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अनेकान्त
[वर्ष ६
सप्तति मादि प्रों में भी कई ऐतिहासिक प्रवन्ध प्रकाशित प्रकाशित हो चुके - है एवं शुभशील-रचित कथाकोषमें एवं स्वतंत्ररूपसे शेताम्बर-१-२ जैन धातुप्रतिमा लेखसंग्रह मा०१-२, बहुतसे प्रबन्ध मिलते हैं जो अप्रकाशित हैं।
प्र.म.शा.प्र. मंडल-पादरा । (३) पट्टावली-खरतरगच्छ पट्टावलियों का संग्रह
३ प्राचीनलेख संग्रह भा० . यशो. ग्रंथमाला बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहरने प्रकाशित किया था। हमारी
भावनगर । प्रेषित खरतरगच्छ गुर्वा विली नामक अपूर्वकृति सिंधी प्रन्थ
४ अर्बुद प्राचीन जैनलेखसंदोह, प्र. विजयमालासे छप चुकी है और शीघ्र ही प्रकट होगी। मुनि
धर्मसूरि प्र. उज्जैन । जिनविजयजी पहावलियों का एक स्वतंत्र संग्रह भी छपा
५ देवलवाड़ा, सं. विजयेन्द्रसूरि-यशोविजयरहे हैं जिसमें अनेक गच्छोंकी पट्टावलियें हैं। उपकेशगरक
प्रन्थमाला भावनगर। चरित्र भी प्रकाशित करने वाले है। उपलब्ध पहावलियों
६ ब्राहाणवाडा-सं. जयन्तविजयजी, प्र. का ऐतिहासिक सार 'जैन गुर्जर कवियों' भा. २-1 के
विजयधर्मसूरि ग्रंथमाला उजैन । परिशिष्टमें पाहै एवं गच्छमत-प्रबन्ध, अंचलागलीय
• सूरतके लेख-(सूर्यपुर नो स्वर्णयुग) प्र. मोटी पहावजी पार्थचन्नगच्छ-पहावली. पापहावली
मोतीचन्द मगनभाई- सूरत । भादि ग्रन्थ छपे। जैन साहित्यसंशोधकमें वीरवंशावली
८-१-१. प्रा. जैनलेख-संग्रहाभा.१,२जैनयुगमै तपागच्छ पहावली, पूर्णिमा गच्छपष्टावली छपी
सं.जिनविजय,प्रभारमानंदसभा भावनगर थी। हमने जैन सत्यप्रकाशमें भागमगच्छ, बहगाछकी इसी प्रकार जैनयुग, जैनसत्यप्रकाशमें भी लेख प्रकागुर्वावली प्रकाशित की है और पास्मानंद शताब्दी स्मारक शित हुये है। यतीन्द्रविहार दिग्दर्शन भा. से. प्रन्धमें पल्लीवाल गच्चपटावली । मुनि सुन्दरसूरिचित
खंभात नो प्राचीन नइतिहास, केसरीया तीर्थ इतिहास गुर्षाचनी-यशोविजय ग्रन्थमालासे प्रकाशित है।
संखेश्वरमहातीर्थ आदिमें छपे हैं। दिगम्बर सम्प्रदायकी कुछ पट्टाव लिये जैनहितैषी वर्ष !
. जैन शिलालेख संग्रह (सं. प्रो. हीरालाल) प्र. और जैन सिद्धान्त भास्कर वर्ष में प्रकाशित हुई हैं। '
माणिकचंद्र दि० प्रन्यमाला बम्बई। दिगम्बरोंका कर्तव्य है कि वे एक संग्रह शीघ्र प्रकाशित करें।
२ जैन प्रतिमायंत्र लेखसंग्रह (सं.छोटेलाल जैन) पुरा(४) प्रशस्तिसंग्रह-जिनविजयजी संपादित प्रशस्ति
तस्वान्वेषणी परिषद् कलकत्ता। संग्रहके अतिरिक्त समाजका एक और संग्रह भी
प्रतिमालेखसंग्रह-(सं. कामताप्रसाद जैन) प्र. देशविरति-धर्माराधकसमाज - अहमदाबादसे प्रकाशित है
जैन सिद्धान्तभवन, मारा। और दि. समाजका एक संग्रह जैनसिद्धान्तभवन भारासे
लेखरूपमें दिखेख नामक हमारा लेख जैन सिद्धान्तप्रकाशित हुमा है। विशेषके लिये देखें "प्रशस्ति संग्रह
भास्कर वर्ष . . . में एवं मुनिकांतिसागरजीका भने. और दि. समाज " नामक मेरा लेख ।
कान्त वर्ष ४०८, , में प्रकाशित है। बीकानेर जैन (५) प्रतिमालेख संग्रह-पूर्णचंदजी नाहरके प्रका
लेखसंग्रहका संपादन कार्य हम कर रहे हैं। शित जैनलेख-संग्रहके अतिरिक्त निम्नोक जैनोल-संग्रह
(६) विज्ञप्तिपत्र+-वास्तवमें थे. समाजकी यह +देखें हमारा खरतरगच्छ गुर्वावली और उसका ऐतिहासिक बीमाकर्षक वस्तुहै। जो कला और साहित्य उभयरटि महत्व नामक लेख जो भारतीय विद्या में प्रकट है।
से महत्वपूर्ण है। चित्रित विज्ञसिपत्रोंमें बीकानेरके दो xदेखें प्रशस्ति-संग्रह और जैन जातियों के इतिहाहकी सामग्री विज्ञसिपत्रोंका भी महत्वपूर्ण स्थान है। जिनमेंसे हमारे नामक मेरा लेख (श्रोसवाल व ५ अंक २।
+ विशतिपत्रोंके अतिरिक्त, आपसी व्यवहारके प्राचीनपत्र भी 'अनेकान्त' वर्ष ५ अंक १-२।
हजारों मिलते हैं, जो बड़े महत्वके है।