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जैनसाहित्यका अनुपम आयोजन 'अनेकान्त' का टहत् विशेषांक वीरशासनाङ्क'
भागामी वीरशासनजयन्तीपर प्रकाशित (१) अनेकान्त संचालक मंडलने आगामी वीरशासनजयन्तीके राजगृहपर होनेवाले महोत्सबके अवसरपर लगभग ५०० पृष्ठका एक वृहत विशेषाङ्क प्रकाशित करनका जो आयोजन किया है उसका कार्य श्रारम्भ होगया है। समाज के उच्च कोटि के कई विद्वानोंने इसकी तैयारी शुरू करदी है । अतः साहित्यसे प्रेम रखनेवाल सभी विद्वानोंसे प्रार्थना है कि वे 'सम्मान-समारोह अंक' भ प्रकाशित विज्ञप्तिपरसे अपनी अपनी रुचिके अनुसार लेखोंक विषय चुनकर उनकी सुचना शीघ्र ही देने की कृपा करें, जिससे एक ही विषयकी तैयारीमें अनेक व्यक्तियोंकी शक्ति न लग सके ।
(२) विशेषाङ्कके संकलन और सम्पादनका कार्य कई विद्वान कर रहे हैं अतः मभी व्यक्तियोंका कर्तव्य है कि वे उन विद्वानोंकी प्रेरणापर उन्हें वीरशासन-सम्बन्धी साहित्य व अन्य जानकारीके संकलनमें अपना पूरा सहयोग प्रदान करें।
(३) विशेषाङ्ककी पृष्ठसंख्या अधिक होनेके कारण छपने में समय अधिक लगनेकी मम्भावना है अतः जिन लेखक महोदयोंने अभी तक अपने लेख नहीं भेजे हैं उन्हें अब शीघ्र ही १५ अप्रैल तक भेजनेकी कृपा करनी चाहिये और यह सूचना तो तुरन्त ही दे देनी चाहिये कि उनका लेख कच तक पहुँच जायेगा।
(४) युद्धके कारण कागज आदिको भारी मॅहगाई और बहुत बड़ी कठिनाई होनेसे यह विशेषाङ्क ग्राहक-संख्या के अनुरूप परिमित संख्या में ही छपाया जायेगा. अतः जो मज्जन अपने तथा अपनी ओरसे दृसगेको भेंट करने या फ्री भिजवाने के लिये जितनी कापियाँ रिज़र्व कराना चाहे वे उनका आर्डर १५ अप्रैल तक अवश्य भेज देवे । अंक छपना प्रारम्भ होजाने के बाद फिर अधिक कापियाँ किमीको देने में हम अममर्थ हो जाएँगे। मूल्य विशेषांकका पूर्व सूचनानुसार ५)रुपयेसे कम नहीं होगा। हाँ, इसी मुल्यमें वर्तमान छठे वर्पका पूरा चन्दा देने वाले ग्राहकोंको सातवें वर्ष के शेष अंक फ्री दिये जायेंगे । अनः इस वर्प अनेकान्तके प्राहक बनने वालोंको विशेष लाभ रहेगा।
आशा है जैन साहित्यके इस अनुपम आयोजनके प्रोग्राममें हमें मारी ममाजका पूर्ण सहयोग प्राप्त होगा।
चिनीतकौशलप्रसाद जैन, मानरेरी व्यवस्थापक
कोटे रोड, महारनपुर (टाइटिल के दूसरे पृष्टका शेषांश) श्री भाई दौलतरामजी 'मित्र' इन्दौने समस्त जैन
प्राभार पारमार्थिक संस्थानोंके परिचयका गुरुतर काम अपने हाथमें लिया- चुनाचे उनकी तरफसे एक 'श्रावश्यक निवेदन'
मेरे ज्येष्ठ भ्राता चौधरी ला हींगनलालजीका, कुछ भी इसी किरण में प्रकाशित होरहा है। उनके कार्य में ममी
महीनोंकी बीमारी के बाद, गत ता. ३ मार्च सन् १६४४ स्थानोंके दिगम्बर-श्वेताम्बर भाइयोंको पूरा सहयोग देना
को ७२ वर्ष की अवस्थामें चित्तकी पूरी सावधानीके साथ चाहिये। इसी तरह दूसरे उत्पाही सज्जनोंको भी कुछ
देहावमान होगया है। इस दुःखद समाचारको पाकर जिन कार्योंका भार अपने ऊपर लेकर उसकी शीघ्र सूचना देनी
मित्रों एवं मजान मेरे इस वियोगजन्य दुःखमें अपनी चाहिये।
समवेदना और सहानुभूति प्रकट करते हुए मुझे पत्र भेजे श्राशा है वीरशासन-सेवाके इस महान पुण्य यज्ञमें हैं और भाईजीकी पात्माके लिये परलोक में सुख-शान्तिकी वीरभक्त होड बोध-बोधकर भागे भाएँगे और अपने पुरु. कामना की है उन सबका मैं हृययसे आभारी हूं। पार्थद्वारा कठिन कार्यको भी सुगम तथा बहुसमय-साध्यको
जुगलकिशोर मुख्तार