________________
किरण ५]
पंडितजीके सम्बन्धमें विद्वानोंकी टिप्पणियाँ
१८३
एक झाँकी
प्रत्येक प्रकारके काम आप पूर्ण नत्रतासे करते हैं। नौकर श्री पं० रविचन्द्र जैन 'शशि' बिजनौर
के अभाबमें भोजन वगैरह भी स्वयं बना लेते हैं फिर भी
उनके मानमिक कार्यों में किसी तरहकी कमी नहीं होने पाती। प्रसिद्ध पुगतत्वश पं. जुगलकिशोर मुख्तारकी गगाना ऐसे व्यक्तियों में हैं जिनपर जैनसमाज ही नहीं, कोई भी
श्रापकी उज्वल रचनाओंके समान प्रापका स्वास्य
भी श्राकर्षक है और यह सब आपके संयम तथा नियमित जीवित जाति गर्व कर सकती है। श्राप जैनसमाजके सुवि
श्राहार विहारका ही परिणाम है। श्रापकी निर्भीक समाख्यात् कवि है । श्रापकी कवितामें हृदयकी श्रावाज है।
लोचना विद्वानोंके लिए मम्मानकी वस्तु है । आप प्रत्येक कर्तव्यकी पुकार हैं। समाजका चित्रण है और कर्मण्यताका
विषयको प्रबन्न तथा अकाट्य प्रमाणसे इस तरह सिड श्राहान हैं।
करते हैं कि विरोधियोंकी कलम रुक जाती है। श्राप यश, लालमा तथा सम्मानकी श्राकाँक्षासे कोगों
श्रार शतजीवी हो, यही प्रार्थना है। दूर है। आपको लगन तथा उद्योगशीलताका परिचय एक वाक्यमें दिया जा सकता है'कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।" प्रातः ५ बजे
कठोर साधक से रातके १२ बजे तक गहरे अध्ययन तथा अन्वेषण में
श्री लालबहादुरजीशाखी, मथुरा लगे रहते हैं।
पं. जुगलकिशोरजीका सम्मान सचमुच उस महान शारीरिक अस्वस्थतामें भी श्रापके दिल में एक टीस
कलाकार, महान साधक और नीब तपस्वीका सम्मान है, उठती रहती है। विश्रामके समय भी आपका मन किसी जिसके आगे सम्मानकी बड़ी से बड़ी भेंट भी तुच्छ है। खोजमें व्यस्त रहता है। शक्ति से अधिक काम करनेकी अपना सब कुछ देकर भी जिसने कुछ नहीं चाहा उसका आपकी प्रकृति हे।
त्याग निरखनेकी नहीं समझनेकी चीज है । लोग कहते हैं आपकी प्रास्मा जैनत्वमें रंग गई है । जैनदर्शनके कि वे ऐतिहासिक विद्वान हैं परन्तु यह किसे मालूम है कि अद्वितीय प्रकाशको निखिल विश्वमें बिखगनेके लिए श्राप उनका इतिहास सन संवतांके खोजने तक ही सीमित नहीं अातुर हैं। जैन संस्कृतिको उत्थान देने के लिए व्यग्र है। है इतिहासको समाज सेवाका अङ्ग बनाकर समाजसंरक्षकके आपके जीवनके पिछले २६ वर्ष जैनम्ाहित्यकी महत्वपूर्ण रूपमें उन्होंने जो अपनी कठोर साधनाका परिचय दिया है खोजोका इनिहास है।
उसे जैनसमाज युगों तक न भूलेगा। सचमुच पं. जुगलआपकी भावनाएँ जितनी उच्च है, श्रापका जीवन
किशोर जीकी ऐतिहासिक सेवाएँ स्वयं ही एक इतिहास बन उतना ही सादा है। वासना विलासितासे श्रापको घृणा है। गई है। उनकी खोज बुद्धि, विषयोंका संतुलन, भाषाका अभिमानकी हवा श्रापको स्पर्श भी नहीं कर पाई है। छोटेसे
प्रवाह, वस्तुस्थितिकी जाँच उन्हें उनके बाहिरी व्यक्तित्वमे छोटे व्यक्तिपर आपका आत्मीयताका भाव है। श्राप जिनने बहन ऊँचा ले जाती है। हिन्दीको गर्व यदि प्राचार्य बडे विद्वत्ता में हैं उतने दी बड़े नम्रतामें है । सहनशीलता दिवेदीजी पर रे,बंगलाको गर्व यदि टेगौर पर तो कोई भी आपमें यथेष्ट है।
कारण नहीं आधुनिक जैनसाहित्य और जैनसंस्कृतिको श्राप स्वावलम्बी है। कभी किसीका सहारा नहीं देखते जुगलकिशोरजी पर गर्व न हो! वे लेखक हैं, समाजसेवक मैंने स्वयं देखा है कि आश्रममें कई विद्वानोंके रहते हुए है, इतिहासमर्मश हैं और इन सबसे ऊपर है उनका त्याग भी घंटो अनेकान्तके सम्पादनमें लगे रहते है। प्रत्येक जो साहित्यसेवकोंमें कम ही पाया जाता है। इतिहासके मैटरको तब तक कई बार संशोधित करते हैं, जब तक नामपर दी हुई उनकी अमूल्य भेंट समाजके धुरंधरसे धुरंप्रापको पूर्ण वात्मसंतोष नहीं हो जाना । काम करने में घर विद्वानके लिये भी सोचने और समझने की चीज है। आप कभी नहीं थकते । क्या शारीरिक क्या मानसिक,