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किरण २]
वीर-शासनकी उत्पत्तिका समय और स्थान
घटनाको श्रापर्यजनक घटना बतलाया और उसे श्राम- गजाणिककी गजधानी थी प्रस्थान किया, नहाँ पहुचत तौर पर 'प्रबेरा' (असाधारण घटना) कहा जाता है। ही उनका तृतीय समवसरण रचा गया और उन्होंने साग
अब देखना यह है कि, दूसरा समवसरण कब और वर्षा काल बही बिनाया, जिससे भावणादि वर्षा के कहाँपर हुश्रा और प्रथम समवसरण में भगवानका चातुर्मास्यमें वहाँ बराबर धर्मतीर्थकी प्रवृत्ति होती रहा। शामननीर्थ प्रवर्तित न होनेका क्या कारण था ? इस विषय
परन्तु यह मालूम नहीं हो सका कि प्रथम समनमें अभी तक निनना श्वेताम्बर-साहित्य देखने को मिला है
सरणमें मनुष्योंका अभाव क्यो सा-वे क्यों नहीं पहुँच उसमें इतना दी मालूम होता है कि प्रथम समयमरगामें
सके ? समवमरण की इतनी विशाल योजना होने, हजारों देवनादी देवता उपस्थित थे-कोई मनुष्य नहीं था, इस
देवी-देवताओंके वहाँ श्राकर जय जयकार करने, देवदुंदुभि से धर्मतीर्थका प्रवर्तन नहीं हो सका। महावीरको कवलशान
बाजोके बजने और अनेक दुमरे,श्राश्रयों के होनेपर भी, जिनस की प्रााम दिन के चौथे पहरमें हुई थी, उन्होंने जब यह देखा
दूर दूरकी जनता ही नहीं किन्तु पशु-पक्षी तक भी खिंचकर कि उस समय मध्यमा नगरी (वर्तमान पावापुरी)में सोमिलार्य
चले पाते हैं, जम्भकााद श्रास-यासक प्रामाकं मनुष्यों तक बाझगाके यहाँ यश-विषयक एक बड़ा भारी धार्मिक प्रकरण
को भी समयसरणमें जानेको प्रेरणा न मिली हो, यह बात चल रहा है, जिसमें देश-देशान्तरोंके बड़े-बड़े विद्वान्
कुछ समझ नहीं पाती । दुमरे, के.वलशान जब दिनके आमंत्रित होकर पाए हुए हैं तो उन्हें यह प्रसंग अपूर्वलाम
चौथे पहरमे उत्पन्न हुना था तब उस केवलोत्पत्तिकी खबर का कारण जान परा और उन्होंने यह सोचकर कि यशमें
को पाकर अनेक समूहोंमें देवताओं ऋजुकूला नदीके तट श्राए हुए विद्वान बाहाण प्रनिबोधको प्रास होंगे और मेरे
पर बीर भगवानके पाम माने, प्राकर उनकी वन्दना तथा धर्मनीर्थक आधारस्तम्भ बनेंगे, संध्या समय ही विहार कर
स्तुति करने-महिमा गाने, समवसरणाम नियत समय तक दिया और वे रातोरान १२ योजन (४८कोस ) चल कर
उपवेश के होने तथा उसे सुनने आदि के सब नंग-नियोग मध्यमाके महामन नामक उद्यान में पहुँचे, जहाँ प्रात:काल
इतने थोड़े समय में केंमे पूरे हो गये कि. भ. महावारको से ही समयसरणकी रचना होगई। इस तरह वैशाग्य सुदि
मंध्याकं ममय ही विहारका अवमा मिल गया?- तामरे, एकादशीको जो दूमग समवसरण रचा गया उममें वीर
यह भी मालूम नहीं हो सका कि कंवलगानकी उत्पांतसे भगवानने एक पहर तक बिना किसी गणधरकी उपस्थिति
पहले जब भ० महावीर मोहनीय और अन्तगय कर्मका के ही धर्मोपदेश दिया। इस धर्मोपदेश और महावीरकी सर्वज्ञनाकी खबर पाकर इन्द्रभूति आदि ११ प्रधान ब्राह्मण
बिल्कुल नाश कर चुके थे--फलत: उनक कोई प्रकारकी
इच्छा नहीं थी; नब वे शासनफलको एषणास इसने भातुर विद्वान् अपने अपने शिष्यसमूहाके साथ कुछ आगे पीछे
कैम हो उठे कि उम यश-प्रमंगमे अपूर्व लाभ उठानेकी समवसरणमें पहुंचे और वहाँ वीर भगवानसे साक्षात् वार्ना
‘बात सोचकर मंध्यासमयी ऋजुकला-तटसे चल दिये लाप करके अपनी अपनी शंकानोंकी निवृत्ति होनेपर उनके
और गनोरात ४८ काम चलकर मध्यमा नगरीके उद्यान शिष्य बन गये, उन्हें ही फिर वीर प्रभु-द्वारा गणधर-पदपर नियुक्त किया गया। साथ ही, यह भी मालूम हश्रा कि मध्यमा
जा पहुँचे? और इमलिये प्रथम ममवसग्गामें केवल देव
नाश्रोके। उपस्थित होने, संध्या समय के पूर्व तक सब नेग केस द्वितीय समवसरणके बाद, जिम में धर्मचक्रवतिय प्राप्त
नियोगांक पूरा हो जाने और फिर अपूर्व लाभकी इच्छा से हुश्रा बतलाया गया हैx म० महावीरने गजगृहकी ओर जो देखो, मनिकल्याणविजयकृत 'श्रमण मगवान महावीर' + देबो, उक्त 'श्रमण मगन महावीर' पृ. ७४ से ७८ पृ. ४८ से ७३ ।
* स्थानकवासी श्रेताम्बरोंमें केवलज्ञानका इंना १०मीकी x अमरणग्राय महिश्रोपत्तो धम्मवरचरकवहितं ।
रात्रिको माना गया (भ. महावीरका शादर्श जीवन पृ. बीयम्मि समवतरणे पावाए मज्झिमाए उ॥
२१२) अत: उनके कयनानुसार भी उस दिन संध्या-समय -माव-नि. . पृ. २२६ बिहारका को अवसर नहीं था।