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छठे वर्षमें अनेकान्तके सहायक अनेकान्तके प्रेमी पाठकोंको 'विज्ञप्ति अंक' श्रादिपरसे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हो रही है कि जैनसमाजके लिये गौरवरूप 'अनेकान्त' पत्र त्रिमासिक न होकर बदस्तूर मासिक रूपमें ही प्रकाशित हुश्रा करेगा, पालेसे भी अब अधिक उत्साहके साथ प्रकाशित होगा, उसमें सरल साहित्यकी भी यथेष्ट योजना रहेगी और वह विद्वानोंका ही पत्र न रहकर जनताका सर्वोपयोपी पत्र बनेगा। इसलिये चारों ओरसे अनेकान्तकी सहायता और सहयोगका चर्चा सुनाई पड़ रहा हैप्रेमी जन अपने अपने योग्य सहायता और सहयोगकी बातें सोच रहे हैं, अनेकान्त-साहित्य के प्रचार एवं प्रसारके लिये अजैन विद्वानों तथा लायब्रेरियों श्रादिको अनेकान्त झी या अर्धफ्री भिजवानेकी योजनाएँ हो रही है, कितने ही विद्वानोंने खुले दिलसे सहयोगका वचन दिया है, कुछने अपने लेखादिक भेजने प्रारंभ भी कर दिये हैं और बहुतसे सज्जन इस प्रयत्नमें लगे हुए हैं कि अपने मित्रों, रिश्तेदारों, परिचित व्यक्तियों और दूसरे समर्थ महानुभावोसे अनेकान्तको अच्छी सहायता भिजवाएँ, जिससे वह इच्छानुसार उँचा उठ सके, खूब प्रगति कर सके और समाजकी सच्ची ठोस सेवा बजा सके । जो सज्जन इस प्रयत्नमें लगे हुए हैं सब वे धन्यवादके पात्र हैं। समाजकी इस हलचलको देखते हुए हमें यह श्राशा बँध रही है कि हम शीघ्र ही अपने सहयोगियों और सहायकोंकी एक अच्छी सूची प्रकट करने में समर्थ हो सकेंगे। इस प्रथम किरणके प्रकट होनेसे पहले ही जिन महानुभावोंने आर्थिक सहायताके वचन देनेमें पहल की है अथवा जिन्होंने फिलहाल कुछ सहायता भेजदी हैं उन सबके हम हृदयसे श्राभारी हैं। ऐसे सज्जनोके शुभ नाम सहायताकी रकम सहित इस प्रकार हैं६००) बाबू छोटेलालजी जैन रईस, कलकत्ता ।
५) ला• कस्तूर माणिककंदजी जैन, पेपरमचेंन्ट, आगरा १०१) ला• कपूरचन्दजी जैन रईस, कानपुर ।
५)ला. जगाधरमलजी सर्राफ जैन, देहली। २८) ला• रूड़ामलजी जैन शामिलानेवाले, सहारनपुर । ५) ला• रेशमीलालजी सेठिया, इन्दौर । २५) बा. महावीरप्रसादजी जैन बी. ए. सर्धना जि.मेरठ २) गाँधी चम्पालाल मगनलाल जी बांसवाड़ा। २५) मशीरबहादुर सेठ गुलाबचंदजी टोग्या, इन्दौर * नोट-जिनके आगे * यह चिन्ह लगा है उनकी श्रीरसे २१)ला. प्रद्युम्नकुमारजी जैन गईस, सहारनपुर
अनेकान्त फ्री भेजा जायगा । १४)रु. की सहायतामें चार १४) बा. मंगलकिरणजी, मल्हीपुरप्रेस, सहारनपुर को फ्री भेजा जा सकता है। -व्यवस्थापक 'अनेकान्त 0000000000000000000000000000.......
पुरातन-जैनवाक्य-सूची जिस पुरातन जैनवाक्य-सूची (प्राकृतपणानुक्रमणी) नामक ग्रन्थका परिचय पिछली किरणों में दिया जा चुका है और जिसकी बाबत पाठक यह जानते भा रहे हैं कि वह कुछ महीनोंसे प्रेसमें है, उसके सम्बन्धमें माज यह सूचना देते हुए प्रसवता होती है कि वह छप गया है-सिर्फ़ प्रस्तावना तथा कुछ उपयोगी परिशिष्टों का रूपमा और उसके बाद बाइंडिंगका होना बाकी है, जो एक माहसे कम नहीं लेगा। प्रस्तावना तथा परिक्षिों में प्राकृत भाषा और इतिहासादि सम्बन्धी कितने ही ऐसे महत्वके विषय रहेंगे जिनसे ग्रन्थकी उपयोगिता और
भी बढ़ जायगी। पीटके उत्तम कागज पर पे हुए इस सजिल्द प्रन्थका मूल्य पोटेज से अलग ..)३० होगा, जो ग्रन्थकी तय्यारी और सपाई में होने वाले परिश्रम और कागजकी स भारी मंहगाईको
देखते हुए कुछ भी नहीं है। जो सजन प्रकाशित होनेसे पहले १२). मनीमार्डर से भेज देंगे उन्हें पोटेज नहीं देना होगा--प्रकाशित होते ही अन्य डाक रजिटरीसे उनके पास पहुँच जायगा। ग्रन्थकी कुल ३०. कापियां छपाई गई, जो शीघ्र ही समास हो जायेंगी, क्योंकि कितने ही मार पहलेसे भाप हुए हैं। भत: जिन सजनों, संस्थाओं कालिज तथा सायबेरियों माविको भावश्यकता हो वे शीघ्र ही मनीमारसे रूपमा निम्न पते पर भेज देवे अथवा अपना नाम दर्ज रजिष्टर करा दे।
अधिष्ठाता 'बीरसेवामन्दिर' सरसावा, जि. सहारनपुर ।