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पिंडनियुक्ति आचार्य गोविंद एवं उनकी नियुक्ति
आचार्य भद्रबाहु द्वारा लिखित नियुक्तियों के अतिरिक्त गोविंद आचार्य कृत गोविंदनियुक्ति का उल्लेख अनेक स्थानों पर मिलता है। आवश्यकनियुक्ति में दर्शनप्रभावक ग्रंथ के रूप में गोविंदनियुक्ति का उल्लेख हुआ है। निशीथ चूर्णि में गोविंद आचार्य का परिचय इस प्रकार मिलता है -
गोविंद' नामक एक बौद्ध भिक्षु था। एक जैन आचार्य द्वारा वाद-विवाद में वह अठारह बार पराजित हुआ। पराजय से दु:खी होकर उसने चिंतन किया कि जब तक मैं इनके सिद्धांत को नहीं जानूंगा, तब तक इन्हें नहीं जीत सकता इसलिए हराने की इच्छा से ज्ञान-प्राप्ति के लिए उसी आचार्य को दीक्षा के लिए निवेदन किया। सामायिक आदि का अध्ययन करते हुए गोविंद भिक्षु को सम्यक्त्व का बोध हो गया। गुरु ने उसे महाव्रत-दीक्षा दी। दीक्षित होने पर गोविंद भिक्षु ने सरलतापूर्वक अपने दीक्षित होने का प्रयोजन गुरु को बता दिया। उनके दीक्षित होने का उद्देश्य सम्यक् नहीं था अतः उन्हें ज्ञान-स्तेन कहा गया है।
बृहत्कल्पभाष्य में उनका उल्लेख ज्ञान-स्तेन के रूप में नहीं है। वे हेतुशास्त्र युक्त गोविंदनियुक्ति लिखने तथा विद्या और मंत्र की प्राप्ति के लिए दीक्षित हुए, ऐसा भाष्यकार तथा टीकाकार मलयगिरि का मंतव्य है। निशीथभाष्य एवं पंचकल्पभाष्य में भी ऐसा ही उल्लेख मिलता है । व्यवहारभाष्य में मिथ्यात्वी के रूप में उनका उल्लेख मिलता है। वहां चार प्रकार के मिथ्यात्वियों के उदाहरण हैं, उनमें गोविंद आचार्य पूर्व गृहीत आग्रह के कारण मिथ्यात्वी थे। ठाणं सूत्र में प्रव्रज्या के दस कारणों में अपनी इच्छा विशेष से दीक्षित होने में गोविंद आचार्य का उल्लेख है।
___ नंदी सूत्र की स्थविरावली के अनुसार ये आर्य स्कन्दिल की चौथी पीढ़ी में हुए। नंदी सूत्र में इन्हें विपुल अनुयोगधारक, क्षांति-दया से युक्त तथा उत्कृष्ट प्ररूपक के रूप में प्रस्तुत किया गया है
गोविंदाणं पि नमो, अणुओगे विउलधारणिंदाणं।
निच्चं खंतिदयाणं, परूवणा दुल्लभिंदाणं॥ गोविंदनियुक्ति में उन्होंने एकेन्द्रिय जीवों में जीवत्व-सिद्धि का प्रयत्न किया है। यह नियुक्ति
१. निभा ३६५६, चू. पृ. २६०। २. आचार्य हरिभद्र ने गोविंद के स्थान पर गोपेन्द्रवाचक का प्रयोग किया है (दशहाटी प.५३)। ३. निचू ३ पृ. ३७ ; भावतेणो सिद्धतावहरणट्ठताए केणति पउत्तो आगतो, अप्पणा वा गोविंदवाचकवत्। ४. बुभा ५४७३, टी. प. १४५२; विद्या-मंत्रनिमित्तार्थं हेतुशास्त्राणां च गोविंदनियुक्तिप्रभृतीनामर्थाय। ५. (क) निभा ५५७३, निचू पृ. ९६; हेतुसत्थगोविंद-निज्जुत्तादियट्ठा उवसंपज्जति।
(ख) पंकभा ४२०; गोविंदज्जो णाणे, दंसणसुत्तट्ठहेतुसट्ठा वा। ६. व्यभा २७१४, पुव्वग्गहितेण होति गोविंदो। ७. स्था १०/१५। ८. निचू ३ पृ. २६०; पच्छा तेण एगिंदियजीवसाहणं गोविंदनिज्जत्ती कया।
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