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अनेकान्त
[वर्ष
का ध्यान भाकर्षित किया है. वह सार्वजनिक क्षेत्रमें होता प्रभाकर पूर्व से ही, उदित पत्रिमसे नहीं." अहिंसा और मत्य सिद्धान्तोंका प्रयोग। उन्होंने अपने विश्व माज हुस्खी है, अर्थात है. पंगु है, पथ भ्रष्ट है, जीवन के प्रत्येकणसे, अपने प्रत्येक कार्य और उपदेशसे अंधकारमें है, शक्तिका प्रयोग करते हुए भी शक्ति विहीन यह साबित करनेका सतत प्रयत्न किया है कि भर्हिसा है। अत: प्यारे भाइयो!अब यही हो वह समय है जब फेवन मन्दिर या घरके किसी कोने में बैठकर ध्यान करनेकी कि हमें महिमाके मंडेके नीचे मामाना चाहिये और चीज नहीं है, पर जीवनके प्रत्येक आया में उपयोगमें लेने अपने अहिमाके अक्षय चालोकमे हिंसाकै अन्धकारको नष्ट की है। वे स्वयं कहते हैं कि जो बात मैं करना चाहगाह कर विश्वको अहिंसक बनाकर शान्तिका पाठ पढ़ाना चाहिये जो करके मरना चाहता है, वह यह है कि अहिंसा और जो अहिंसक है षही जितेन्द्री है, और जितेन्द्रियता ही सत्यको संगठित करूं. अगर वह अहिंसा और सत्य सब बीरधर्म और वीरपशु है। जब इस प्रकार से समस्त विश्व स्थानों के लिये उपरकनहीं है.हो वह भूठ है। याद रहे और
खि माहिसा मठवादी सन्यासियोंके लिये ही नहीं है, अदालतों
द्वेष, चैमनस्य, बैर, विरोध और कलह कही। इस प्रकार से चारासमात्रा और अन्य व्यवहारोंमें भी यह सनातन समस्त विश्वकै अहियकवादको अपनाने पर, फिर चामिक सिद्धान्त लागू होता है।
विभिनता जैसी कोई वस्तु ही नहीं रह जाती। जब धामिक पात्रात्य बिनु स्वाय दीनबन्धु एक्जका भी यही विभिन्नता ही नहीं तो जिन बातोंका.स्वपना हम ऋषि मते है कि यदि पाश्चात्य देश सुख और शान्तिका अनुभव प्रणीत ग्रन्थों में देखा करते है, और एकाएक जिनकी करना चाहते है, तो उन्हें अहिंसक ही संदेश विश्वको सत्यता पर विश्वास भी नहीं करते, वही भादशवादिताका देना पड़ेगा। उनके शब्द है जब तक यूरोप और अमरिका समय हम स्वयं निर्माण कर सकेंगे। और इस प्रकारका सर्व प्राणी समभावके सिद्धान्तको समझ कर जीवनके निर्माण होजाने पर विश्व शान्ति सीवर में स्वयं ही गोते मासिक पादर्शको स्वीकार नहीं करेंगे, तब तक पश्चिममें लगाने लगेगा। पर शान्ति स्थापन हेनु, विश्वको साके उत्सव हुए जास्याभिमान और साम्राज्यवाद जो युद्ध और जिस सन्देशको देना चाहते है, वह केवल कागजको रंग संहारके दो मुख्य कारण है, और जिनके कारण ही सारी कर, अथवा केवल विद्वत्तापूर्ण भाषणों द्वारा ही विश्वव्यापी मानव जाति अकथनीय वेदना पारही है. नष्ट नहीं होंगे।" नहीं बन सकेगा। इसको विश्वव्यापी बनानेके लिये प्रत्येक
अहिंसाका उपयोग ही शांति और कल्याणका देने परिवारको अपना एक एक होनहार बालक 'अहिंसक बीत' वाला है। अहिंसाके सम्बन्धमें कुतर्क करना सुमतिका की सैनामें भरती करना होगा। सैनिकोंका वर्तव्य होगा नाशक है, शांतिमें बाधक है, विश्वासको हिला देने वाला कि स्थान-स्थान पर होने वाली हिंसाको बन्द करावें।
भभिमानको बढ़ाता है, और इस प्रकार कुनर्क हमारी अपने नम्र पर हृदयग्राही उपदेशों द्वारा लोगोंको हिंसक भारमाका भयानक शत्र है। अतः प्रत्येक दैनिक स्मरणमें वृत्तिसे ग्लानि उत्पा करावें । अहिंसा विषयक लेख उसे कार्यान्वित करे, और महिमाके संदेशको विश्वव्यापी प्रतियोगितामाको जन्म दें। जो हिंसक वृत्तिके घृणित बनामेका सतत प्रयत्न करे। हमें गर्व होना चाहिये, कि हमें व्यवहारसे ऊबकर नव दीक्षित अहिंसक बने, और अहिंसा भी उमी वसुन्धरा पर जन्म धारण करनेका सौभाग्य प्राप्त सन्देशको अन्य पथ प्रान्त लोगों तक पहुंचाने में सहयोग हुपा है, जिसमें जन्म धारण कर भगवान महावीर और है, उसे प्रोत्साहन दें। उसका उदाहरण कन्य लोगोंके हुर ने अपने अहिंसावाद और विश्वप्रेमके नाद द्वारा स्वर्गीय सामने पसे, अथवा उसे किसी अन्य प्रकारसे सम्मानित भादर्श स्थापित किया था। भाज भी हमारा बही बह करें। जिन महान विभूतियोंने, अथवा भाचार्योंने अहिंसा पुराना भारत है, और प्रकृति प्राज भी हमें पूर्ण सहयोग के सिद्धान्तको विश्वम्यारी बनाने के लिये भारम समर्पण कर रही।योंकि:
दिया था, अपने परिवार तथा संसार सुखको त्याग दिया 'इस बात की साली प्रकृति भी चमी सकसकही। था, और जो कर रहे हैं, अथवा भविष्यमें करें उनका