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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण दशवैकालिक के चतुर्थ अध्ययन छज्जीवणिया के आधार पर लिखी गयी अथवा आचारांग के प्रथम अध्ययन शस्त्र-परिज्ञा पर, इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। दशवैकालिकनियुक्ति में 'गोविंदवायगो वि य, जह परपक्खं नियत्तेइ मात्र इतना उल्लेख है।
__ यह नियुक्ति आचारांग के प्रथम अध्ययन शस्त्र-परिज्ञा के आधार पर लिखी गयी प्रतीत होती है। इसके कुछ हेतु इस प्रकार हैं
• अप्काय की जीवत्व-सिद्धि के प्रसंग में आचारांग चूर्णि में उल्लेख है-'जं च निन्जुत्तीए आउक्कायजीवलक्खणं, जंच अज्जगोविंदेहि भणियं गाहा'२--इस उद्धरण से स्पष्ट है कि आचारांग के प्रथम अध्ययन के आधार पर उन्होंने नियुक्ति लिखी होगी।
• आचारांग सूत्र में भगवान् महावीर ने इन स्थावरकायों की अस्तित्व-सिद्धि के अनेक सूत्रों का उल्लेख किया है, जबकि दशवैकालिक में केवल इनकी अहिंसा का विवेक है। आचारांगनियुक्ति में भी स्थावरकाय-सिद्धि की कुछ गाथाएं हैं। संभव है आचार्य भद्रबाहु ने गोविंदनियुक्ति से कुछ गाथाएं ली हों क्योंकि गोविंदाचार्य भद्रबाहु द्वितीय से पूर्व के हैं। दशवैकालिक की दोनों चूर्णियों से भी गोविंद आचार्य के नामोल्लेख पूर्वक यह गाथा मिलती है
काये वि हु अज्झप्पं, सरीर-वायासमन्नियं चेव।
काय-मणसंपउत्तं, अज्झप्पं किंचिदाहंसु॥ आज स्वतंत्र रूप से गोविंदनियुक्ति नामक कोई ग्रंथ नहीं मिलता फिर भी प्राप्त तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि गोविंद आचार्य ने गोविंद नियुक्ति लिखी थी, जो आज अनुपलब्ध है। पिण्डनियुक्ति का कर्तृत्व एवं रचनाकाल
नियुक्ति-साहित्य के कर्तृत्व के बारे में अनेक ऊहापोह होने के बाद अभी तक इस बात में मतैक्य नहीं है कि मूल नियुक्तिकार कौन थे? भद्रबाहु प्रथम अथवा द्वितीय? प्राचीनकाल में प्रतियों में रचनाकार एवं रचनाकाल का उल्लेख न होने से आज यह निर्णय करना कठिन होता है कि अमुक ग्रंथ के रचनाकार कौन हैं ? पिण्डनियुक्ति जैसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ की भी यही स्थिति है। आचार्य मलयगिरि ने पिण्डनियुक्ति तथा द्रोणाचार्य ने ओघनियुक्ति की टीका' में ग्रंथकर्ता के रूप में चतुर्दशपूर्वी भद्रबाहु का उल्लेख किया है।
धात्रीपिंड के अन्तर्गत पिनि १९९ के लिए निशीथ चूर्णि में 'एसा भद्दबाहुकया णिज्जुत्तिगाहा' (निचू ३ पृ. ४०७) का उल्लेख है। इसी प्रकार पिनि २०५ के लिए भी निशीथ चूर्णि (निचू ३ पृ. ४११) में 'इमा भद्दबाहुकया गाहा' का उल्लेख है। इस उल्लेख से यह तो स्पष्ट है कि आचार्य भद्रबाहु ने ही पिंडनियुक्ति की रचना की लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि चतुर्दश पूर्वधर प्रथम भद्रबाहु ने इसकी रचना की १. दशनि ७८।
३. दशजिचू १०१, दशअचू पृ. ५३ । २. आचू पृ. २७।
४, ५. मवृ प. १, ओनिटी प. ३।
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