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भ० महावीरके विषयमें बौद्ध-मनोवृत्ति
(ले०-६० कैलाशचन्द्र शास्त्री)
जनवरीकी 'विश्ववाणी' में बुद्धकै दुःखवादका भौतिक किन्तु क्यों ? क्या महावीर दुनियासे भागनेवाले हैं. प्राधार' इस शीर्षकके साथ भदन्त शान्ति भितुका एक इसीलिये उनकी विचारधाराके अनुसार दुनियाकी समस्याएँ लेख प्रकाशित हुया है, जिसमें प्रापने कुछ वादरायण नहीं सुलझाई जा सकतीं ? यह सत्य है कि महावीर सम्बन्ध जोडकर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि दुनियाके जंजालमें नहीं फैमे । यह भी सत्य है कि परिणाय 'जीवनके लिये रोटीका सवाब पहला है और मनुष्यसमाज की वार्ताको उन्होंने हँसकर टाल दिया । किन्तु राजकुमार का दु:ख स्वार्थमूखक संघर्षके कारण है। इन दो बातोंके सिद्धार्थने तो विशह किया, भोग भोगे, फिर क्यों उन्हें साथ बुद्धका दुःखवाद बँधा हुधा है, इन्हें अलगकर बुद्धका उनसे विरक्ति हुई? क्यों उन्होंने यशोधरा जैसी पत्नी दुःखवाद समझा नहीं जा सकता।' पाएके इम विचारका और राहुल जैसे बालकका परित्याग करके उसी मार्गका सयुक्तिक मालोचन फर्वरीकी विश्ववाणीमें किया जा चुका अवलम्बन लिया को महावीने पहलेसे ही अपनाया था? है। भिक्षुजी बौद्धधर्म माने हुए विद्वान कहे जाते हैं अतः क्या दुनियाकी समस्याएं सुलझाने वालेको रोग और बुढ़ापे उन्होंने बौद्ध धर्मके तत्वोंका भालोडन करके यदि बुद्धके से इतना डरना चाहिये था ? कमनीय कोमलानियोंके मुख धर्मको केवल रोटीका सवाल हल करने वाला पाया हो तो से निसृत लाला जलसे इतना अस्त होना चाहिये था? हमें इसमें आपत्तिकी जरूरत नहीं । किन्तु आपने अपने प्राजका समाजवादी तीन पातीपर से बिना नहीं रह लेखमें बौद्धतर धर्मों और उनके प्रवर्तकोंके ऊपर जो कृपा सकता। की है वही यहां बापत्तिका विषय है।
असल में प्राचीन भारतके सामने रोटीकी समस्या ही भिक्षुजी अपने लेखकी भूमिकामें इतर धर्मोंकी विचार नहीं थी। जो समस्या प्राजकी दुनियाको--उसमें भी धाराको तुच्छ बतलाते हुए लिखते हैं
मुख्यतया भारतको बेचैन किए हुए हैं, प्राचीन भारतको "प्राचीन युगके श्रमण दार्शनिक जिनकी परम्परा बच उनका स्वम में भी भान न था। अकृष्टपच्या शस्यश्यामला रही है वे हैं जैन। इनके अन्तिम तीर्थकर महावीर स्वामी भारतभूमिके वक्षस्थलपर क्रीड़ा करने वाले उसके पुत्रइतने अधिक दुनियासे भागने वाले हैं कि उनकी विचार- पुत्रियोंके लिये धन-धान्यकी कमी नहीं थी, इसीसे वे धाराके अनुसार दुनियाकी समस्याएं सुलझाई नहीं जा सर्वदा उस ओरसे उदासीन रहते थे। किन्तु सुखकी नदी सकतीं। हाँ,कठोर तपद्वारा कायपीवन ही किया जा सकता में किलोलें करते हुए जब कभी किसीको रोग, बुढ़ापा है। इन श्रमणों और मााणोंने त्याग और अपरिग्रहकी जो और मृत्युरूती मगरमख भाकर प्रस लेता था तो वे बनी बनी बातें की है उनको प्रादर्शवाद कहकर चाहे ___ लाचार होजाते थे। उनके पास सब कुछ था किन्तु इन जिसना सराहा जाए पर दुनियाके लिये उनका मूल्य बहुत मगरमच्छोंकी समस्या मुंह बाये उनके मामने खड़ी रहती ही कम है। भाज वेदोंका कर्मकाण्ड, उपनिषदोंके विचार थी। पता नहीं, कब किसको कोई मगरमच्छ ठाकर ले सांस्योंका ज्ञानमार्ग और तीर्थकरोंकी दुःखमयी चर्याका जाय । यही उस समयकी प्रधान समस्या थी और उसी सुझाव हमारे कौतुकको भले ही कुछ शान्त कर सके पर ___ को सुलझानेका प्रयत्न उस समयके महापुरुषोंने किया था। उससे हमको इस प्रकारकी दृष्टि नहीं मिल सकती जोपाज सबका एक ही लक्ष्य था--प्रशाश्वत सुखकी पोरसे हमारी उलझनोंको सुलमाने में मदद दे।"
मनुष्यकी चित्तवृत्तिको हटाकर शाश्वत सुखकी और लगाना