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किरण ५]
पथ-चिन्ह
रूपसे यह स्पष्ट कर दिया कि पात्रकेमरी विद्यानन्दसे ही नहीं था, ३ मास तक रात दिन साहित्य और इतिहासका अध्यकिन्तु अकलंकसे भी पहले हुए है।
यन कर अपने 'विवाह क्षेत्र प्रकाश' नामकी पुस्तक लिखी,
जिसका फिर कोई विशेष न कर सका । इसी तरह पंचाध्या पन्धके सम्बन्धमें किसीको यह
दरमा पूजाके आन्दोलनमें आपने 'जिन पूजाधिकार ठीक मालूम नहीं था कि उसका कर्ता कौन है। नये उप
मीमांसा' लिखी और कोर्टमें गवाही भी दी। इस पर श्राप लब्ध हुए पुष्ट प्रमाणोंके आधार पर, मुख्तार माहबने यह
को जातिच्युत घोषित किया गया, पर यह घोषणा कभी करके बनलाया कि इस अन्य के कर्ता वे ही कविराज
व्यवहारमें नहीं पाई। मल्ल हैं जो 'लाटीसंहिता' मादि ग्रंथोंके कर्म है।
जैन साहित्यके श्रेष्ठतम रत्न धवल और अयधवलका महान् श्राचार्य स्वामी समन्तभद्रका इतिहास अन्धेरेमें
नाम ही लंगोंने सुना था। ये अन्य केवल मूडबद्रीके मन्यपड़ा था और उसकी बोनके आधार भी प्रायः अप्राप्य थे।
भंडारमें विराजमान थे। इनकी २-३ प्रनियां होकर जब मुख्तार साहबने माधारोंकी खोज करके दो वर्षके परिश्रमसे
इधर प्राईनोइन ग्रंधरत्नोका पूरा परिचय प्रास करनेके एक प्रामाणिक विस्तृत इतिहास तैयार किया. जिसकी
लिये मुरूनार साहच लालायित हो उठे, आपने पारा-जैनअनेक ऐतिहासिक विद्वानोने मुक्त कण्ठसे प्रशंसा की है।
सिद्धान्त भवन में जाकर, श॥ महीने रान दिन परिश्रम कर समन्तभद्रके समय-सम्बन्धमें जब डा.के.बी. पाठक के १... पृष्ठों पर उनके नोट्स लिखे, जिनमें दोनों प्रन्थों में कुछ विरुद्ध लिखा तो आपने एक वर्ष तक बौद्ध साहि- का सार संग्रहीत है। त्य श्रादिका खास तौरमे अध्ययन करके उसके उत्तरमें
महावीर भगवान के समयादिके सन्बन्धमें जो मतभेद 'समन्तभद्रका समय और डा. के.बी. पाठक' नामका
एवं उलझनें उपस्थित थीं, उनका अत्यन्त गम्भीर अध्ययन एक गवेषणापूर्ण निचग्ध लिम्बा, जो हिन्दी और अंग्रेजी
करके आपने सर्वमान्य समन्वय किया और वीर-शासनदोनों में प्रकाशित हुश्रा है और विद्वानोंको बहुत रुचिकर
जयन्ती (भगवान महावीरकी प्रथम धर्म-प्रवर्तन-तिथि) की प्रतीत हुश्रा है।
खोज तो आपके जीवनका एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य सम्मान-समारोहमें दिये अपने भाषणमें पं. राजेन्द्र- है। भावण बदि प्रतिपदाको अब देशके अनेक भा कुमारजीने कहा था कि मुख्तार साहब यह काम न करते
वीर-शासन-यन्तीका आयोजन होने लगा है। नो दिगम्बर-परम्परा ही अस्तव्यस्त हो जाती। इस कार्यके
'अनेकान्तका' भारम्भकारण मैं उन्हें दिगम्बर परम्पराका संरक्षक मानता हूँ।
२१ अप्रैल १९२९ में आपने देहलीमें समन्तभद्राश्रम जैनसाहित्यके कितने ही अन्य ऐसे हैं, जिनका दूसरे अन्यों में उल्लेख तो है, पर वे मूल रूपमें अप्राप्य है। मुख्तार
की स्थापना की और नवम्बरमें मासिक 'अनेकान्त' का
प्रकाशन प्रारम्भ किया । 'अनेकान्त'के प्रथमांक में ही पांच साहबने विशाल जैन साहित्यमें लिखे उल्लेखोंके आधार
पेजोका सम्पादकीय है, जिसमें ३ पेजमें समन्तभद्राभमका पर ऐसे बहुतसे अप्राप्य अन्योंकी एक सूची तैयार की और उनकी खोजके लिये पुरस्कारों की घोषणा की। उनमें से कुछ
. परिचय और दो पेजमें पत्रकी नीति पर प्रकाश डाला अन्य मिले है और शेषके लिये पुस्तक मंडारोंकी खोज
गया है। "
'जैनगजट' में आपने केवल मंगलाचरण किया था अन्तर्जातीय विवाहके समर्थनमें आपने एक पुस्तक और जैनहितैषीमें सम्पादन स्वीकार करनेकी परिस्थिति पता लिखी-'शिक्षाप्रद शास्त्रीय उदाहरण' । समाजमें हल्ला कर 'शक्ति और योग्यता अनुसार पत्रको सफल बनानेकी हुबा । एक विद्वानने उसका विरोध लिखा । बस फिर क्या सूचना दी थी, पर अनेकान्त में 'पत्रका अवतार, रीति-नीति