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जैन धर्म पर अजैन विद्वान्
वैदिक धर्म और जैन धर्म (श्री महर्षि राधास्वामी शिवव्रतलाल वर्मन, एम० ए०, एल०-एल० बी०)
बैदिक धर्म अपौरषस्य कहलाता है। जैनधर्म पौरषस्य इसलिए यह नया नहीं हो सकता। हां ! पशुवध जब देश धर्म है। वैदिकधर्मावलम्बियोंका दावा है कि उनका धर्म में अधिकताके साथ होने लगा उस समय यह उसके विरोधी किसी खास पुरुषकी शिक्षाओं पर निर्भर नहीं है । इसके हो गये और जीव दया पालने पर विशेष जोर देने लगे। अतिरिक्त जैन धर्म पौरषस्य होते हुये तीर्थरीकी शिक्षाओं उस समयसे जैनधर्मको यह नया रूप दिया गण और के प्राधार पर है। वैदिक धर्ममें बहुत बड़ी गपलचौथ है। गोमांस किम्वा अन्य मांस न खानेकी प्रथा उसका मुख्य यह गपलचौथ जैनियों में नहीं है। उनके यहाँ जो बात है चिन्ह बन गई। स्पष्ट है। वैदिक धर्म वाले वेदोंकी अपौरषस्य हैसियत पर कायम नहीं रहे। अन्त में उन्हें जैनधर्मवालोंकी तरह श्रादर्श
वैदिक धर्म वाले मदैवमे मांस भक्षक थे पुरुषों के चरित्रको अपनी टिके सामने रखकर काम करनेकी जहाँ तक हिन्दू जातिके सग्रन्याम रम्बन्ध है यह और अपने जीवनको सधारनेकीपावश्यकता प्रतीत हुई। प्राचीन समयसे मांस भक्षण करने वाले पाये जाते हैं। चाहे वे लाख वेदाभिमानी हों उन्हें जैनियोंकी नकल करनी इनके यहाँ नरमेघ, अश्वमेघ, गोमेघ श्रादि यज्ञ करनेकी पदी जैसाकि व्यासजीके इस श्लोकमे स्पष्ट है
प्रथा जारी थी जिससे इनके ग्रन्थ भरे पड़े हैं। यहां तक श्रतयो विभिना स्मृतयो विभिन्ना,
कि रामायण महाभारत और स्मृतियों तकमें कहीं इसका नसोः मुनिर्यस्य मतं न भिन्नम् । निषेध नहीं पाया जाता। हिन्दू नर मौंस भक्षक थे या धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां,
नहीं इस पर सम्मति प्रकट करना कठिन काम है। फिर भी महाजनो येन गता स पन्थाः ॥
अब तक हिन्दुओंमें ऐसे लोग पाये जाते हैं जिनमें इसके
गौरवका गीत गाया जाना है। उदाहरणकी रीतिसे अघोर इसका अर्थ यह है:-धति स्मृति और ऋषियों के पन्थ और शाक्तिक मतके वाममार्गकी और दृष्टि डालो।
शाक्तिकधर्ममें नर माँस महाप्रसाद कहलाता है और अघोरी अति गूढ रहस्य है। इसलिए जिस पर बड़े लोग चलते
तो अब तक जलती हुई श्मशानोंक इर्द गिर्द चक्कर लगाते हैं वही पन्थ है।
रहते हैं कि कहीं कश्या या पक्का नर मांस उनके हाथ मा
जाय । बाल्मीकीय रामायण में एक जगह वर्णन किया गया _ जनमतकी प्राचीनता
है कि जब भरतजी श्रीरामचन्द्रजीकी खोज में चित्रकूट जाने हमारा यह विचार था कि वैदिक धर्म बहुत पुराना लगे तो उनके भोजनके लिए भारद्वाज ऋषिने बछड़ा धर्म है और सबसे पुराना है। अपने पहले लेखोंमें हमने जिबह किया था। इससे अधिक और क्या प्रमाण दिया जा कई बार ऐसा भाव प्रकट भी किया है, परन्तु सोचने सम- सकता है ? अब गोमांस का निषेध है, परन्तु हिन्दुओं में झनेसे अब इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि जैनियोंका मत वेदों . कोई जाति ऐसी नहीं मिलेगी जो मांसाहारी न हो और के मतसे कहीं पुराना है। पहिले हमारा विचार यह था कि न किसी वर्ग के पुरुष इसके विरोधी हैं । जैनियोंकी अवस्था वैदिक धर्मानुयायी यनोंमें पशु बध करते थे। जैनी उसके इसके विरुद्ध है और शायद सारी दुनियामें जैन ही एक विरोधी बने परन्तु अब वह भाव नहीं रहा। जैनधर्म ऐसा सम्प्रदाय है जो हर प्रकारके मांसको निषिध समझता अहिंसाका मार्ग है, प्रेमका मार्ग है और दयाका मार्ग है। है।
. (क्रमशः)