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अनेकान्त
[वर्ष ६
करते हैं और कहा करते हैं कि मैं यह कर सकता हूँ, विचारसे कहा। वह कर सकता हूँ" एक वृद्धसे व्यक्तिके शब्द थे, जो "तो आखिर यह लोग मुझसे चाहते क्या हैं?" शायद अपनी मनोकामना पूर्ति के स्वप्न देख रहा था। उनका प्रश्न था।
'भाई ! न मैं कोई योगी हूँ न महात्मा, और न "आपके रातके किये हुए सफलताकार्यको देख ही कोई अन्य सिद्धिप्राप्त साधु, मैं तो आप लोगों कर ये लोग आपको सिद्ध, महात्मा मर्वशक्तिमान जैसा साधारण गृहस्थ हूँ। अन्तर केवल इतना है कि और न जाने क्या २ समझने लगे हैं और अब श्राप मैंने अपनी आत्मिक शक्तिको समझ लिया है और के पास यह आशा लेकर आये हैं कि आप इन सब
आप लोग अपने आपको बहुत कमजोर समझे हुए की मनोकामना पूरी करदें", मैंने और स्पष्ट करने के हैं। यदि आप लोग भी अपनेको समझलो, अपनी उद्दश्यसे कहा। शक्तिको पहिचानलो तो मेरेसे भी बहुत आगे बढ़ , “मैंने तो वह कोई बहुत बड़ा कार्य नहीं किया है। सकते हो और सारे संसारकी शक्तियां तुम्हारे चरणों योगका जानने वाला तो उससे भी बड़े कार्य कर पर लोटती हुई नजर आयेंगी", ओजपूर्ण स्वरमें सकता है, वह भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालकी धाराप्रवाह वह बं:ल रहे थे।
बाजानता है, इच्छानुसार प्राकृतिक कार्यों तकमें "जब तक मनुष्य अपनी आत्मिक शक्तिको नहीं दखल दे सकता है। जैसे जब चाहे वर्षा रोक सकता पहिचानता है और अपने आपको कमजोर ममझता है, सूर्य छिपा सकता है, कैसे ही बीमार आदमीको रहता है तब तक वह कुछ नहीं कर सकता यह बात नीरोग कर सकता है, आकाश और जमीनके अन्दर
आजकी ही नहीं है हिन्दू शास्त्रों और पुराने प्रन्थोंमें तक गमन कर सकता है, आँखोंसे अदृश्य हो इसके सैंकड़ो उदाहरण भरे पड़े हैं कि जो व्यक्ति सकता है, चाहे जिसको वशमें करके उससे जो अपने आपको कुछ नहीं समझा करते थे जब उनको चाहे कार्य लेसकता है, मृतात्माओंको बुला उनकी आत्मिक शक्तिका परिचय कराया गया तो सकता है और भी न जाने क्या २ कर सकता है। उन्होंने वह अद्भुत कार्य किये हैं कि संसारमें उनका योगके बलसे ही श्रीकृष्णजीने पालने में ही पूतना नाम अमर हो गया है। दूर क्यों जाते हैं रामायण राक्षसीको मार दिया था, बाल्यकालमें ही कसकी को ही लेलीजिये "हनुमान" जैसा वीर प्रतिभाशाली हत्या की थी, अंगुली पर गोवर्धन उठा लिया था। और विद्वान व्यक्ति ब्रामणका वेश बनाकर श्रीरामचंद्र हनुमानजी एक रातमें ही लक्ष्मणकी बेहोशी पर इतनी के पास आता है कि कहीं दुश्मनके गुप्तचर न हों पर दूरसे बूटी ले आये थे। 'बलि' अपने सामने वाले जब रामचन्द्र उसे उसकी भात्मिक शक्तिका परिचय योधाकी आधी शक्ति अपने में खींच लेता था, अहिकरा देते हैं तो वही "इनुमान" अकेला लंकामें जाकर रावण रावणके आह्वान पर पातालसे आकर राम न केवल दुश्मनके घर जाकर सीता मातासे वार्ता- लक्ष्मणको उठा ले गया था । युद्धसे दूर बैठे हुए भी लाप करता है वरन कई हजार राक्षसोंको अकेला ही संजय धृतराष्ट्रको युद्धकासारासमाचार ऐसे देते थे जैसे मार कर लंका फूक कर वापिस आता है, इसी प्रकार अपनी आखोंसे देख रहे हों। तात्पर्य यह है कि संसार के और सैंकड़ों उदाहरण दिये जामकते है"। का ऐसा कोई कार्य नहीं है जिसे योगी न कर सकता
बात-चीत लम्बी होती जारही थी और वहां बैठे हो और मैं उसी योगके एक साधारण अंगका साधाकिसी व्यक्तिका (जो वास्तवमें ज्ञान सुनने नहीं, रण सा विद्याथी हूँ।" आप लोगोंकी मैं कोई मनोबरदान मांगने आये थे) मन नहीं लग रहा था। कामना पूरी नहीं कर सकता हूँ, इससे मेरी साधनामें
“महाराज! ये लोग तो गँवार आदमी हैं ये बाधा पड़ती है। अलबत्ता भाप लोगोंको यह विद्या झानकी बातें क्या समझे ?" मैंने बात खत्म सौ करनेके बतला और समझा सकता हूँ ताकि आप भी मेरेही