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अनेकान्त
[वर्षे ६
ऋद्धियों और इमी प्रकारकी बातोंका इतना संग्रह कर रियाँ, खर्च बही जीवनचरित्रोंका स्थान नहीं ले सकते, दिया जाता है कि पढ़नेवालेके हृदयमें यह भाव पैदा पर इनका संग्रह होना आवश्यक है। हो जाता है कि यह किसी आदमीका जीवनचरित्र जीवनचरित्र-लेखकमें भी कुछ आवश्यक गुण होने नहीं है बल्कि किसी अलौफिक और अद्भुत व्यक्तिका चाहिएँ,जैसे अपने चरित्रनायकमें बड़ी श्रद्धा,सत्यप्रेम, जीवनचरित्र है और वह समझने लगता है कि ये धुन, निर्भयतापूर्वक गहरा देखनेको शक्ति, धैर्य, खोज बातें उसकी पहुँचसे परे हैं। इस लिये इस प्रकारके उचित सामग्री चुनने और छोड़नेको शक्ति (Power जीवनचरित्र आजकल कम पसन्द किये जाते हैं और of Selection and Omision) और अनुरूप उनसे पढ़नेवालेकी उत्सुकताको संतोष नहीं मिलता। (Proportion) के साथ लिखनेकी आदत होनी वतमान कालमें जीवनचरित्रकी श्रेष्ठता इसी बातमें चाहिए। जीवन-चरित्र लिखना भी कविता लिखने के मानी जाती है कि वह किसी आदमीका सच्चा चित्र समान है और जैसे अच्छे कवि पैदायशी होते हैं वैसे हो और उससे उस आदमीकी परिस्थितियोंका पूरा ही अच्छे चरित्र-लेखक भी पैदायिशी होते हैं। एक पता लग जाय; क्योंकि परिस्थितियों (Enviornm• सफल चरित्र लेखक देशकी बड़ी सेवा करता है। वह ents) के ज्ञानके बिना चरित्र-नायकके गुणों या एक मृत महापुरुषको दुबारा बनाकर जनताके सामने दुगुणोंका तुलनात्मक पता नहीं लग सकता । जीवन- पेश करता है। वर्तमान शैलीकी जीवन-चरित्रलेखनचरित्रमें चरित्रनायकके जीवनसे सम्बन्ध रखनेवाली कला अभी अपनी प्रारम्भ अवस्थामें ही है। युरूप समस्याओंका हल होना चाहिये । वर्णनात्मक जीवन- और अमेरिका में जीवन-चरित्रोंका इतना प्रचार है चरित्रसे आलोचनात्मक जीवनचरित्र अच्छा माना कि वहाँ सभी क्षेत्रोंके बड़े बड़े आदमियों के बहुतसे जाता है। जीवनचरित्रमें सचाई कितनी होनी चाहिए जीवन-चरित्र मिलते हैं तथा भिन्न २ हष्टकोणोंसे इसके बारेमें फ्रान्सके प्रसिद्ध विचारक तथा वौल टेयर लिखे हुए एक आदमी के कई चरित्र मिलते हैं। उनके (Voltair) का यह वाक्य याद रखना चाहिए। पत्र और शायरियाँ तक छपती हैं। लेखकोंकी तमाम "We owe consideration to the living, रचनाओंके संग्रह निकाले जाते हैं। बड़े श्रादमियोंसे tothe dead we owe truth only" अर्थात् सम्बन्ध रखने वाली सामग्री इकट्ठी की जाता है। एक जीवित आदमियोंका हमें आदर और लिहाज करना एक जीवन-चरित्रकी सहस्रों प्रातयाँ चन्द दिनोंमें चाहिये, परन्तु मृत आदमियोंके लिए हमें सच्चाई बिक जाती हैं। आपको यह सुनकर आश्चर्य होगा का प्राशय नंगापन नहीं है।
कि जर्मन डिक्टेटर हिटलरके एक अंग्रेजी जीवनजीवनचरित्रोंसे भी अधिक लाभदायक आत्म- चरित्रकी चालीस हजार प्रतियाँ चार वर्ष में बिक गई चरित्र (autobiography) होता है। परन्तु प्रात्म- और इंगलैण्डके भूतपूर्व सम्राट एडवर्ड अष्टमके एक चरित्रका लिखना कठिन है और विरले ही आदमी ही जीवन-चरित्रके आठ संस्करण तीन महीने में छप
आत्मचरित्र सफलरुपसे लिख सकते हैं। बड़े पाद- गए। वहाँ छोटे बड़े सस्ते तथा राज संस्करण निकल मियों के लिखे पत्र तथा उनके पास आए हुए पत्र भी जाते हैं। इसीमें उन देशोंकी उन्नतिका रहस्य है। हमें उनके गरेमें बहुत सी बातें बता सकते हैं। इस भारतवर्ष में जीवन-चरित्रोंकी दशा संतोषजनक लिये पत्रोंके संग्रह भी प्रकाशित होने चाहिये । व्य- नहीं है। पिछले वर्षों में महात्मा गाँधी और पंडित क्तिगत डायरियाँ भी कम उपयोगी नहीं होती । एक जवाहरलाल नेहरूके प्रात्म-चरित्रोंकी गूंज रही है लेखकका तो यह कथन है कि वह किसी आदमीका और निःसंदेह वे महान् कृतियां हैं। पुराणों और चरित्र ( character ) उसकी आमद और खर्च कथाओंकी शक्लमें पुराने जीवन-चरित्र मिलते हैं। की बहीको देखकर बता सकता है। परन्तु पत्र, शय-. गोस्वामी तुलसी-कृत रामायण जनताका सबसे प्यारा