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अनेकान्त
[वर्षे ६
ढीले ढाले लाल किनारे वाले कपड़े पहनते थे तथा और प्रत्येक जातिके लिए अलग अलग रंगके वस्त्र ब्राह्मणोंसे पृथक् भाषा बोलते और ब्राह्मणोंकी भाषा आभूषण नियत थे। इनमें लाल रंगके क्षत्रिय थे वे को लिष्ट बताते थे और खुले हुए युद्ध के रथोंपर - या तो लाल रंगके कपड़े पहनते थे या लाल किनारे सवारी करते थे।भाला धनुष श्रादि हथियार रखते थे।की धोती बांधते थे। जिस प्रकार ताण्ड ब्राह्मणमें
इस कथनसे इनका क्षत्रिय होना प्रगट होता है। ब्रात्योंका वर्णन है हूबहू वैसा ही कथन लिच्छवियों वहाँ इनके आश्रित भृत्यादिकोंका भी कथन है जिससे का कथन रमेशचन्द्रदत्तजीने किया है। विदित होता है कि ये लोग अपने आश्रितोंको मड़ा खुशहाल रखते थे। इनके भृत्यादि खूप जेवर आदि
भारतीय इतिहासकी रूपरेखाके पृष्ठ ३४६ में
प्रो. जयचन्द्रजी विद्यालंकारने लिखा है कि "इस पहिनते थे और हष्ट पुष्ट होते थे। (ताण्ड ब्राह्मण १७१-५)
वातका निश्चित् प्रमाण है कि वैदिक मार्गसे भिन्न
मार्ग कुछ और महावीरसे पहिले भी यहां थे। श्रहंन्त प्राचीन भारतीय सभ्यताके इतिहासमें बाबू
लोग बुद्ध के पहिले भी थे और उनके चेले भी यहाँ रमेशचन्द्र दत्तजीने लिच्छवि लोगोंका वर्णन किया
थे। इन आहेतोंके अनुयायी व्रात्य कहलाते थे। है और लिखा है कि “जब भगवान बुद्ध वैशालीमें
जिनका उल्लेख अथर्व वेदमें है । लिच्छिवि लोग गये तो लिच्छवि लोग अपनी प्रजा व सैनिकों सहित
प्राचीन भारतकी एक प्रसिद्ध व्रात्य जातिके थे।" उनके दर्शनको गये जिनमेंसे कुछ काले थे जो काले कपड़े पहनते थे कुछ भूरे थे वे भूरे वरु पहिने हुए थे इसी लिच्छवि वंशमें भगवान महावीरने
और जो लाल रंगके थे वे लाल कपड़े अथवा लाल अवतार लिया था। लिच्छवि वंशकी ही एक शाखा किनारीकी धोतियां पहिने हुए थे।" इससे ऐसा प्रतीत ज्ञातृवंश थी। इसीसे भगवान महावीरको ज्ञातपुत्र होता है कि उस समय रंगके अनुरूप जातियाँ थीं (नातपुत्त) कहते हैं।
गद्य-गीत
(ले०-श्री'शशि'
कारीगर ! क्या बना रहे हो तुम यह ? 'यह कायर यंत्र है। बड़ा सुन्दर है, क्या करेगा यह यंत्र ? 'जनताके प्राणोंकी रक्षा !' तुम्हें इसकी बनवाई क्या मिलेगी कारीगर ? 'बनवाई नहीं"पुरुस्कार मिलेगा'
एक दिन जनता अपने अधिकार हठपूर्वक मांगने एकत्रित हुई।
भीड़को हटाने के लिये 'कायर यंत्र' का इस्तेमाल
हुचा, यंत्र तूफानी गतिसे गोलियाँ बरसाने लगा."
और लहू-लुहान जनता कराहती दमतोड़ती धरतीपर गिरने लगी।
कारीगर ! यह सब कुछ न देख सका और पागलसा अपने 'यंत्र' की ओर बढ़ा।।
कई गोलियाँ एक दम ठीक छातीपर पड़ी। दूसरे ही क्षण कारीगर पृथ्वीकी छातीपर लोटने लगा।
क्यों कारीगर ! यह क्या ? भस्फुट लड़खड़ाते दमतोड़ते कारीगर बोला... 'मेरी कलाका सही पुरुस्कार !!