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हमारे माननीय अतिथि
श्री. बा. रतनलालजी जैन बिजनौर
. श्रीमती लेखवतीजी, अम्बाला
जैन समाजकी विभूति, पंजाबके सार्वजनिक जीवनका रत्न और नारीकी क्षमताका एक उदाहरण । बोलने में प्रभावशाली, लिखने में सावधान, सभाके कार्यों में चतुर, गृह निर्माणमें प्रवीण और समाज की सेवामें उत्सुक, जिसमें भारतकी सरलता और पश्चिमकी प्रगति।
पं० राजेन्द्रकुमारज, मथुरा एक शब्दमें गतिशील युवा । कभी अम्बाला थे, अब मथुरा हैं। उनकी संस्थाका नाम पहले शालार्थ संघ था, अब जैन संघ है। परिस्थितियों के पारखी, युगदर्शक, युगचेता और युगसहचर । अपने ही घुटनों के बलपर उभरकर ऊँचे आसन पर बासीन, कर्मठ कार्यकर्ता भी और विद्वान भी, संघर्षशील, पर समन्वयी भी, विरोधियों के लिये वन और साथियोंके
लिये सहृदय। परिषदके मजनू , जेल में और जेलसे बाहर, चिन्तामें हों, प्रमन्नतामें हों, परिषदके लिये आकुल ।
सामी कर्मानन्दजी, देहली परिषद उनके लिये एक संस्था नहीं, तिरंगे झंडकी
आर्यसमाजी अखाड़े के पुराने खिलाड़ी, वैदिक तरहपरिषद उनके लिये समाज ननिर्माणका साहित्यके गम्मीर अध्येता, जैनधर्मपर प्राणपनसे प्रतीक है। परिषदके प्रति उनके गम्भीर प्रेमका यही लह, बेनजीर वक्ता, अपने ढंगके लेखक, जैन साहिरहस्य है। राष्ट्र के परखे हुए सिपाही, जैन साहित्यके त्यके पारग्बी, एक शक्तिशाली व्यक्ति, जिसे जैनगम्भीर अध्येता और जैनधर्मके मूकसेवक । एक शब्द समाजने पाया तो सही, पर पहचाना नहीं; जैन में ससियर साथी । जीवनके हरेक क्षेत्र में विश्वसनीय। समाजके लिये गौरवकी चीज, पर जिसे खोकर ही बाबू लालचन्द, रोहतक
शायद जिमका मूल्य वह जाने! जिसने पं० जुगलकिशोरजीको वृद्ध कहा, उसीसे
प्रो० गयाप्रमादजी शुक्ल, देहरादून लड़नेको तैयार-थकानके शत्र, हर समय संघर्षके हिन्दीके विद्वान, माहित्यिक 'वादो के अधिकारी लिये प्रस्तुत, पर अत्यन्त सुलझा हुया दिमाग-ममय अध्येता, सफल अध्यापक, हिन्दीके धुनी, नाम और पर मीठे और समय पर करारे, जैनयुवकोंकी उमीद, पद दोनों के प्रति निस्पृह, सरल सरस और मित्रोंके परिषदके अड़े समयके साथी और कर्णधार, कार्य- मित्र, मिलकर जिन्हें भूलना असम्भव! कर्ताओं में कार्यकर्ता और नेताओं में नेता-प्यारके
ला. जगदीशप्रमादजी एम.ए., बड़ौत लायक, मानके लायक, सफल बकील-कोटमें भी घनी होकर भी बिद्वान और विद्वान-धनी होकर और कान्फ्रेंसोंमें भी।
भी सरल । प्रतिभाशाली और सहदय, मैत्रीपीछाप