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मेहमानके रूपमें (श्री लाला ऋषभसैन जैन, सहारनपुर )
उस दिन मैं बाहर से आया, तो देखा कि भाई क्यों कि वे किसीको कोई कष्ट नहीं देते । उनकी जरूप्रभाकरजी हॉल कमरे में बैठे एक बहरधारी वृद्धस रतें बहुत ही कम हैं और वे खुद ही उनकी व्यवस्था बातें कर रहे हैं। मैं उनके पामसे होकर, विना इधर कर लेते हैं। आकर्षित हुए भीतर चला गया। भीतर जाते ही विद्वत्तार्क वे विन्ध्याचल हैं और नम्रताक पाताल मालूम हुआ कि वे खहरधारी सज्जन पं० जुगलकिशोर उन्होंने अपने जीवनमें दूरके इन दो कोनोंको बड़ी जी मुख्तार हैं, तो मुझे अपने व्यवहार पर बहुत सुन्दरताके साथ मिला रहा है और तभी तो संकोच हुआ। तुरन्त लौट कर मैं पण्डितजीस मिला, वे सच्चे अर्थोंम युग-बीर हैं। पर पण्डितजीकी किसी बातसे भी यह सिद्ध न हुआ कि उन्होंने मेरा या पाससे निकल जाना फाल किया।
बड़े अच्छे हैं पण्डितजी वे असलम निरभिमान और सरलताकी साक्षात् (कुमारी श्री शारदा जैन, सहारनपुर) मूर्ति हैं।
एक ऐसा आदमी, जिसने 'अनेकान्त' में मुख्तार पण्डितजी जब कभी दो दिनके लिये भी बाते साहबको बड़े २ विद्वानोंसे इतिहासकी किसी गुत्थी हैं तो अपना छोटामा बिस्तर माथ लाते हैं कि किमी पर बहस करते देखा हो, कहीं गस्तेमें अचानक को कष्ट न हो। उनका बिस्तर एक टाटमें लिपटा बन्द गलका पट्ट या माटी खादीका कोट और रहता है और उसे देखकर मेरी छोटी बहन सुधा बहत । मामूली धोती पहन, और अपना झोला लिये जाता, हंसती है। या प्रेसके बाहर अपने लेखका प्रफ पढ़ते देखे, तो वह
हम बच्चोंमे पण्डितजी खूब बातें करते हैं और अनुमान नहीं कर सकता कि ये दोनों रूप एक ही उनसे बातें करनमें हम सबका मन खूब लगता है।
आदमीके है। मुख्तार महोदय असलम समुद्रको तरह उस दिन मैं उन्हें भोजनके लिये बलाने गई. तो मैंने गम्भीर हैं।
पूछा कि आप क्या क्या माते हैं ? पण्डित जीसे बातें करने में बड़ा लुत्फ आता है। हंस कर बोले-"म्यानेकी सब चीजें खाता हूँ।" वे अपनी खूब कहते हैं और दूसरेकी खूब सुनते हैं "आलू भी खाते हैं ?" और कहने में भी हमते हैं और सुनने.. भी।
"हाँ, आलू भी खाता हूँ । क्यों ?" ___ इधर बराबर जब वे सहारनपुर पधारते हैं, तो "शास्त्र में तो लिखा है कि पालून खाना चाहिये? 'मेरी कुटिया भी पवित्र हो जाती है, पर हमें कभी "कौनसे शाबमें लिखा है?" यह अनुभव नहीं होता कि वे मेहमान हैं। वे स्वयं मैं शास्त्र क्या बताती। मैंने तो बूढ़ी अम्मामे इतने बेतकल्लुफ हैं कि कोई अनजान आदमी उन्हें सुना था। इस पर उन्होंने एक श्लोक सुनाया और यहाँ देख कर मेहमान नहीं कह सकता! बच्चोंको भी उसका अर्थ बताया, कि यन्त्रसे बनाया, नमक खटाई उन्होंने अपने प्रेममें ऐसा मोह लिया है कि आते ही मिलाया, हिंसा रहित हरेक पदार्थ भक्षणीय है। इसी उन्हें घेर लेते हैं और उनके पीछे भी अक्सर उनकी प्रकार वे हरेक प्रश्नका बहुत खुश होकर उत्तर देते बातें करते रहते हैं। मेग खयाल है कि वे किसीके हैं। बड़े अच्छे हैं पण्डितजी। यहां महीनों भी मेहमान रहें, तो वह ऊब नहीं सकता,