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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण
निशीथ नियुक्ति को कुछ विद्वान् आचारांग नियुक्ति की पूरक मानते हैं लेकिन निशीथ नियुक्ति की रचना स्वतंत्र रूप से आचारांग नियुक्ति के बाद हुई क्योंकि आचारांग की चार चूलाओं की आचार्य भद्रबाहु ने अत्यन्त संक्षिप्त नियुक्ति लिखी है लेकिन निशीथ नियुक्ति अत्यन्त विस्तृत शैली में लिखी गई है। स्वयं नियुक्तिकार आचारांग की विमुक्ति (चौथी) चूला की नियुक्ति में संकल्प व्यक्त करते हैं कि आचारांग की चौथी चूला के बाद अब मैं पंचम निशीथ चूला के बारे में कहूंगा। उनके इस कथन से ग्रंथ का पृथक् अस्तित्व स्वतः सिद्ध है। अन्यथा वे ऐसा उल्लेख न करके आचारांग नियुक्ति के साथ ही इसकी रचना कर देते।
निशीथ नियुक्ति की रचना शैली की भिन्नता देखकर यह संभावना व्यक्त की जा सकती है कि भद्रबाहु द्वितीय ने इसे विस्तार देकर इसका स्वतंत्र महत्त्व स्थापित कर दिया हो। आचार्य भद्रबाहु जहां दश नियुक्तियां लिखने की प्रतिज्ञा करते हैं, वहां निशीथ का नामोल्लेख नहीं है। यह चिन्तन का प्रारम्भिक बिन्दु है। अभी इस क्षेत्र में और अधिक खोज की आवश्यकता है। इसके बारे में विस्तृत ऊहापोह नियुक्ति साहित्य के छठे खण्ड में किया जाएगा।
पंचकल्पनियुक्ति को भी बृहत्कल्प की पूरक नहीं माना जा सकता। ऐसा अधिक संभव लगता है कि आचार्य भद्रबाहु ने 'कप्पो तह दसाणं च' इस 'कप्प' शब्द के उल्लेख से पंचकल्प और बृहत्कल्पइन दोनों नियुक्तियों का समावेश कर दिया है।
वर्तमान में सूर्यप्रज्ञप्ति तथा ऋषिभाषित पर लिखी गयी नियुक्तियां और आराधनानियुक्ति अनुपलब्ध है। संसक्तनियुक्ति की हस्तलिखित प्रतियां मिलती हैं किन्तु अभी तक वह प्रकाशित नहीं हो पायी है। इसकी प्रतियों में गाथाओं तथा पाठ का बहुत अंतर मिलता है। इसमें ८४ आगमों के सम्बन्ध में उल्लेख है अत: विद्वान् लोग इसे परवर्ती एवं असंगत रचना मानते हैं। सरदारशहर के गधैया हस्तलिखित भंडार में महेशनियुक्ति की प्रति भी मिलती है किन्तु यह खोज का विषय है कि यह किस ग्रंथ पर कब और किसके द्वारा लिखी गई?
इन नियुक्तियों के अतिरिक्त गोविंद आचार्यकृत गोविंदनियुक्ति का उल्लेख भी अनेक स्थलों पर मिलता है। इसके बारे में विस्तार से भूमिका में आगे चर्चा की जाएगी।
___ आचार्य भद्रबाहु द्वारा उल्लिखित नियुक्तियों के अतिरिक्त अन्य नियुक्तियों की निश्चित संख्या के बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। स्वतंत्र विषय पर लिखी गईं नियुक्ति-गाथाओं को भी मूल नियुक्ति से अलग कर उसे स्वतंत्र नियुक्ति का नाम दिया गया है, जैसे-आवश्यकनियुक्ति एक विशाल १. आनि ३६६ ; आयारस्स भगवतो, चउत्थचूलाइ एस निज्जुत्ती।
पंचमचूलनिसीहं, तस्स य उवरि भणीहामि॥ २. निभा ५५७३, बृभा ५४७३, टी. पृ. १४५२, पंकभा ४२०।
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