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=[कवि-वाणी ]=
स्वागत
प्रणाम प्रो० श्री गयाप्रसादजी शुक्ल एम०ए.
श्री अखिलेश'ध्रुव अर्चना, सत्कार, स्वागत आज वागी-वन्दना-रत, साधकोंका समुद स्वागत हे प्रतिभाके वरद पुत्र, तुमको प्रणाम, शत शत प्रणाम !
हो तुम्हें स्वीकार श्रागत! भावनाएँ उतर स्वर में
कुछ है जो धनकी माया पर हृदयमें कुछ गीत नीरव
रहते हैं दिन श्री रात लीन ! नयनमें श्रद्धाजनिन हर्षाश्रु
कुछ हैं जो यशकी ममतामें अंजलि विमल अभिनव
रहते हैं दिन श्री रात लीन । कर न आकर्षित सकेंगी सत्य ही हे साधना-रत! धनमें यशमें मदमायामें तुम विद्वहर निस्पृह प्रकाम!
अर्चना, सत्कार, स्वागत ! | यह नमित तरु-राजि सुमनाबलि
हे प्रतिभाके वरद पुत्र, तुमको प्रणाम, शत शत प्रणाम ! अरुणिमा • सान्ध्य कुकुम
नित नूतन ग्रंथोंके सष्टा, विहग-रवकी शंख-ध्वनिसे
नित नूतन भूलोके शोधक, प्रकृतिका अविराम वन्दन ।
नित नूतन तत्वोंके खोजी, भावना-नीराजना-सा अमर हो नव वाङ्मय ब्रत !
निततूतन भ्रमके उद्बोधक, अर्चना, सत्कार, स्वागत ! श्राज वाणी-वंदना-रत, साधकोंका समुद स्वागत साहित्य सृष्टि, इतिहास-शोध, यह ही चिन्ता बस सुबह शाम ! हो तुम्हें स्वीकार, श्रागत !
॥ हे प्रतिमाके बरद पुत्र, तुमको प्रणाम, शत शत प्रणाम !
-: अभिनन्दन :जैन जाति के उज्ज्वल रत्न , श्री काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित' विचक्षण, साधु-व्रती, 'युगवीर', शोध-शशि-करके मुग्ध चकोर ,
धुरंधर पंडित, नम्र महान , वीर-सेवा-मन्दिरके श्रेष्ठ
सतत साहित्य-गगनके चाँद , तपस्वी, साधक, जुगलकिशोर ।
भारतीके हँसते-से प्राण । नियन्ता जैनधर्मके, दिव्य समालोचक. उद्भट विद्वान , विचारक, अनुसंधाता, उच्च भावनाओंके शुभ पाहान । चक्रवर्ती, साहित्यिक वीर, चतुर लेखक. कवि प्रतिभावान , कर्मयोगी, स्यागी, समुदार, सरल मृदुभाषी, निराभिमान । राष्ट्र-उन्नतिके ऊँचे स्तम्भ, देश-सेवाके निर्मल स्रोत,
धर्मके सचे संरक्षक, बुद्धि विद्यासे प्रोतःप्रोत । महात्मा, सम्पादक सम्राट् ,
कला-कृतियोंसे करके पूर्ण, मात्र प्राणीके सहृदय मित्र ।
मातृ-भाषाका शुभ भण्डार; रहेंगे युग तक शोभावान
जिये युग युग श्रीजुगलकिशोर , आपके सब साहिस्थिक चित्र ।
देर तक करें देश उपकार ।