Book Title: Anekant 1944 Book 06 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 353
________________ परिषदके लखनऊ-अधिवेशनका निरीक्षण (श्री कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर') मैं भी परिषद में गया था। परिषद जैनियोंकी है वे चाहते थे कि स्वर्गीय स्वागताध्यक्ष श्री ला० मुन्नालाल और भारतकी मनुष्य-गणनाके रजिष्टरमें जिन जीका फोटोही गाड़ी में रहे और वे भी सबके साथ जैनियोंकी नामावली अंकित है, उनमें मैं नहीं, तो मैं जलूममें पैदल चलें, पर इमस्वागत समितिने नहीं माना। परिषद में क्यों गया था ? मेरे मनके निकट भारतीय अध्यक्ष का भाषण संक्षिप्त भी था और सुन्दर भी। संस्कृति व्यक्तिप्रधान है और यह संस्थावाद पश्चिमके विशेषता थी उम्मका विशाल राष्ट्रीय दृष्टिकोण, पर वह प्रवाहमें बहकर पाया कूड़ा-कचग है। मेरी संस्थाओंकी हिन्दी के किसी भी दैनिकमें नहीं छपा । यह हिन्दी अपेक्षा व्यक्तियों में अधिक दिलचस्पी रही है । माहू पत्रकाओंद्वारा परिषदके बहिष्कार की घोषणा है या शान्तिप्रसादजी और राजेद्रकुमारजीको और भी परिषद आफिसकी अयोग्यता ? निकटसे देखनेकी भावना ही मुझे परिषमें ले गई। परिषद का कार्य सुचारुरूपसे चल रहा था, पर वहाँ जानेका एक और भी आकर्षणथा श्री अयोध्या- भीतर ही भीतर दो चर्चाएँ भी घुमड रही थी-एक प्रसादजी गोयलीयसे मिलने की उत्कण्ठा। उनका यह कि परिषद एक सार्वजनिकसंस्थाहोकर भी एक धनी साहित्य पढ़कर उनसे मिलने को मैं बहुत दिनमे साहू शान्तिप्रसादजीके हाथों की कठपुतली बनगई है, बेचैन था और वे परिषदमें बारहेथे ! और भी बहुतसे उमने उसे धनसे खरीद लिया है और दूसरी यह कि मित्रोंके मिलन की सम्भावना थी-स्वागतममितिका समाजसुधारका अपना मुख्य कार्य परिषद ने छोड़ आग्रह भी था। मैं ७ अप्रैल को भाई कौशलप्रसादजीके दिया है और इस प्रकार वह लक्ष्यभ्रष्ट हो गई है। साथ लखनऊ पहुंच गया। साहूजीके नेतृत्वकी यह अग्नि-परिक्षा थी ! उन्होंने अप्रैल को परिषदके सभापति साहू शान्तिप्रसाद पहले ही दिन अधिवेशन समाप्त होते ही, वहीं पण्डाल में जी सुबह पारसल ऐक्सप्रेससे आये । स्वागतसमितिके ३०-३५ कार्यकर्ताओंकी एक अनियमित मीटिंग बुलाई लोगोंका अखण्ड विश्वास था कि पारसल लेट आयेगा मैं भी उसमें था। इस प्रकार की मीटिगोंका रूप प्रायः और इसिलिये वे स्टेशन पहुंचने में लेट रहे। पर गालियोंकी बौछारमें होता है, इस लिये मैने एक पारसल लेट न हुथा। साहूजीने फर्स्ट क्लासके वेटिंग- सीमा बाधने के विचारसे प्रारम्भमें ही कहा कि सारे रूममें अपनी व्यवस्था स्वयं की। इसके बाद स्वागत प्रश्न दो भागों में बटे हुए हैं। पहला यह कि परिषद समितिके लोग पहुँचे, उनसे मिले । मैंने बहुत देर आज क्या कर रही है ? और दूसरा यह कि युवक तक, चहुत तरह देखा कि साहूजीमें इसके लिए किसी कार्यकर्ता उसमें क्या कराना चाहते हैं? परिषदके तरह का क्षोभ न था-मनके किसी भी कोने में नहीं। कर्णधार पहली बातका उत्तर दें और हम लोग दूसरी सहारनपुर के शिक्षक्ष शिविरमें जब वे दीक्षान्त थात का, इसतरह बात सुगम सरस रूपसे स्पष्ट भाषण करने आये तब भी मैंने अनुभव किया था कि होजायेगी । इसे साहजीने भी पास किया और वे इस प्रकारकी भावनाओं से बहुत दूर हैं। सार्वजनिक दूसरे साथियोंने भी। प्रदर्शनोंकी अपेक्षा काममें विश्वास-अनुगग रखते हैं। जनरल सेक्रेटरी श्री गजेन्द्र कुमारजीने परिषदके नम्रता स्वभाव भी है और जीवन का एक मार्ट कार्यक्रमपर प्रकाश सला, पर मुझे ऐसा लगा कि भी। साहजीमें उसका पहला ही रूप मैंने देखा। युवक साथियों को उससे सन्तोष न मिला । तब दूसरे साथियासक्रेटरी श्री गजेन्द्र मुझे ऐसा लगान

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