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अनेकान्त
[ वर्ष ६
और प्रसन्न होकर उठे हैं। यह बात हालके एक वस्तुएँ-जलानेकी लकड़ी, अचार, घी, चीनी, नमक संस्मरणसे और भी अधिक स्पष्ट हो जायेगी। आदि भी ताले में रखते हैं और वाघ दृष्टिसे देने
सम्मान-समारोह उत्सवसे पहले 'मुख्तार माहब वाला व्यक्ति इसे उनकी कंजूसी, संकुचित मनोवृत्ति और उनका कार्य' निबन्धके नोट्स लेनके लिये मैं समझता है पर यह बात प्रत्येक व्यक्ति जानता है कि और 'प्रभाकर' जी वीरसेवामन्दिर गये थे। वहाँ पर उन्हें यह महसूस होनेपर कि इस वस्तुकी फलाँ व्यक्ति उनसे बातचीत करने और साहित्य देखने के बाद हमें को आवश्यकता है उन्होंने सहर्ष सौंप दी है । इस यह आवश्यकता महसूस हुई कि यहाँसे कुछ पत्रोंकी प्रकार अनेक व्यक्तियोंने वस्तुस्थितिपर टीक विचार न फाइलें और पुस्तकें सहारनपुर जानी चाहिये जिससे करके अपनी गलत धारणा बनाली है। .. वहाँ ठीक अध्ययन हो सके । उन पत्रोंकी फाइलोंमें
दूसरी बात यह है कि वह प्रत्येक कार्यको व्यव'जैनगजट' के पहिले वर्ष अर्थात् १८६५ सन की एक
स्थित और अधिकार पूर्ण उत्तम रूपमें करना चाहते हैं फाईल भी थी। मुख्तार साहबने उसे देनेसे इन्कार
इसके लिये चाहे उन्हें अपने कितने ही विश्वासपात्र, कर दिया और हमारे बहुत अधिक आवश्यकता
प्रेमी और साथीका विरोध करना पड़े। साथ ही इस बताने तथा पं0 दरबारीलालजी कोटियाके यह कहने
विषयमें देर-अबेर, किसीकी गजी-नाराजीकी उन्हें पर भी कि 'क्या ये लोग फ्राईल खा जाएँगे' उन्होंने तनिक भा परवाह नहीं है। यह कहा कि या तो यहीं देखलो और यदि सहारनपुर
इसी प्रकार तीसरी बात यह है कि वह एक २ ही ले जाना आवश्यक है तो चलो मैं साथ चलता
पाईका उचित व्यय पसन्द करते हैं और इस बारेमें हूँ। परिणाम स्वरूप अगले दिन स्वयं ही उसे साथ
उन्हें अनियमितता बिल्कुल पसन्द नहीं है । सबसे लेकर आये और शामको वापिस जाते समय उसे
बड़ी बात जो उनको अप्रिय बनाती है वह यह है कि
अपने अनुसन्धान जैसे रूखे विषय में वह इतने अधिक साथ ले गये।
मस्त हैं कि उन्होंने अपना कुटुम्ब, रिश्तेदारी, मिलना साधारण दृष्टि से देखा जाए तो हमें उनसे नाराज
जुलना सब कुछ छोड़ दिया है। वास्तव में वह व्यक्ति होजाना चाहिये था कि उन्होंने हमारा विश्वास नहीं
जो समाजके वातावरणसे ऊँचे उठ गया है उससे हम किया। पर वास्तवमें बात विश्वासकी नहीं उनकी
यह आशा करें कि वह हमारे वातावरणमें रहकर कर्तव्य परायणता और उस फाइलकी सुरक्षा की थी।
हमारा साथ दे, हमारे मरने-जीने, विवाह-शादी, उस फाइलका एक २ पन्ना हिन्दी भाषाके इतिहास
पूजा-प्रतिष्ठामें हमारे साथ रहे, तो यह असम्भव है। लेखकके लिये १-१ लाख रुपयेका है और पत्रे उसके यह तो यही बात है कि हम किसी साधुसे संसारी इतने जीणं है कि उसका फट जाना असम्भव नहीं
कार्यों में भाग लेने की आशा रक्खें और न शामिल है। इसी मनोवृत्तिका यह फल है कि आज वीरसवा- होने पर उसे अनागरिक कहें। मन्दिरमें बड़े २ ग्रंथों, पुस्तकों और पत्रोंकी पचास २
भार पत्राका पचास २ इसी प्रकार भारतवर्षके प्रायः प्रत्येक प्रान्तसे सालकी यह फाइल सुरक्षित हैं जो अधिकांश पत्रोंके मुख्तार साहबके पास जिज्ञासुओं के इतने अधिक पत्र उनके माफिसों में नहीं मिल सकती और हम लोगोंके आते हैं कि शायद चार लेखक मिलकर भी उनका पास तो २महीने पहले पत्रोंकी फाइल भी नसीब नहीं उत्तर नहीं दे सकते हैं फिर भी मुख्तार साहब उनमें होती। जहां तक मैंने अनुभव किया है वह अपने पास से प्रायः सभी मावश्यक पत्रों के उत्तर देनेका प्रयत्न की प्रत्येक बस्तुको बहुत ही सुरक्षित, व्यवस्थितरखना करते हैं पर उसमें देर होजाना स्वाभाविक ही है।
और उसका उचित उपयोग करना और वह भी सुपात्र अतः कल भाई इसीलिये अप्रसन्न रहते हैं। के लिये आवश्यक समझते हैं। इसीलिये बड़ी २
वास्तबमें मुख्तार साहब बच्चोंकी तरह सरल वस्तुओं और मूल्यवान सामग्रीके साथ २ साधारण और वृद्धोंकी तरह गम्भीर है।