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किरण ५ ]
तुम ढाल रहे जीवन क्षण-क्षण
श्री ओमप्रकाश, सरसावा
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तुम ढाल रहे जीवन क्षण क्षण ! भगवान वीरके अनुगामी, 'युगवीर' बने इस जीवनमें। बन सत्य अहिंसा के बाइक. सन्देश दे रहे कण कण में । जिससे समाज में है सिहरन !
साहित्य स्वरोंपर गाते हो, तुम अनेकान्तका श्रमरगान । पुरुषार्थहीन मानव जिससे
पाता पग पग पर नवल प्राण ।
भरते मानव मनमें स्पन्दन !
तव कीर्ति प्रभासे आलोकित मज्जुल 'सेवा मन्दिर' विशाल । बह रही शोध-सरिता, जिसमें नव वीर ज्ञान मुक्ता प्रवाल । निश्चिन्त करे कोई मज्जन !
तुम पुरातत्व अनुसन्धाना सद्ग्रन्थोंका करते सुधार । मज्जुल श्रीतके चित्र बना दिखलाते जगको चित्रकार ।
सेवा समाजकी तत्र चिन्तन ! हेनी
हे
हे त्यागमूर्ति, मौके सपून पंकिल नगरीके पद्म कोष, हम रङ्कोंकी उज्वल विभूत । चिरजीवी तेरा यश-जीवन ।
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दे डाला है तुमने जीवन, जीवन समाज में लानेको । सर्वस्व किया अपना अर्पण, प्रिय धर्मध्वजा फहरानेको ।
तत्र ऋणी बना 'आकुल' कण कण |
कवि-वाणी
तुम ढाल रहे जीवन क्षण क्षण ।
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जय जय जुगलकिशोर !
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श्री बुद्धिलाल आवक देवरी
निद्रित जैन समाजको जाग्रित कियौ विभोर । जियहु जियहु. जुग जुग जियहु, जय जय जुगल किशोर ॥ १॥ सरसावा शहरमें, सेवा मन्दिर सार । जिन धुनि निगम निवास ते जिनमंदिर उनहार ॥ २ ॥ शोध बोधमेह निपुण अति, पंडित परम प्रवीन । जिन धर्मी मरमी अमित, सत्य सिन्धु स्वाधीन ॥ ३ ॥ लेखक आलोचक सुकषि, जैन जगत विख्यात । धन्य धन्य तुम धन्य हौ, धन्य मानु पिमुखात ॥ ४ ॥ गुण गाथा है आपकी, अगनित सुगुन निकेत । मैं लघु मति नहिं लिख सकों, परिमित शक्ति समेत ॥ २ ॥ अरे! शोक की हर्ष सौ. जोड़ी रहत चूक अतः याद आ ही गई, शोक थोककी हूक || ६ || जज्जा जिनके आदि में, श्रीमन् जम्बुप्रसाद जैनी जुगल किशो. जी, श्रीवर जोतिप्रसाद ॥ ७ ॥ तुलना चारितकी लही. श्रीमन् जम्बुप्रसाद । सम्यक ज्ञान पुनीत वत, श्रीयुत जोतिप्रसाद ॥ ८ ॥ मुए, कालवश, सुर हुए; हा ! हा!! चारित ज्ञान । बचे शेष सम्यक्त्ववत, जुगलकिशोर सुजान ॥ ६ ॥ यदि होते दो आत्मा, जम्बु जोतिप्रसाद । तब सौ हो तो आज दिन, सहस गुणित अहलाद ॥ १० ॥ अहो ! हर्षमें शोककी, चरचा अशुभ सरूप । तो भी मन मानी नहीं, चंचल अतुल अनूप ॥ ११ ॥ माने द्रगहू नेकु नहिं, सहसा हुए सनीर । बिसरायें बिसरो नहीं, हा ! वियोगकी पीर ॥ १२ ॥ फिर भी यह संतोष अब, मानौ जैन समाज ।
समकित बल बहुते बने, ज्ञान चरित भी आज ॥ १३ ॥ इन्द्र लोकमें इन्द्रवत जम्बू जोतिप्रसाद । सबकी हमको दे रहे हार्दिक आशिरबाद || १४ || अरे ! शोक जो पासमें, परौ हतौ प्राचीन । बना हर्षमें आज सो, नौवम नव्य नवीन ॥ १२ ॥ तातें यह शुभ कामना, जैनी जुगलकिशोर जैन जाति अवलम्ब जो, जीवहिं बरस करोर ।। १६ ।। जय जय जुगल किशोरजी, जैन जातिके वीर । जिन बामी सेवक चतुर, जय जय साहस धीर ॥ १७ ॥