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स्वागत-भाषण
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प्रो. सत्यपाल जी, अम्बई
भगत सुमेरचन्दजी, जगाधरी गृहस्थमें रहकर भी त्यागी जीवनके प्रती-धीरे धीरे सम्पूर्ण त्यागकी ओर गतिशील । शाखोंके भक्त, विद्वानोंके प्रेमी और सामाजिक सेवामें अनुरक्त ।
बा० दीपचन्दजी, वकील, मुजफ्फरनगर मामाजिक नवजागरण के हामी और समर्थक, जैन माहित्यके प्रेमी और विद्वानों के प्रशंमक, महदय और उदार वन्धु।
बा प्रोफेमर मोहनजी, देहली
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अपने विद्यार्थी जीवनमें आपका ध्यान प्राचीन भाग्नके योगियों द्वारा प्रदर्शित चमत्कारों और धनुविद्याके करश्मोंकी ओर गया अंर आपने उन्हें प्राप्त करनेका प्रयत्न किया। श्राज आपके द्वारा प्राशन चमत्कागेको देखकर जनता और वैज्ञानिक भौंचक रह जाते हैं। वह समय प्रारहा है, जब आप यूरोप आप सत्यपालजीके प्रमुख शिष्य हैं और अधिमें पहुँचकर अपना चमत्कार दिखायेंगे और इसप्रकार कांश प्रदशेन आप ही करते हैं । जब आप अपना भारतका मान बढ़ायेंगे।
हाथ मोड़ने के लिये बडे २ पहलवानोंको चैलेंज करते
हैं और वे नहीं मोड़ पाते, तो जनता मन्त्रमुग्ध रह डा. नन्दकिशोरजी. कान्धला
जाती है। आपका गले में फाँसी लगानेका प्रदर्शन तो समाजके उत्साही कार्यकर्ता, परिषद के पुराने मंत्री बहुत ही अपूर्व है । श्रापकी भाषण शैली बहुत और सुधारप्रेमी । सामाजिक कार्यों के लिये हर घड़ी मार्मिक है और हिन्दीके श्राप सुन्दर लेखक भी हैं। तैयार, समझदार साथी।