोकसमूह कम्पित हो उठा! अकस्मात् पृथ्वी काँपने लगी और "किन्तु माँ!" वसुका सिंहासन डोलने लगा। नारद चिल्लाया-वसु! अपने "किन्तु परन्तु कुछ नहीं ! यही मेरी गुरुदक्षिणा है।" पदकी ओर ध्यान दो! तुम राजा हो! न्यायपति हो?" कहनी हुई मां प्रस्थान कर गई । वसु चिन्तित बैठा ही Tadaan रह गया ? कथन सत्य है, यज्ञादि कार्य के लिये प्राचार्यने अज शब्द + का अर्थ बकरा ही कहा था।" वसुके अंतिम वाक्यके साथ राजसभा भवन ठसाठस भग हुअा था । प्रजा इस विचित्र कोलाहल मनाई दिया । पृथ्वी काँप उठ।। शास्त्रार्थको देखनेके लिये अत्यन्त उतावली हो रही थी। वसु सिंहासन महित मञ्चसे नीचे श्रा पड़ा!! लोग जिज्ञासु थे वसुके निर्णयके | सर्वत्र विभिन्न मतोंकी नारद चिल्ला उठा-वसु अभी भी समय है, सम्हलो, पष्टि और समर्थन हो रहे थे। पर्वत और नारद दोनों एक तम राजा हो सोचो तुम्हारे ये असत्य वचन भोली जनताका गुरुके चेले दोनोंके पाण्डिल्यपर लोगोंको श्रद्धा थी। श्राज कितना अपकार करेंगे। उन्हें आश्चर्यकी ओर प्रवृत्त करेंगे। दोनोका शास्त्रार्थ होगा यही दर्शनीय बात थी। उनके हृदयों में असद्भावनाशोंके बीज वपन करेंगे । और 'महाराज वसुकी जय' के नारेके साथ राजा बसु काल पाकर वे बीज अकरित होकर विशाल वृक्षका रूप सिंहासनपर आरूढ़ हुश्रा । वादी प्रतिवादी उपस्थित हुए। धारण करेंगे और अपनी जड़ोंको सर्वत्र फैलाकर मोटी और नारदका मुखमण्डल दमक रहा था वह प्रसन्न था । उसे मजबूत बना लेंगे अंर फिर आप जानते हो क्या होगा? विश्वास था कि उसका कथन सत्य है। सत्यकी सर्वत्र होगा सर्वत्र हाहाकार ! धर्मका लोप हो जावेगा! अधर्मका विजय होती है । राजा वसु न्यायका अधिपति है । उसके साम्राज्य छा जावेगा, त्राहि त्राहिका करुणाक्रन्दन सर्वत्र न्यायकी सर्वत्र धूम है। वह सत्य निर्णय देगा । लोगोमें सुनाई देगा! नर पशु बन जावेंगे; हिंसा प्रबल अन हो सद्धर्मकी वृद्धि होगी।" नारद यह सोच रहा था किन्तु उसे जावेगा और......"और मानवताका संसारसे लोप हो

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