Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मर्मप्रकाशिका टीका श्रुतस्कंघ २ उ. २ सू० ४० पिण्डैषणाध्ययननिरूपणम्
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बहवः श्रमणब्राह्मणाः यावद उपागमिष्यन्ति, अल्पाकीर्णाः वृत्तिः प्राज्ञस्य निष्क्रमणप्रवेशाय प्राज्ञस्य वाचनाप्रच्छना परिवर्तनानुप्रेक्षाधर्मानुयोग चिन्तायै स एवं ज्ञात्वा तथाप्रकारां पुरः संखर्डिवा पश्चात् संखर्डिवा संखडिप्रतिज्ञया अभिसंघारयेद् गमनाय' ॥ सू० ४० ॥
टीका - अथ उपर्युक्त निषेधस्यापवादरूपेणाह - 'से भिक्खु वा भिक्खुणी वा' स पूर्वोक्तो भिक्षुः साधुः वा भिक्षुकी साध्वी वा 'गाहावइकुलं' गृहपतिकुलम् 'पिंडवायपडियाए' पिण्डपातप्रतिज्ञया मिक्षालाभाशया 'पविद्वे समाणे' प्रविष्टः सन ' से जं पुण जाणिज्जा' स यत् पुनः वक्ष्यमाणरीत्या जानीयात् - अवगच्छेत्- 'मसाइयं वा मच्छाइयं वा मंसखलं वा मच्छखलं बा' मांसादिकां वा - मांसं मांससदृशं छत्राकं वनस्पतिविशेषरूपं शिलीन्घ्रम् आदिः प्रधानं यस्यां साता मांसादिकां संखडि जानीयादिति पूर्वेणान्वयः एवं मत्स्यादिकाम् - मत्स्यः मत्स्यसदृशबहुकण्टकस्थानापन्न बहुशिरायुक्तो शृंगाटकांसिंहार वनस्पतिविशेषः आदि: प्रधानम् यस्यां सा ताम् मत्स्यादिकां संखडिं जानीयादित्यन्त्रयः, एवम् खलशब्दस्यात्र शुष्कपर्यायतया मांसखलाम्-शुष्कर्मास सदृशशुष्क शिलीन्ध्ररूपवनस्पतिविशेषयुक्तां संखडिं यदि
अब पूर्वोक्त संखडी निषेधका अपवाद रूप भोज्य जीमनवार संखडी विशेष में साधु और साध्वी को जाने का विधान करते हैं-' से भिक्खु वा भिक्खुणी वा' वह भाव साधु और भाव साध्वी 'गाहबइ कुलं पिंडवायपडियाए' गृहपति-गृहस्थ श्रावक के घर में पिण्डपात- भिक्षा लाभ की प्रतिज्ञा इच्छा से 'पविहे समाणे ' प्रविष्ठ होकर प्रवेश करते हुए 'से जं पुण जाणिज्जा' वह साधु या साध्वी यदि ऐसा वक्ष्यमाण रूप से जानेकि 'मंसाइयं वा, मच्छाइयं वा' मांसके सदृश वनस्पति विशेष शिलीन्ध्र गोवर छत्ता वगेरह से युक्त संखडी है एवं मछली के सदृश बहुतकण्टक शिराओं से युक्त शृंगाटक-सिंगरहार वनस्पति विशेषवाली संखडी है इसी तरह 'मंसखलं वा मच्छखलं वा' शुष्कमांस के सदृश शुष्काशि लीन्ध्रारूप वनस्पति विशेष से युक्त संखडी है एवं शुष्क मछली के सदृश शुष्क बहुत शिराओं से युक्त वनस्पति विशेष सहित यह संखडी है ऐसा देखले या जानले एवं 'आहेणं वा जाव संमेलं वा हिरिमाणं पेहाए' विवाहानन्तर नव वधू के
હવે પૂર્વોક્ત સખડી નિષેધના અપવાદ રૂપે જમણવાર સંખડી વિશેષમાં સાધુ અને સાધ્વીને જવાનું વિધાન ખતાવે છે.
टीडार्थ - ' से भिक्खुवा भिक्खुणीवा' पूर्वोक्त लाप साधु अगर भाव साध्वी 'गाहावइ कुलं' शृडपतिना घरमा 'पिंडवायपडियाए' लिक्षा सालनी २छाथी 'पविट्टे समाणे' प्रवेश रीने 'से जं पुणजाणेज्जा' तेयो ले मेवु भागे हैं 'मसाइयं वा मच्छाइयं वा' भांसनी सरमा वनस्यति विशेष शीखी-प्र- छाछत्री विगेरेथी युक्त संभडी छे. मेन रीते 'मंसखलं वा मच्छखलं वा' सु भाछसानी समान सुद्धा घथा शीरायोथी युक्त वनस्पति विशेषवाजी वुध से लगी से तथा 'आहेणं वा जाव समेलं वा हरिमाणं पेहाप'
साडी
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૪