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विषय-सूची
८ श्राजका मे० और जै० रत्नत्रय - [कौशलप्रसाद जैन ५७ E क्या गृहस्थ के लिये य० श्रावश्यक है - [पं० रवीन्द्रनाथ ६० १० जैनधर्मकी एक झलक - [पं० सुमेरचन्द्र दिवाकर ६२ ११ जैन० सामग्रीपर विशेषप्रकाश - [श्रीनगरचंद्रनाइटा ६५ १२ कवि-प्रतिबोध (कविता) - [पं० कपूरचंद्र जैन 'इन्दु' ६८ १३ सा० सम्यक्त्व के सम्बन्ध में शा० - [प्रो० हीरालाल जे न६६ १४ वी शामनकी उत्पत्तिका समय और स्थान - [सम्पादक ७६ बीरसेवामन्दिरको सहायता
१ समन्तभद्र भारतीके कुछ नमूने -- [सम्पादक
२ अनेकान्त-रस- लहरी[सम्पादक ३ कवि-कर्तव्य (कविता ) [ श्रीभगवन जैन ४ प्रतीतस्मृति (एक स्केच ) - [पं० कन्हैयालाल 'प्रभाकर' ४७ ५. स्वाधीनताकी दिव्यज्योति (कहानी) - [श्रीभगवत जैन ४६ ६ साहित्यकी महत्ता - [पं० मूलचंद 'वस्मल' साहित्यशास्त्री ५४ ७ दुखका स्वरूप - [पं पुरुषोत्तमदास मुरारका, साहित्यरत्न ५६
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गतवर्षी १२ वीं किरण में प्रकाशित सहायता के बाद, वीरसेवामन्दिर सरसावाको अनेकान्न सहायता के अलावा जो दूसरी फुटकर सहायता प्राप्त हुई है वह निम्न प्रकार है और इसके लिये दातार महोदय धन्यवादके पात्र है:१०१) दिगम्बर जैन समाज नजीबाबाद जि० बिजनौर |
८०) ला० सुन्दरलाल सुपुत्र ला० सुनामलजी जैन फर्म- मेसर्स रामजीदास जैन, सदर बाजार, देहली, अनित्यभावना के प्रकाशनार्थ ।
५१) बा० मोतीरामजी पुत्र श्रौर श्रीमती शकुन्वला देवीजी पुत्रवधू बा० पन्नालालजी जैन श्रमवाल, देवली, मंत्री वीरसेवामंदिर ( ग्रन्थ प्रकाशनार्थ) ।
२५) पं० नाथूरामजी प्रेमी, मालिक हिन्दी ग्रन्थरत्नाकर कार्यालय हीराबाग, बम्बई ।
२१) ला० उग्रसेनजी जैन, मुजफ्फरनगर (ग्रन्थप्रकाशनार्थ) ।
१०) श्री कान्तीलालजी, सी० गान्धी, दोहद |
१०) ला० कन्नालाल, छनालालजी सर्राफ, खुरई जि० सागर ।
१०) भी जैनपंचायत, मुजफ्फरनगर ।
५) बा० मंगतराय नानकचंदजी जैन, खतौली जि० मुजफ्फरनगर (लायब्रेरी के लिये ) |
५) ला० बलवन्तसिंह सुमतप्रसादजी जैन बतौली (लायब्रेरीके लिये) ।
५) श्री दि० जैन तेरापंथी गांठ, बडनगर (उजन ) ।
१) ला ईश्वरचंदजी जैन, माग्बाडी लायब्रेरी, दहली ।
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- अधिष्ठाता 'वीर सेवामन्दिर'
पुरातन जैनवाक्य-सूची
जिस पुरातन जैनवाक्य-सूची (प्राकृतपचानुक्रमवी) नामक ग्रन्थका परिचय पिछली किरणोंमें दिया जा चुका है और जिसकी बाबत पाठक यह जानते का रहे हैं कि फेड कुछ महीनोंसे प्रेस में है, उसके सम्बन्धमें आज यह सूचना देते हुए प्रसन्नता होती है कि वह रूप गया है— सिर्फ प्रस्तावना तथा कुछ उपयोगी परिशिहों का अपना और उसके बाद बाइंडिंगका होना बाकी है, जो एक माहसे कम नहीं लेगा । प्रस्तावना तथा परिशिहों मैं प्राकृत भाषा और इतिहासादि सम्बन्धी कितने ही ऐसे महत्वके विषय रहेंगे जिनसे प्रत्यकी उपयोगिता और भी बढ़ जायगी । ३६ पौंडके उत्तम कागज पर छपे हुए इस सजिल्द प्रन्थका मूल्य पोष्टेल खर्चसे अलग १२) ६० होगा, जो प्रत्यकी तय्यारी और चपाई होने वाले परिश्रम और कागजकी इस भारी मँहगाईको देव हुए कुछ भी नहीं है जो सज्जन प्रकाशित होनेसे पहले १२ ) ३० मनीआर्डर से भेज देंगे उन्हें पोटेज नहीं देना होगा—प्रकाशित होते ही प्रथ डाक रजिष्टरीसे उनके पास पहुँच जायगा। प्रन्थकी कुल ३०० कापियां पाई गई है, जो शीघ्र ही समाप्त हो जायेंगी, क्योंकि कितने ही आर्डर पहलेसे आए हुए हैं। wa: जिन सज्जनों, संस्थाओं काबिज तथा खायत्रेरियों आदिको आवश्यकता हो वे शीघ्र ही मनीभाईरसे रुपया निम्न पते पर भेज देवे अथवा अपना नाम दर्ज रजिस्टर करा लेवें ।
अधिष्ठाता 'बीर सेवामंदिर' सरसावा, जि० सहारनपुर ।
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