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किरण ५ ]
किपी वजहसे प्रूफ नहीं भेजा जा सका है तो आज इस पत्र के पहुंचते ही उसे अपने किसी आदमीके हाथ भेजिये । अन्यथा यदि कल मेरे आदमीको व्यर्थ में थाना होगा तो उसका दो रुपये चार्ज प्रेसको देना होगा ! मुझे आज भी प्रूफ न आने से बहुत दुःख होरहा है । प्रेमको प्रफ फौरन लौटानेका श्रापको कितना फिक्र है, २८-८-४३ के पत्र में देखिये
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वे एक प्रकाशक के रूप में
पं० परमानन्दजी बीमार हैं। इसीसे आज इन पेजों का भी प्रूफ बा० त्रिलोकचन्दजां को नहीं दिया जा सका और मुझे आदमी भेजना पड़ा। इस वक्त ११ बज रहे हैं मैं नहाया तक नहीं और न मन्दिर ही गया हूँ । इतना अधिक कामका जोर है ।"
उनकी नियमितता और कागजादिकी व्यवस्थाओंकी सतर्कताका परिचय २४-३-४३ के पत्र से प्रकट होता है. "जो आठ शीट कुछ कोने कटे हुए हैं उनके चतुर्थांश को अलग रखकर शेषको इन मह से ६२ तक के पेजोंको छापने में ले लीजिये। इस तरह छह शीटकी संख्या हो जाएगी और दो शीट चतुर्थ रिमके साथ अधिक गये हैं। उन्हें मिला देने से पूरे आठ शीट हो जाएँगे । ८ शीटोंके चतुर्थांश टुकड़े हमारे रहेंगे उन तीन अर्ध शीटोंसे अलग जो प्रथम रिमके बचे हुए हैं।"
अबकी
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इसी तरह ५-४-४३ के पत्र में लिखा हैबारके फाइनल प्रूफर्मे कितनी ही ऐसी अशुद्धियां पाई गई, जिनको करेक्शन करते समय नई अशुद्धियाँ कर दी गई हैं। जो पहले प्रूफमें नहीं थीं— उदाहरण के तौरपर पृ० ११७ के प्रथम कालमकी ४ थी पंक्ति में 'बल बिरिरियं' छपा था 'बि' के स्थानपर 'वि' किया गया था परन्तु करेक्शन करने वालेने उस 'बि' को तो ज्योंका त्यों रहने दिया उल्टा 'बल' शब्द के 'ब' के स्थानपर 'बि' बना दिया अर्थात् शुद्धको अशुद्ध कर दिया ।
मैं समझता हूं पण्डितजीकी स्मृतिका यह उतरण सर्वोत्तम उदाहरण है। जिन्हें प्रूफ देखनेका थोड़ा भी अनु भव है, वे जानते हैं कि प्रूफ देखनेके कई दिन बाद, उस
छपे हुए फार्मको देख कर यह बताना कि उस दिन प्रूफमें क्या गलतियाँ थीं, असंम्भव ही है। आपकी स्मृति, सतकता और प्रबंधकताका यह कितना ज्वलंत उदाहरण है ।
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कागजके सिलसिलेमें ही २८-१-४३ के पत्र में लिखा है — "कल जो आठ पेजका मैटर छापकर भेजा है वह २०२२ पौंडके कागजपर क्यों छापा गया है जब कि मैं २८ पौढका कागज देकर आया था और २८ पौंडका ही एक रिम पहले भेजा गया था। २२ पौंड वाला एक ही रिम था जो पेज ३५२ से ३६४ तक लगा है, उसके ८७॥ शीट ही बचे हुए थे; जो पं० परमानन्दवाले लेखके शुरूके पेजों में लग गये । श्रतः कागजको इस गड़बड़ीका क्या कारण है उसे शीघ्र ही स्पष्ट करके लिखिये । कागज आपके पास हमारा १२|| शीटकी कमीके साथ 5॥ फार्म छपनेके लिये और है, फिर आपने यह कैसे कहलाकर भेजा कि कागज नहीं रहा ।
उनकी हिदायतें इतनी स्पष्ट और खुली होती हैं कि भूलकी गुब्जायश ही न रहे। २-४-४३ के पत्र में लिखा है और इस फार्मकी एक कापी अधिक छापिये, जिसे माहू साहबके पास भेजना है। दो कापियाँ भेजते समय यह भी देख लीजिये कि कागज़ साफ और अच्छा डवीज़ हो। कोई कागज खराब या कम डवीज निकल जाता है उसपर छपी हुई न हांवे और जो कापी भेजें उसे अधिक मोदकर न भेजें तीन मोद देवें ।”
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बहुरुपी उन्होंने स्याही के सम्बन्ध में हिदायतें दी हैं। मात्राओं, अनुस्वार विन्दुमकी भूसें भी उनकी आँखोंसे नहीं द्विप पातीं। बहुत बार भूलोंके कारण वे स्वयं सरमावासे दौड़े जाते हैं—गुस्से से भरे हुए, पर वह गुस्सा उस भूलके उल्लेख तक ही रहता है, फिर वे ही हँस हँसकर बातें !
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संक्षेप में 'सत्यं शिवम् सुन्दरम् सस्ती' यह उनकी प्रकाशन नीतिका रूप है । 'सत्य' में वे 'साधक' हैं, 'शिव' में 'समाजसुधारक', 'सुन्दर' में 'कलाकार' और 'सस्ती' में 'मुख्तार' हैं ।