________________
पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण
(गा. ६८२, ६८३१) में चतुर्विंशतिस्तव के लोगस्स' पाठ की व्याख्या की ओर संकेत है।
२. 'आयारे अंगम्मि य पुव्बुट्टिो' उल्लेख आचारांगनियुक्ति (गा. ५) में है। दशवैकालिक के क्षुल्लिकाचार अध्ययन की नियुक्ति (गा. १५४-६१) में आचार तथा उत्तराध्ययन के चतुरंगीय अध्ययन की नियुक्ति (गा. १४४-५८) में अंग शब्द का विशद वर्णन मिलता है। इससे स्पष्ट है कि आचारांग से पूर्व दशवैकालिक और उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना हो चुकी थी।
३. उत्तराध्ययननियुक्ति में 'विणओ पुबुद्दिवो' (गा. २९) का उल्लेख दशवैकालिक की विनयसमाधि की नियुक्ति (गा. २८६-३०३) की ओर संकेत करता है। इस उद्धरण से स्पष्ट है कि दशवैकालिक के बाद उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना हुई।
___४. उत्तराध्ययननियुक्ति का 'कामा पुव्बुट्ठिा' (गा. २००) उद्धरण दशवैकालिकनियुक्ति (गा. १३७-४१) में वर्णित 'काम' शब्द की व्याख्या की ओर संकेत करता है। इससे स्पष्ट है कि उत्तराध्ययन से पूर्व दशवैकालिकनियुक्ति की रचना हुई।
५. सूत्रकृतांगनियुक्ति (गा. १८३) में आयार-सुतं भणियं' उल्लेख से स्पष्ट है कि दशवैकालिक और उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना उससे पूर्व हो गयी थी क्योंकि आचार का वर्णन दशनि (गा. १५४-६१) में तथा श्रुत का वर्णन उनि (गा. २९) में है।
६. उत्तराध्ययननियुक्ति में वर्णित करण की व्याख्या वाली कुछ गाथाएं सूत्रकृतांगनियुक्ति में मिलती हैं।
७. सूत्रकृतांगनियुक्ति में 'गंथो पुव्वुद्दिद्यो' (गा. १२७) का उल्लेख उत्तराध्ययननियुक्ति (गा. २३४३७) में वर्णित ग्रंथ शब्द की व्याख्या की ओर संकेत करता है। इस उद्धरण से स्पष्ट है कि सूत्रकृतांगनियुक्ति से पूर्व उत्तराध्ययननियुक्ति की रचना हुई।
८. आचारांगनियुक्ति (गा. ३३६) में वर्णित 'जह वक्कं तह भासा' का उल्लेख दशवैकालिक की 'वक्कसुद्धि' अध्ययन की नियुक्ति (गा. २४५-५८) की ओर संकेत करता है।
९. सूत्रकृतांगनियुक्ति (गा. ९९) में धम्मो पुवुद्दिट्टो' का उल्लेख दशवैकालिकनियुक्ति (गा. ३६४०) में वर्णित धर्म शब्द की व्याख्या की ओर संकेत करता है। इससे स्पष्ट है कि सूत्रकृतांगनियुक्ति की रचना बाद में हुई।
१०. 'जो चेव होति मोक्खो, सा उ विमुत्ति पगयं' आचारांगनियुक्ति (गा. ३६५) का यह उल्लेख उत्तराध्ययननियुक्ति (गा. ४९१-९४) में वर्णित मोक्ष की व्याख्या की ओर संकेत करता है।
उपर्युक्त उल्लेखों से स्पष्ट है कि नियुक्तियों की रचना का क्रम वही है, जिस क्रम से उन्होंने नियुक्तियां लिखने की प्रतिज्ञा की है। १. यह संख्या जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाश्यमान आवश्यकनियुक्ति खण्ड-२ की है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org