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छप कर तैयार होगया
दि० जैन-संघ ग्रन्थमालाके प्रथम पुष्पका प्रथम दल भगवद्गुणधराचार्य प्रणीत कसायपाहुड
• यतिवृषभकृत चूर्णिसूत्र और स्वामी वीरसेन कृत जयधवला टीका तथा उनके हिन्दी अनुवाद सहित
दो वर्ष पूर्व अपनी धर्ममाता स्व० मूर्तिदेवीकी स्मृति में श्रीमती रमारानी धर्मपत्नी दानवीर साहू शान्तिप्रसादजी मियानगर के द्वारा द्वितीय सिद्धान्त प्रन्थ श्री जयधवलजीक प्रकाशनार्थ दिये गये २५०००) के दानसे संघने काशी में जो श्री जयधवलजी के प्रकाशनका काम प्रारम्भ किया था उसका प्रथम भाग छप कर तैयार होगया है । इसका सम्पादन अपने विषय के ख्यातनामा विद्वान पं० फूलचंद्रजी सिद्धान्त शास्त्री, पं० कैलाशचन्द्रजी सिद्धान्त शास्त्री और न्यायाचार्य पं० महेन्द्रकुमारजीने किया है। प्रारम्भमें ११२ पृष्ठकी विस्तृत हिन्दी प्रस्तावना है । विषयको स्पष्ट करने के लिये १५४ विशेषार्थ और सैंकड़ों टिप्पणी ही गई है। कागजके इस दुष्कालमें भी ६४ पौण्डके पुष्ट कागज पर छापा गया है। स्वरकी सुन्दर जिल्द है । -मूल्य-पुस्तकाकार १० ) शाखाकार १२) पोस्टेज खर्च अलग । कृपया कमीशन या किसी प्रकारकी रियायतकी माँग न करें। रेल्वे पार्सलकी जिम्मेदारी खरीदारकी होगी। बिल्टी श्री० पी० सं भेजी जायेगी ।
मन्त्री - जयधवला कार्यालय, स्याद्वाद जैन विद्यालय भदैनीघाट बनारस
कर्मफल कैसे देते हैं
प्रस्तुत पुस्तक में बहुत ही सरल भाषा में अन्य धर्मोके साथ तुलनात्मक ढंग से यह दिखाया गया है कि जीव अपने किये हुए कर्मोंका फल बिना किसी शक्ति-विशेष (ईश्वरादिके) स्वयं ही कैसे पाता है। कीमत ।)
Registered No. A-731.
भारतका प्रादि-सम्राट
हमारे राष्ट्र भारतवर्षका यह भारतमाता आज लोगों में फैली हुई ति अनुसार शकुन्तला और दुष्यन्तके पुत्र भरतके नाम पर न होकर हमारे आदि तीर्थकर भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रीके नाम पर भारतवर्ष पड़ा हुआ है, इस पुस्तकमें इमी विषयको वेद, उपनिषद, आदि प्रसिद्ध प्राचीन हिन्दू मन्थोंमे सिद्ध किया गया है। कीमत 12) दोनों पुस्तकें माथ मंगाने वाले सज्जन ।।।) मय पोस्टेज के भेजें। जैन प्रगति ग्रन्थमाता फोर्ट रोड सहारनपुर यू० पी०
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VEER SEWA MANDIR, SARSAWA. (SAHARANPUR)
मुद्रक, प्रकाशक पं० परमानन्दशास्त्री बीरसेवामन्दिर सरसावाके लिये श्यामसुन्दरलाल श्रीवास्तव द्वारा श्रीवास्तव प्रेस सहारनपुर में मुद्रित ।