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अनेकान्त
[वर्ष ६
बासकी प्रतीकामधन्य मूर्तिको भी प्रणाम !
की भाषामें एक ऐनीमेण्ट ! तो पति मर गया और वह ___ पति मर गया है, पत्नी १६ वर्षकी है। हंसनेको
ऐग्रीमेण्ट भंग! अब नारी स्वतन्त्र, चाहे जिधर जाये,
चाहे जो करे ! हैन यही हो तो फिर हमारी संस्कृति में, उत्सुक-सी कली पर विपदाका जब पहाड टूटा, मौके
इन शाबोंमें, विवाहके ये गीत क्यों इस हां के साथ जैसे विसापका धुवां जबमाकाशमें भर चला, परिवार और पास
भीतरका, प्रास्माका सब रस सूख चखा। पडौस जब कलेजेकी कसकर्मे कराह उठे. तब पिताने धीमें,
फिर चिन्तन, गम्भीर चिन्तन, अन्तरमें भाव-धाराकी पर द स्वरमें कहा-चोमो मत, रसकी पूडियां मत
सृष्टि। जीवनमें पाथी तो अनेक है, पतिका अर्थ है प्रतीकउवारो.मैं अपनी बेटीका पुनर्विाह करूंगा. तो जैसे सख
व्रतका प्रतीक, बचपका प्रतीक । पतिव्रतका अर्थ है पतिका भरको बहती नदी ठहर गई। साथियों ने हिम्मत तोकी,
बत ! पतिकी पूजा। दुनिया कहती है हो ! धर्म कहता है पंचोंने पंचायत के प्रपंच रचे, सुसराल वालोंने कानूनी
नहीं, पतिका बत, पतिकी पूजा? यह अर्थका अनर्थ है। शिकंजीकी खूटियाँ ऐंठ कर देखी पर सुधारक पिता रख
मानव मानवकी पूजा करे, मानव ही मानवका प्रत हो यह रहा, उसने युगकी पुकार सुनी और एक योग्य बरके साथ
ईश्वरके प्रति द्रोह है। फिर ! पतिव्रत-पतिके द्वारा बत, अपनी पुत्रीका विवाह कर दिया, धूमधामसे, उत्साहसे,
पतिके द्वारा पूजा। पूजा लक्ष्यकी, प्रत साध्यकी प्राप्तिका। गम्भीरतासे। कन्याका मन प्रारम्भमें हिरहिराया, फिर
सब यह सचय क्या है? साध्य क्या? व्यक्तिकी अनुभव हुधा और फिर उसका मन अपने नये घरमें रम
समष्टिके प्रति एकता, अणुकी विराटमें लीनता, भेद उपगया। पतिके प्रति अनुरक्त, परिवारके प्रति सहदय और
भेदोंकी दीवारें लांघ कर, प्रज्ञान गिरिके उस पार हंसते
र अपनी सन्तानमें बीम बह जीवनकी नई नाव खेचली।
खेलते प्रभु-परमात्मामें जीवकी परिणति । यह हमारे युगकी नई करवट, परम्पराकी नई परि
मोह, तब पति है साधन, पति है पथ, पति है अब इत्ति, नारीकी सहायताका नया अवलम्ब, समाजके
लम्ब, न साध्य हीन लचय ही! पर साधन नहीं, तो साध्य निर्मायकीमव सूचनाका एक प्रतीक. जिसे भारम्भमें
कहां पथके बिना हिय प्राप्ति वैसीऔर वह होगया भंग' वर्षों पतिका प्यार तो मिला, पर समाजका मान नहीं,
. भगवानको कृपामे फिर ज्ञानका भाखोक। भंग कैसा!. जिसे परिवार मिला, जिसमे परिवारका निर्माण किया पर
लहर जग सरितामें लीन होती है. समपया वह नाश है। जिसे बरसों पारिवारिकता न मिली. जिसे बरसों नई
बीज जब मिट्टी में मिल वृक्षमें बदलता. तब क्या वह भाचाचीके मधुर कोलाहलमें मी विगत वीरानेकी शून्यताका
नाशहूं: यह नाश नहीं है, यह परिणति है। पति .. भार होना पड़ा. पर जो धीरे २ युगका अवलम्ब लिये
हैलहर, सरिता समाज, पति हैबीज, वृष है समाज । स्थिर होती गई और जोपाज भी कुक्षीनताके निकट व्यंग
पति नहीं है! इस नहींका अर्थ है प्रतीककी परिणति । की तो नहीं, डाँगितकी पात्र है। नवचेतनाके इस साधना
नारी बयकी भोर गतिशील. कल भी थी, भाज भी श्रोतको भी प्रयाम! x x x x
। यही उसका बताकर इस ग्रनका प्रतीक या पति। पति मर गया है, परनी १६ वर्षकी। माशाचोंके भाजो समाज । गतिके लिये वहीनता अनिवार्य है। कल सब प्रदीप एकही मौकमें बुम गये। कहीं कोई नहीं,कहीं सहीनताका प्राधार था पति, पाहै समाज । कख नारी कुछ नहीं, बस शून्य-सब शून्य। स्थिरता जीवन में सम्भव पतिके प्रेम में लीन थी माज समाज प्रेममें सीन है। यह नहीं, पैर हिखानेकी भी शाक्षिसे हीन । सहायमें एक लीनता स्वयंपने को पूर्ण तत्व नहीं, पूर्णताका शपाखोक, माखोकमें जीवनकी स्फुरया और स्फुरणामें सपा नानीका सचच भावच है, जो कम था, वही
भाजहै. पर पथ परिवर्तित हो गया-प्रतीक बदक्षा, साधन पति! नारीके जीवन में पतिका या स्था१पति बदले, गरका यात्रीबदन पर अपना जलपोत त्याग क्या विवाह द्वारा प्रास एक साथी और विवाह'माज हवाई जहाज पर उपचला। उसे इंगड ही जाना था,