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Registere N.. A-731. का कर नेगार होगया दि० जैन-मंघ ग्रन्थमालाके प्रथम पुष्पका प्रथम दल
भगवदगुणधराचार्यप्रणीत
कमायपाहड भा. पतिवृषभकृत चूर्णिमूत्र और स्वामी धीरमनन
जयपषला टीका तथा उनके हिन्दी अनुवाद महिम मी वर्ष पूर्व अपनी धमंगाना म्ब मनिदीको निमें श्रीमनी ग्मागनी धर्मपन्नी दानवीर मा शान्तिप्रवारी बालमियानगरक द्वारा विनीय मिद्वान्न प्रन्य श्री जयधवलजाक प्रकाशनाथ दिग -0000) के दानम मंचने काम जो श्री जयधवलजीक प्रकाशनका काम प्रारम्भ किया था जमका प्रथम भाग एप कर नेगार हागया है । इसका सम्पादन अपन विषयक स्याननामा विद्वान पं. फलचंदजी मिदान्न शादी. पं०कलाशचन्द्रजी मिद्वान्त शास्त्र और न्यायाचाय पं. महेन्द्रकुमारजीने किया है। प्रारम्भम.प्रत्रको विस्तृत हिन्दी प्रस्तावना है। विश्यको स्पष्ट करनेके लिये १५४ विशेषार्थ और मकड़ों टिप्पणी दी गई हैं। कागजक इमकान में भी ६५ पागर के पुष्ट कागज पर छापा गया है। खहरकी मुन्नर जिल्द है।
-मुख्य-- पुस्तकाकार -
शाहाकार पाम्टेज बच अलग। कृपया कमीशन या किसी प्रकारको ग्यायनकी मांग न करे रेव पामलको जिम्मेदारी खगदारकीहोगी। बिल्टीवार परम भजी जायेगी।
मन्त्रा-जगधवलाकागालय, मानापमानय मदनाचाट बनारम
ज़रूरत वारमधामन्दिर के लिये कोटयात समान जी कायम नन्पर हानेक माघ माथ म्यमारका मा हायका मचा भार मंत्रा-माहा। चनन माना नमार दिया जायगा। जो भाई पाना चाहन.भप्रदा नाच लिव पते पर पत्रव्यवहार करना चाहिये। मम्यान प्रेम सम्बन वाले जिम मानांकी दाट म को भाका मारयाहीना का गम शान मूचित करना नाहिये भौर मंस्थाका अमका प्रान कगनमगाद करना ना । यदि उनकी दृष्टि में क. गगाम विश को 41 पचिन मन रमाइया हो और वे उम संयाक लिये ३पयोगी समझनो उमभावा ना सकता है।
अधिष्ठाना 'वीरमवामन्दिर
मम्मावा जि. सहारापुर
Holdeluredfirmirman - VEER SEWA MANDIR,
SARSAWA, ISAHARANPUR)