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अनेकान्त
[वर्षे ६
सुखा डालता है।
अतः श्रात्मोन्नति करके हमें स्वावलम्बन और (५) वायुद्वारा बिना किमी यन्त्रके संदेशप्रक्षेपण- स्वाभिमान सीखना चाहिये । अपनी आत्मिक
यहांके योगी बिना किसी यंत्रके वायुद्वारा सन्देश शक्ति पर भरोसा रखना चाहिये । किसी दूसरी शक्ति भेज देते हैं और मँगा लेते हैं । श्रीमतीजीने इसकी पर ही अपने आपको सुपुर्द कर देना अहितकर तथा पुणिमें कई प्रत्यक्ष देखे हए उदाहरण भी दिए हैं जो अनुचित है। स्थानाभावके कारण छोड़े जाते हैं। (६) एक योगी दूमरे योगीक शरीरमें भी प्रवेश
जसे लगभग ढाई हजार वर्ष पहले, लोगोंका कर सकता है भार वैसी ही शकल बना लेता है।
विश्वास अपनी श्रात्मशक्ति परसे सर्वथा हट कर (७) बिना बताये मनकी बात जानना
केवल किन्हीं दूसरी देवीशक्तियों पर जम गया था। आप लिखती हैं कि वे योगी बिना बताए मनकी
लोगोंने अपना भाग्यनायक किसी देवीक्ति-ईश्वर बात जान लेते हैं। आपन कई उदाहरण भी, अपने आदिको ही समझ रक्खा था। उनका दृढ़ विश्वास साथ व्यवहारमें आए हुए, दिए हैं।
सा होगया था कि हम कुछ नहीं कर सकते । वे स्वयं मेरा इतना विस्तारसे लिखनका तात्पर्य यह है
पाप कार्य करते और उनका उत्तरदायित्व ईश्वर आदिक कि आत्मिक शक्ति एक बड़ी भारी शक्ति है। जबकि
सिर मढ़ देते । वे गत दिन ईश्वर तथा अनेक कल्पित साधारण सी आत्म-शक्तिक द्वारा ही हम ऐमे ऐसे
देवी-देवताओंको प्रसन्न करने में ही उद्यमशील रहते चमत्कारपूर्ण कार्य कर सकते हैं, तो पूर्णशक्तिकी तो
थे। अपनी आत्मशक्तिको भूल चुके थे । उसी समय बात ही अलग रही । हम इसकी सर्वोच्च दशापर पहुँच
क्रान्ति-उत्पादक, भगवान महावीरने अवतार लेकर कर, परमात्म-पदको प्राप्त करके अनन्त दर्शन, अनन्त
आत्मविश्वास मिखलाया और डंककी चोट बतलाया
कि कोई दैवीशक्ति आत्मदेवके पुजारीका कुछ नहीं ज्ञान, अनन्त सुख तथा अनन्त वीर्यके भोगी बन सकते हैं। इस आवागमनरूपी अगाध संसारसे पार होसकते
बिगाड़ सकती। उन्होंने स्वयं श्रादर्श रूप बन कर हैं। सच्चा सुख, आत्मिक बलसे ही मिलता है। इस
संसारको दिग्बाया कि यह है वह आत्मिक-शक्ति ! लिए यदि हमें सच्चे सुखकी इच्छा हो तो आत्मो
जिसने मुझे आज आत्मासे परमात्मा बना दिया हैं। अति करके आत्मिक बल प्राप्त करना चाहिए। इसे प्राप्त
उसी समयको लक्ष्य करके किसी कविने क्या ही करनेके लिए हमें क्रोध, मान, माया, लोभ आदि
अच्छा लिखा हैकषायोंका परित्याग करनेका प्रयत्न करना होगा तथा ईश्वर ही ईश्वर रात-दिन होती थी रटाई। .. अहिंसा, सत्य, संयम, अस्तेय तथा अपरिग्रह इत्यादि
कर्ता वही, हम कुछ नहीं,मन क्लीवता आई ।। सद्-ब्रतोंका पालन करना होगा । हमें सप्रन्थोंका
पुरुषार्थ-हीन हो गए थे, मुर्दनी छाई। मनन करना चाहिए तथा सर्व जीवोंपर मैत्रीभाव रंगे सियारोंने ग़ज़बकी लूट मचाई। रम्बना चाहिये । दीन, दुखी, निःसहाय तथा अज्ञानी आत्मा स्वयं ईश्वर, 'अहं' का पाठ पढ़ाया। जीवोंपर दयाभाव रखना चाहिए और उनकी सहायता
श्रीवीरने आ हिन्दको सोतेसे जगाया ।। करनी चाहिए। क्योंकि दया ही सर्व सुकार्योंका मूल
अब मैं अधिक न लिख कर यहीं विराम लेता है। दयासे आत्म-विकास होता है और आत्मिक हैं। आशा है इतने परसे ही साधारण पाठकोंको इस शक्ति बढ़ती है। बिना दयाके आत्मोन्नति करनेके विषयका कुछ आभास मिल सकेगा कि आत्माकी सब साधन-जप, तप, तीथे आदि व्यथे हे। कहाभी है- शक्तिका कितना माहात्म्य है और वह कैसा मका मदीना द्वारिका बदरी और केदार ।
वर्णनातीत है। बिना दया सब जूठ है, कहैं मलूक विचार ।