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अनेकान्त
[वर्ष ६
उसकी इस सेवाका कोई मूल्य नहीं और यह अमूल्यता के नये हथियार दान करता है, तीसरा अपने ही भाक्रमशउस समय और भी बढ़ जाती है जब यह मालूम होता है में घायल हुए सैनिकीकी महम-पट्टीके लिये दो लाख कि वह उद्धार पाया हुश्रा मनुष्य एक राजाका इकलौता हायेकी दवा-दारूका सामान दान करता है और चौथा पुत्र है और उद्धार करने वाले साधारण गरीब आदमीने बंगाल के अकाल पीडितों एवं अशाभावके कारण भूख से बदलेमें कृतज्ञता-रूपसे पेश किये गये भारी पुरस्कारको तड़प-तड़पकर मरने वाले निरपराध प्राणियोंकी प्राणरक्षा भी लेने में अपनी असमर्थता व्यक्त की है। ऐसा दयादानी के लिये दो लाख रुपयका अन्न दान करता है। बतलायो मात्मत्यांगी मनुष्य लाखों रुपयोंका दान करनेवाले दानियों
__ इन चारों में बड़ा हानी कौन है ? अथवा सबके दान-द्रव्यकी से कम बड़ा नहीं है. वह उससे भी बड़ा है जो पुरस्कार मालियत दो लाख रुपये समान होने सब बराबरके दानी में प्राधे राज्यकी घोषणाको पाकर अपनी जानपर खेला हो है--उनमें कोई विशेष नहीं, बडे-छोटेका कोई भेद नहीं है?' और ऐसे ही किमी इबते हुए राजकुमारका उद्धार करने में यह सुनकर विद्यार्थी कुछ भौचकसा रह गया और समर्थ होकर जिसने अाधा राज्य प्राप्त किया हो। इसी उसे शीघ्र ही यह समझ नहीं पड़ा कि क्या उत्तर दूँ, तरह सैनिकों द्वारा जब लूट म्यमोटके साथ कलेश्राम हो रहा और इस लिये वह उत्तरकी खोज में मन-ही-मन कुछ हो तब एक गजाकी अभय-घोषणाका उस समय रुपयोंमें सोचने लगा--दूसरे विद्यार्थी भी सहसा उसकी कोई मदद कोई मुख्य नहीं रोका जा सकता--बह लाखों. करोडों न कर सके--कि इतने में अध्यापकजी बोल उठे-- और अरबों-खों रुपयों के दानसे भी अधिक होती है. और 'तुम तो बड़ी सोच में पड़ गये हो! क्या तुम्हें दानका इसलिये एक भी रुपया दान न करके ऐसी अभय-घोषणा- ___ स्वरूप और जिन कारणोंप दान में विशेषता भाती है-- द्वारा सर्वत्र अमन और शान्ति स्थापित करने वाले को छोटा अधिकाधिक फल की निप्पत्ति होती है--सनका स्मरण नहीं दानी नहीं कह सकते। ऐसी ही स्थिति नि:स्वार्थ-भावसे है? और क्ण तुम नहीं समझते कि जिस दानका पल देश तथा समाज-सेवाके कार्यों में दिन-रात रत रहने वाले बड़ा होता है वह दान बड़ा है और जो बड़े दानका दाता
और उसी में अपना सर्वस्व होम देने वाले छोटी पूँजीके है वह बड़ा दानी है? तुमने तत्वार्थपूत्रके मारवें अध्याय व्यक्तियोंकी है। उन्हें भी छोटा दानी नहीं कहा जासकता। और उसकी टीकामें पढ़ा है--स्व-परके अनुग्रह-उपकारके
अभी अध्यापक वीरभद्रजीकी व्याख्या चल रही थी लिये जो अपनी धनादिक किसी वस्सुका त्याग किया जाता और वे यह सट करके बतला देना चाहते थे कि 'क्रोधादि है उसे 'दान' कहते है. और दानमें विधि, इन्य, दाता कषायों के सम्यक् स्यागी एक पैसे का भी दान न करते हुए और पात्रके विशेषसे विशेषता भाती है--दानके तरीके कितने अधिक बढ़े दानी होते हैं कि इतने में उन्हें विद्यार्थी दानमें दी जाने वाली वस्तु, दाताके परिणाम और पाने के चेहरे पर यह दीख पड़ा कि कि 'उसे बड़े दानी की व.लेमें गुगा-संयोगके भेदसे दानके फल में कमी येशी होती अपनी सदोष परिभाषा पर और अपने इस कथन पर कि है तब इस तात्विक दृष्टिको लेकर तुम क्यों नहीं बतलाते उसने बड़े छोटे के तत्व को खूब अच्छी तरह से समझ कि इन चारोंमें दान द्रव्यकी अपेक्षासे कौन बड़ा है?' लिया है कुछ संकोच तथा खेद होरहा है', और इम लिये अध्यापकजीके इन प्ररेणात्मक शब्दोको सुनकर विद्यार्थी उन्होंने अपनी पाख्याका रुख बदलते हुए कहा -
को होश आ गया. उसकी स्मृति काम करने लगी और 'अच्छा, अभी इस गंभीर और जटिल विषय को हम इसलिये वह एक दम बोज पदा-- यहीं रहने देते हैं-फिर किसी अवकाशके समय इसकी इन चारोंमें बड़ा दानी वह है जिसने बेबसीकी हालत स्वतन्त्र रूपसे व्याख्या करेंगे-और इस समय तुम्हारी में पड़े हुए बंगालके अकालपीवितोंको दो लाख रुपयेका समान मालियतके दान-द्रग्यकी बातको ही लेते है। एक अच दान किया है।' दानी सेनाके लिये दो लाख रुपयेका मांस दान करता है, * अनुग्रहाथै स्वस्थातिसों दानम् ॥३८॥ दसरा मामबके लिये उचत सेनाके वास्ते दो लाख रुपये विधि-द्रव्य-दात-पात्र-विशेषाद्विशेषः ॥ ३६॥ तासु०