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किरण १]
क्या गृहस्थके लिये यज्ञोपवीत आवश्यक है
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स्त्री जनेऊ न पहिने उपका पुरुष पहिने-अर्थात् स्त्री 'सूत्रकण्ठाः'-लेमें तागा डालने वाले-जैसे उपचाहे जितना पाप-पुण्य करे पुरुष के पुण्य करनेसे बह हासास्पद या विकारतके शब्दोंसे उल्लेखित किया है। तर सकती है । इस ग्रंथानुसार चक्रवर्तीको तो६६००० यदि उस समय तक जैनियोंमें जने का रिवाज हुआ जनेऊ पहिनना चाहिये, जिसका कहीं विधान नहीं; तब होता तो वे ब्रारूणोंके लिये ऐसे हीन पदोंका प्रयोग उसके लिये इनका ही वोझ असह्य हो जावेगा, वह न करते। उन्हींसे ढक जावेगा, कान पर किस किसको टांगेगा (८) यदि धार्मिक नियमोंके लिये यह आड़ मात्र आदि बड़ी अजीव बातें हैं।
है तो आड़ तो कोई भी हो सकती है-जैसे चोटी (५) पूजामें अर्घके साथ दक्षिण प्रान्तमें जनेऊ रखना, डाढ़ी रखना, मूळे मुंडवाना इत्यादि; फिर गले भी चढ़ाया जाता है-समझ नहीं पड़ता इसका क्या में तागा डालनेकी ही क्या जरूरत है? उद्देश्य है?
ऐसी हालतमें यज्ञोपवीतकी प्रथा गृहस्थ जैनोंके (६) जनेऊ प्रथाने समाजमें भयंकर फूट फैला लिये अनिवार्य न होकर निस्सार प्रतीत होती है। रक्खी है। जो जनेऊ न पहिन वह “शूद्र" ऐमा कहा अतः हमारे पूज्य त्यागीवर्गको चाहिये कि वे इस जाता है, इससे आदि प्रभु श्री ऋषभदेव पहिले शूद्र पर व्यर्थका जोर लगा कर आपसमें फूट न कहलायेंगे-तब हमें शूद्र होने में ही महान् गौरव फैलाएँ-उन्हें तो सामान्यतया मूल गुणोंका उपदेश है, क्यों ब्राह्मण बनें?
देकर जैनी बनाना और पुराने जैनियोंका रक्षण (७) पद्मपुराणमें श्री रविषेणाचार्यने ब्राहाणोंको करना चाहिये।
पुरुस्कार-सूचना
कानपुर अधिवेशनके अवसर पर जैन परिषद्ने भगवान महावीरकी जीवनीके उत्तमोत्तम लेखकको चार हजार रुपयेका पुरुस्कार देनेका प्रस्ताव पास किया था और उसकी निर्णायक कमेटी भी बनाई गई थी। इस मोर कौन कौनसे विज्ञान प्रयत्नशील हैं, वे हमे ३० अक्टूबर तक सूचित करदें, ताकि हमको मालूम हो सके कि कितने विद्वान पुरुस्कार प्रतियोगितामें भाग ले रहे हैं। __ डालमियानगर ?
अयोध्याप्रसाद गोयलीय