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भनेकान्त
[बर्ष ६
साहित्य तपस्वी श्रो कल्याणकुमार जैन 'शशि'
श्रद्धाके फूल
श्री 'भगवत' जैन
सरस्वती-सुत सा विशाल उज्वल साहित्य प्रसाग! ज्ञानहिमालयका हृदयोदक से पद-पद्म पखारा! भानमतीके भरे मालमें केवल भान निहारा ! गिरिनिर्भर सी जनहिन प्रकटी अनेकान्तकी धारा !
वन्दनीय अभिनन्दनीय तुम हे, साहित्य-तपस्वी ! सुम-श्रात्माओंको जीवनभर झकझोर जगाया ! ज्ञान सुधा-साहित्य सृजनसे अमृत-रस सरमाया ! प्राच्य-गिरा, इतिहास, कला-कौशलका मान बढ़ाया ! श्रमफलतासे जूझ जूझकर जीवन सफल बनाया !
सेवामन्दिरके एकाकी-पूजक-भक्त - यशस्वी! एक लक्ष औ' एक लगन धुनके पक्के दीवाने ! जर्जर जीवनकी नैयापर अटल सुदृढ़ प्रण ठाने! दूर क्षितिज पर रचनात्मक जीवन प्रकाश पहिचानें ! तुम बढ़ते ही गये निरन्तर उन्नत छाती ताने!
जुग जुग जियो अमरता-रस पी-पीकर बीर मनस्वी !
श्रो, माहित्य-तपस्वी ! तेरे प्रति मेग श्रद्धाके फूल ! लालायित है पदरज छुने, करले इन्हें मप्रेम कबूल !! तूने बनलाया कि लुभा मकना कब साहित्यिकको धन ? खुद जलकर प्रकाश देना ही, सच्चा माहित्यिक-जीवन !! नतमस्तक होता है सविनय, काव्य-कलाके अनुगगी! तन, मन, धन, सर्वस्व निछावर, करदेने वाले त्यागी! अमर-मार्गक राही ! तेरी अजर-अमर-सी सेवाएँ ! प्रेरित करती अन्तरंगको-यही मार्ग हम अपनाएँ !! काव्य-साधनाके चरणोपर, तुने कर अपनेको दान! पाया वह अमरत्व, दानका है यथार्थमें जो प्रतिदान !! नश्वर तनके पंच-तत्व ये-चाहे कभी बिखर जाएँ ! लेकिन पीछे तुझे रखेंगी-जीवित तेरी रचनाएँ !! तूने अन्वेषणके द्वारा किया श्रमिट मानव उपकार ! दूर किया है अन्धकार, कर नव्य-रश्मियोंका संचार !! हैं कृतज्ञ मानव-मन, पाए तू हे भगवत् ! चिर-जीवन ! तेरी नव्य, भव्य कृतियोंसे शोभित हो साहित्य-सदन !! धन्य जीवन श्री जुगलकिशोर !
श्री मामराज शर्मा 'हर्षित'
श्रद्धाञ्जलि श्री प्रभुलाल जैन 'प्रेमी'
विकसित सुन्दर भाव कुसुमका, गूंथा मनमन्दिरमें हार! पगले प्रेम पुजारीकी यह. भेंट करोगे क्या स्वीकार ? मनमें है संकोच यही बस और न मैं कुछ लाया हूँ। केवल आज भाव-कुसुमोंकी अञ्जलि देने आया हूँ।
सत्यका लिये मधुर सन्देश त्यागमय ले जीवन निष्काम ! बना श्री वीर नीतिका श्रोत 'वीरसेवामन्दिर' निज-धाम !! विश्वके श्रेष्ठ जैन विद्वान भारतीके मंजुल आलोक ! विकमते 'अनेकान्त' के प्राण जैन साहित्य सुधाके लोक!! भावनाभोंके जीवनमूल सत्यशिवसुन्दर अविचल धीर ! हृदयमें बहरा रहते मौन जैनशासनके अनुपम वीर !! शानकी दिव्य ज्योति दे सूक्ष्म विश्वको करते ज्योतिर्मान ! मिटाते जगके अन्तईन्द जगाते जगका अन्तर्मान ! जैनशास्त्रोंका सत्य रहस्य प्रकट करते हो आत्मविभोर ! वीर प्रभुके अनन्यतम भक्तधन्य जीवन जुगलकिशोर!