________________
१०
पिंडनियुक्ति
रचना है। उसके छह अध्ययनों की नियुक्तियों का भी अलग-अलग नाम से स्वतंत्र अस्तित्व मिलता है। नीचे कुछ नाम तथा उनका समावेश किस निर्युक्ति में हो सकता है, इसका उल्लेख किया जा रहा है
आवश्यकनिर्युक्ति आवश्यकनिर्युक्ति
१. सामाइयनिज्जुत्ती
२. लोगस्सुज्जोयनिज्जत्ती
३. णमोक्कारनिज्जुत्ती
आवश्यक नियुक्ति
४. परिट्ठावणियानिज्जुत्ती
आवश्यक निर्युक्ति
५. पच्चक्खाणनिज्जुत्ती
आवश्यक नियुक्ति
६. असज्झाइयनिज्जुत्ती
आवश्यकनिर्युक्ति
७. समोसरणनिज्जुत्ती
आवश्यक नियुक्ति
८. कप्पनिज्जुत्ती
बृहत्कल्प तथा दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति
९. पज्जोसवणाकप्पनिज्जुत्ती
इसके अतिरिक्त जिन आगमों पर नियुक्तियां लिखी गई हैं, उनके अलग-अलग अध्ययनों के आधार पर ही निर्युक्ति के अलग-अलग नाम मिलते हैं, जैसे- आचारांगनिर्युक्ति में सत्थपरिण्णानिज्जुत्ती, महापरिणानिज्जत्ती और धुयनिज्जुत्ती आदि नामों का उल्लेख मिलता है ।
वर्तमान में उपलब्ध नियुक्तियों में कुछ निर्युक्तियां स्वतंत्र रूप से मिलती हैं, जैसे- आचारांग और सूत्रकृतांग की नियुक्तियां । कुछ निर्युक्तियों के आंशिक अंश पर लघु भाष्य मिलते हैं, जैसे- दशवैकालिक और उत्तराध्ययन की नियुक्तियां । कुछ निर्युक्तियों पर बृहद्भाष्य हैं पर दोनों का स्वतंत्र अस्तित्व मिलता है, जैसे - आवश्यकनिर्युक्ति, ओघनिर्युक्ति' आदि। कुछ निर्युक्तियां ऐसी हैं, जो भाष्य के साथ मिलकर एक ग्रंथ रूप हो गयी हैं, जिनको आज पृथक् करना अत्यंत कठिन कार्य है, जैसे- निशीथ, व्यवहार, बृहत्कल्प आदि की नियुक्तियां ।
निर्युक्ति-रचना का क्रम
आवश्यक नियुक्ति में आचार्य भद्रबाहु ने दश निर्युक्तियां लिखने की प्रतिज्ञा की है । पंडित दलसुखभाई मालवणिया का अभिमत है कि भद्रबाहु ने आवश्यकनिर्युक्ति में जिस क्रम से ग्रंथों की नियुक्तियां लिखने की प्रतिज्ञा की, उसी क्रम से नियुक्तियों की रचना हुई है। इस कथन की पुष्टि में कुछ हेतु प्रस्तुत किए जा सकते हैं
१. आचारांगनिर्युक्ति गा. १७७ में 'लोगो भणिओ' का उल्लेख है। इससे आवश्यक निर्युक्ति
१. ओघनियुक्ति और उसका भाष्य पृथक् रूप से प्रकाशित होते हुए भी नियुक्ति और भाष्य की गाथाएं आपस में मिल गई हैं । नियुक्ति के पांचवें खण्ड में इस विषय में चर्चा की जाएगी।
२. गणधरवाद पृ. १३, १४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org