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पर सूख रहे जागो जागो
निमें उमड़
जागो जागो हे युगप्रधान !
[ले.-माहित्याचाय पं. पन्नालाल जन 'बमन्त'] है शक्ति निचित सारी तुममें, तुम ही हो जगके नर महान
जागो जागो हे युगप्रधान ! क्षितिपर हरियाली छाई है, पर सूग्व रहे मानव-श्रानन, . मरिताएँ बनमें उमड़ रहीं, पर खाली है मानस-कानन, घन-घटा व्योममें घुमड़ रहीं, पर भूपर है ज्वाला-वितान,
- जागो जागो हे युगप्रधान ! नभसे होती है बाम्बवृष्टि, क्षितिपर सरिताएँ लहगतीं, जठरोंने नरके ज्वालाएँ हैं बढ़ी भूम्बकी हहराती, है सुलभ नहीं दाना उनको, आँखों में छाया तम महान,
जागो जागो हे युगप्रधान ! कितने ही भाई विलख रहे, कितनी ही बहिनें रोती हैं, कितनी ही मानाएँ प्रतिपल, अपने शिशु-धनको खोती हैं, जग भूल गया कर्तव्य-कमें, जिससे पाता था सुम्ब-निधान,
जागो जागो हे युगप्रधान ! है रणचण्डीका अतुल नृत्य, दिखलाता जगमें विकट खेल, है बन्धु बन्धुमें कैप बढ़ा, है नहीं किसी के निकट मेल, कंकालमात्र अब शेष रहा, मब दूर हुआ बल सौख्य दान,
जागो जागो हे युगप्रधान ! यह लाल-दैत्य-ज्वालाभितप्त करता आता है ध्वंस आज, यह प्रलय कद्र उत्तप्त हुआ है सजा रहा संसार साज, बन, उठो वीर हे!सजल मेघ, कर दो जगसे ज्वालाऽवसान,
जागो जागो हे युगप्रधान ! जगतीमें छाया निविड़ध्वान्त, पथ भूल रहे नर सुगमकान्त, दिग्वता है मानव-हृदय क्लान्त, सागर लहराता हो अशान्त, . लेकर प्रकाशकी एक किरण, करने जगम आलोक-दान,
जागो जागो युगप्रधान ! हैं पुरुष आप पुरुषार्थ करें, नर रोज विश्व में प्राप्त करें, हैं तकण, तपी तरुणाईसे नभमें महान आलोक धरें, भर कर उरमें संदेश दिव्य, फैलाने जगमें अतुल ज्ञान,
जागो जागो हे युगप्रधान ! वीती रजनी, श्राया प्रभात, प्राचीमें फूट उठी लाली, खगदल के मञ्जुल विहागसे, हो उठी लसित डाली डाली, जग भर कर निज चैतन्य-साज, हैचला दिलाने स्वावदान,
जागो जागो हे युगप्रधान ! फैले जगमें फिर एक बार, वीरोंका वह कमनीय गान,
जागो जागो हे युगप्रधान ! .